आज संसद के मानसून सत्र मे सासंद राज्य सभा नरेश बंसल ने उठाई मांग -देश का नाम इंडिया दैट इज भारत हटा कर केवल “भारत” होना चाहिए

आज संसद के मानसून सत्र मे सासंद राज्य सभा नरेश बंसल ने मांग उठाई कि आजादी के अमृत काल मे अंग्रेजी गुलामी के प्रतीक को हटा कर इस पुण्य पावन धरा का नाम संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर पुनः भारत रखा जाए ।

सासंद राज्य सभा नरेश बंसल ने विशेष उल्लेख मे कहा कि
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने विगत 15 अगस्त को कहां लाल किले से देश के नाम संबोधन में साफ कहा था की दासता के प्रतीक चिन्हों से देश को मुक्ति दिलाना जरूरी है।पीएम श्री मोदी ने अपने भाषण में आजादी के अमृत काल के लिए अपने बताएं 5 प्रणो में से एक प्रण औपनिवेशिक माइंडसेट से देश को मुक्त कराने का भी जिक्र किया था। विगत 9 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अनेक कदम उठाए हैं बल्कि अनेक मौकों पर उन्होंने औपनिवेशिक विरासत, औपनिवेशिक प्रतीक चिन्हों को हटाने और उसकी जगह परंपरागत भारतीय मूल्यों और सोच को लागू करने की वकालत की है।
सासंद राज्य सभा श्री नरेश बंसल ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में देश को आज एक नई प्रेरणा और ऊर्जा मिली है । हम गुजरे हुए कल को छोड़कर आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं।  आजादी के अमृत काल में गुलामी की पहचान से मुक्ति मिली है। आज देश अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे सैकड़ों कानूनों को बदला जा चुका है। भारतीय बजट जो इतने दशकों से ब्रिटिश संसद के समय का अनुसरण कर रहा था उसका समय और तारीख भी बदली गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए अब विदेशी भाषा की मजबूरी से भी देश के युवाओं को आजाद किया जा रहा है।आज यदि राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्य पथ बना है और जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति लगी है तो यह गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। ऐसे अनेकों उदहारण हमारे सामने हैं। 
सासंद नरेश बंसल ने कहा कि यह ना विदेशी दासता को खत्म करने की शुरुआत है ना अंत है,यह मन और मानस की आजादी का लक्ष्य हासिल करने तक निरंतर चलने वाली संकल्प यात्रा है। आज भारत के आदर्श और आयाम अपने हैं, वही पंत और प्रतीक भी अपने हैं। 
सासंद बंसल ने कहा कि आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वतंत्रता दिवस पर लिए पांच प्रण को दोहराते हुए कहा था “आजादी के 75 वर्ष पूर्व पूरे पूरे होने पर देश ने अपने लिए पंच प्रणों का विजन रखा है,  इन पंच प्रणों  के विकास के लक्ष्य का संकल्प है कर्तव्य की प्रेरणा है, इनमें गुलामी की मानसिकता के त्याग का आह्वान है और अपनी विरासत पर गर्व का बोध है”। आदरणीय प्रधानमंत्री दासता की सोच से देश को बाहर निकालने की पिछले 9 सालों से लगातार कोशिश में जुटे हैं। वर्ष 2014 से अब तक मोदी सरकार ने अंग्रेजी हुकूमत याद दिलाने वाले चीजों को बदला है।
सासंद नरेश बंसल ने संसद सत्र मे विषेश उल्लेख मे कहा कि अंग्रेजों ने लगातार ढाई सौ साल तक भारत पर शासन किया और देश का नाम भारत से बदल कर इंडिया कर दिया। भारत की स्वतंत्रता सेनानियों की मेहनत और बलिदानों के कारण जब 1947 में देश आजाद हुआ और भारत का संविधान 1950 में लिखा गया तो उसमें भी हम भारतीयों ने लिख दिया ‘इंडिया डेट इज भारत’। जबकि हमारे देश का नाम हजारों सालों से “भारत” ही रहा है।भारत को “भारत” बोला जाना चाहिए ,इसके बजाए लिखा गया ‘इंडिया डेट इज भारत’ इसलिए आज भी भारत मां के साथ इंडिया नाम जुड़ा हुआ है। भारत या भारत वर्ष इस देश का वास्तविक नाम है। 
सासंद नरेश बंसल  ने कहा कि देश का अंग्रेजी नाम इंडिया शब्द गुलामी की निशानी है। देश का नाम एक ही होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर देश का नाम ‘इंडिया दैट इज भारत’ हटा केवल “भारत” होना चाहिए। देश को मूल और प्रमाण प्रमाणिक नाम भारत से ही मान्यता दी जानी चाहिए। महाराज भरत ने देश का संपूर्ण विस्तार किया और इसीलिए ही देश का नाम उनसे जुड़ा और जब अंग्रेजों ने भारत को अपना गुलाम बनाया तब उन्होंने इस देश का नाम इंडिया कर दिया।
राज्यसभा के इस मानसून सत्र मे विषेश उल्लेख मे सासंद नरेश बंसल ने मांग की कि आजादी के अमृत काल मे अंग्रेजी गुलामी के प्रतिक को हटा इस पुण्य पावन धरा का नाम संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर पुनः भारत रखा जाए तथा भारत माता को दासता की इस नाम रूपी बेडियाँ से आजादी दी जाए ।
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