हाई कोर्ट के आदेश पर मुख्य सचिव को गलत जांच रिपोर्ट देने पर एडीएम देहरादून के के मिश्रा, चिकित्सा शिक्षा निदेशक आशुतोष सयाना, वित्त अधिकारी विवेक स्वरूप,अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान सस्पेंड होंगे ? क्या धामी राज में अधिकारियों पर होगी कार्यवाही ?
हाई कोर्ट के आदेश पर मुख्य सचिव को गलत जांच रिपोर्ट देने पर
एडीएम देहरादून के के मिश्रा, चिकित्सा शिक्षा निदेशक आशुतोष सयाना, वित्त अधिकारी विवेक स्वरूप , अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान सस्पेंड होंगे ?
देहरादून : माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने शिकायत होने पर मुख्य सचिव उत्तराखंड एस एस संधू को जांच करने के निर्देश दिए थे कि एक माह के भीतर सुभारती मेडिकल कॉलेज (गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय ) एमटीवीटी ट्रस्ट के विषय में अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करें और एक समिति गठित की थी जिसमे चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान को अध्यक्ष , चिकित्सा शिक्षा विभाग के वित्त नियंत्रक विवेक स्वरूप को सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग में हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के सह प्रोफेसर/कार्मिक आशुतोष सयाना ( जिन्हे 10 साल से इस पद के लायक भी नहीं होने के कारण महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं दून मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल का दायित्व दिया हुआ है ) तथा ए डी एम देहरादून के के मिश्रा को सदस्य बनाया था परंतु 9 माह तक उक्त समिति जांच को टालती रही और कई बार मामला उठाने एवम मीडिया में आने के बाद जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव को भेजी गई जिसे विभाग ने यानी 27 जनवरी 2023 को 9 माह बाद जारी किया ।
देखे मुख्य सचिव की जांच समिति बनाए जाने का पत्र :
समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट पूरी तरह से गलत एवम गुमराह करने वाली दी है जिसकी शिकायत मुख्य सचिव एवम मुख्यमंत्री हेल्प लाइन को दी गई है और माननीय उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दाखिल की जा रही है और पूरा मामला सबूत सहित न्यायालय को भेजा जा रहा है ।
पढ़े समिति की रिपोर्ट :
रिपोर्ट में सबसे अहम मुद्दा यह कि जिस तहसीलदार रिपोर्ट में वर्णित खसरा नंबरों के आधार पर के उक्त MTVT चेरिटेबल ट्रस्ट (बदला हुआ नाम जबकि पहले इस ट्रस्ट का नाम डा जगत नारायण सुभारती चेरिटेबल ट्रस्ट था ) मेडिकल कॉलेज एवम रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी और जिस तत्कालीन पटवारी ने वर्ष 2018 में और तहसीलदार ने यह प्रमाण पत्र जारी किया था ,
देखे जांच समिति में बुलाए गए तहसीलदार और पटवारी का प्रमाण पत्र :
यह सरदार सिंह अभी 15 दिन पहले ही सस्पेंड हुए है
2018 के बाद उक्त समेत अन्य मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने उक्त कॉलेज को बंद कर दिया था और 300 छात्र राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट कर दिए थे और सुभारती पर 97 करोड़ की पेनल्टी लगाई थी और उक्त तथ्य पर ही समिति द्वारा उक्त पटवारी सरदार सिंह और तहसील दार उनको ही पुनः समिति ने बुलाकर उनसे ही मौखिक जानकारी लेकर जांच रिपोर्ट में यह लिख दिया कि शिकायत कर्ता की भूमि नैनीताल बैंक एवम इलाहाबाद बैंक में बंधक है परंतु खसरा नंबर पूरी जांच रिपोर्ट में कहीं नहीं खोले जिससे भ्रष्टाचार और घूसखोरी का साफ इल्म होता है ?
परंतु उस भूमि के खसरा नंबर जांच रिपोर्ट में नही लिखे और न ही लिखित रूप में बैंक अधिकारियों से उक्त खसरा नंबरों की डिटेल मांगी क्योंकि अगर उक्त खसरा नंबर जांच रिपोर्ट में लिखे जाते तो इन भ्रष्ट अधिकारियों की पोल खुद ही प्रकट हो जाती कि जिन खसरा नंबरों पर उक्त मेडिकल कॉलेज और रास बिहारी यूनिवर्सिटी स्थापित है वही खसरा नंबर की जमीनें इन दोनो बैंको में बंधक है यही नहीं सिविल जज जूनियर डिवीजन विकासनगर के यहाँ से उक्त अन्य खसरा नम्बरो पर स्टे और पैमानेन्ट इंजक्शन आज भी उक्त विवादित भूमि पर लगा है जिसके समस्त कागज समिति को देने पर भी कोई शब्द उस विधाय में नहीं लिखा गया और समिति को उक्त दस्तावेज साबुत के तौर पर सौपने का प्रमाण भी हाई कोर्ट से लेकर शिकयत कर्ता के पास उपलब्ध है ।
देखे बैंको का शिकायत कर्ता को जारी पत्र और DRT उत्तराखंड में आज की तिथि में वाद स्टे एवम लंबित होने का प्रमाण भूमि बैंको बंधक होने और लोन होने का प्रमाण जिस विषय में जांच कमेटी ने गलत रिपोर्ट दी :
और MTVT ट्रस्ट ने यह शपथ पत्र शासन में दिया हुआ है कि उनकी कोई जमीन न बंधक है ,न करेंगे ( समिति की रिपोर्ट में भीं यह तथ्य लिखा है) और जमीन पर कोई लोन भी नही है और न लोन लेंगे जब तक की राज्य सरकार द्वारा सुभारती ट्रस्ट पर आरोपित 72 करोड़ का भुगतान नहीं कर देते और यदि कोई इस प्रकार का तथ्य पाया जाए तो एमबीबीएस कॉलेज,यूनिवर्सिटी स्वत: निरस्त मानी जाए ।
देखे शपथ पत्र :
सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रस्ट के संचालक ने भी न्यायालयों एवम विवेचना अधिकारी को यह लिख कर दिया हुआ है कि लोन चल रहे है और उसने उनका भुगतान नहीं किया है और शिकायत कर्ता और उनके मध्य विवाद चल रहे है ।
देखे पत्र के अंश :
अब सवाल यह उठता है कि यदि उक्त खसरा नंबर शिकायत कर्ता मनीष वर्मा के स्वामित्व के है तो उन पर रास बिहारी बोस यूनिवर्सिटी और उक्त मेडिकल कॉलेज कैसे चल रहा है ? और लोन प्रचलित होने का प्रमाण भी समिति ने रिपोर्ट खुद ही स्वीकार किया तो गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय यानी मेडिकल कॉलेज और रास बिहारी बोस यूनिवर्सिटी निरस्त क्यों नही की गई ? स्पष्ट है की मोटी रिश्वत और रकम लेकर उक्त महानुभावों की जांच समिति ने गुमराह करने वाली एवम गलत रिपोर्ट मुख्य सचिव को दी है ।
अब देखन यह है की मुख्य सचिव और जीरो टॉलरेंस इस पर क्या कारवाही करेंगे ?
क्या ये भ्रष्ट अधिकारी सस्पेंड होंगे और क्या झूठे कागज लगाकर और गुमराह की गई रिपोर्ट से अनुमति प्राप्त कर कॉलेज और यूनिवर्सिटी निरस्त होगी ?
यदि तहसीलदार की प्रमाण पत्र दिनांक (ऊपर प्रकाशित ) सही है तो उक्त खसरा नंबर 369, 377ka , 378,386,376kha,379kha,388ka,353.इलाहाबाद बैंक के लैटर में मनीष वर्मा/BIG NEWS ASIA का स्वामित्व स्पष्ट दिखा रहे है और खसरा नंबर384 नैनीताल बैंक में बंधक और मनीष वर्मा के स्वामित्व में दिख रहा है और वर्तमान समिति ने उक्त खसरा नंबरों का भी स्वामी मनीष वर्मा को बताया है, तो उक्त तहसीलदार,अपर जिलाधिकारी और जिलाधिकारी का प्रमाण पत्र गलत हुआ जिसके आधार पर मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी की अनुमति दी गई या समिति की रिपोर्ट गलत हुई ?
और यदि वर्तमान समिति की रिपोर्ट सही मान भी ले तो उक्त उक्त तहसीलदार का प्रमाण पत्र गलत साबित हुआ पर दोनो है तो सरकार द्वारा जारी किए हुए ।
फर्जी आदमी खड़ा करके रजिस्ट्री :
फर्जी आदमी खड़ा करके रजिस्ट्री करवाई गयी और जनता खुद देखे कि इन दोनों दस्तावेजों में ” प्रभु और फिलिप ” पुत्र गण टॉमस तो लिखा है पर दूसरी रजिस्ट्री जो डा जगत नारायण सुभारती ट्रस्ट के नाम हई उसमे एक कि फोटो बदल गयी और उसकी जगह दूर आदमी खड़ा करके रजिस्ट्री करवाई गयी यही नहीं पट्टे, विनिमय , SC आदि कि जमीनों कि सर्टिफाइड कॉपी और दस्तावेज समिति को दिए गए थे उस पर विवरणवार कोई रिपोर्ट समिति ने नहीं दी तो 9 माह तक समिति क्या कर रही थी ? क्या समिति अध्य्क्ष अपने अधीनस्थ लोगो पर दबाव बनाकर गलत रिपोर्ट लिखवा रहे थे समिति के सदस्य ने अपना नाम न छापने का विश्वाश लेकर बताया कि उन पर समिति अध्यक्ष का दबाव था क्यूंकि वो उनकी कृपा से ही आज इस वरिष्ठतम पद पर बैठे है और शाशन में वो उनके सीनियर और अपर सचिव है और वो उनके हाथ बंधे है
जानिए समिति के सदस्यों के बारे में
(1 ) अरुणेंद्र सिंह चौहान,उत्तरप्रदेश से भुवन खडूरी और सारंगी दवारा लाये गए वित् सेवा, कोषागार उत्तराखंड के कर्मचारी जो अपनी सांठ गाँठ के चलते अपर सचिव बन गए जिनपर सी बी आई द्वारा 100 करोड़ से अधिक आय से अधिक संपत्ति कि जांच आज भी सचिवालय में दबी है क्यूंकि सी बी आई का पत्र वित् विभाग को भेज कर डंप करवा दिया गया और राष्ट्रपति कि जांच भी ठन्डे बस्ते में है पढ़िए पूरी खबर निचे दिए लिंक पर क्लिक करे :
(2 ) विवेक स्वरुप , वित्त अधिकारी , चिकित्सा सिक्षा :
चिकित्सा शिक्षा विभाग के सीएफओ विवेक स्वरूप मंडी समिति हल्द्वानी से चिकित्सा शिक्षा निदेशालय देहरादून कैसे नियुक्ति पा गए और क्यू नही अब तक इन्होंने उक्त 72 करोड़ की वसूली में अपनी रुचि दिखाई या अर्जेंसी लगाकर आदेश क्यो नही लिया
पढ़े : उत्तराखंड का अधिकारी गिरफ्तार :
इनके खिलाफ अपनी अधिनस्थ महिला कर्मचारी का उत्पीड़न करने का मामला लंबित है और इन्होने शादी का वादा करके उस महिला से विवाह नहीं किया और उससे उतपन्न पुत्र द्वारा इनके खिलाफ उत्तराखंड हाई कोर्ट में देख रेख सहित अन्य केस दायर किये हुए है विवेक स्वरूप जेल जा चुके है,और इन्होने उत्तराखंड हाई कोर्ट से इनके विरुद्ध हुई एफआईआर पर जमानत ली हुई है और इनके आरोपों के बावजूद भी ये अधिकारी इतने बड़े पद पर अरुणेंद्र सिंह चौहान कि वजह से ही बैठा हुआ है सारा मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट कि वेबसाइट से लिया जा सकता है तथा उक्त पीड़ित महिला से लिया जा सकता है
(3 ) डा आशुतोष सयाना : स्वयं ही पढ़ लीजिये कि हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के एक ASTT प्रोफेसर कहाँ से कहाँ कैसे पहुचंगे होंगे जबकि अहर्य ही नहीं है किसकी बदौलत और किस कारण से महानिदेशक चिकित्सा सिक्षा का दायित्व और प्रिंसिपल दून मेडिकल कॉलेज बने और इसी पद के इर्द गिर्द पर पिछले 10 साल से बैठे है? क्या और कोई काबिल अफसर या प्रोफेसर नहीं है उत्तराखंड में ?और क्यों अपनी निजी जांच एवं शिकायतों कि पत्रावली कि आरटीआई देने से मना किया गया ?
के के मिश्रा ADM देहरादून : व्यक्ति मृदुभाषी है और दबाव में है इसलिए हम ज्यादा कुछ नहीं खुलासा कर रहे है पर समय आने पर खुलासा करने से चूकेंगे भी नहीं
इनके स्टाम्प और पंजीकरण के मामलो में कितने लोगो को छूट दी गयी और किस प्रकार किन मामलो पर चुप्पी साधी गयी और स्मार्ट सिटी में क्या हुआ , पूर्ण विवरण समय आने पर उपलब्ध करवा दिया जायेगा
सुभारती के अन्य विवादित मामले आप बस लिंक और उसके नादर अन्य लिंक पर क्लिक करते रहिये और पढ़ते रहिये कि हत्या के आरोपी और ग़ाज़ियाबाद जिला जज के यहाँ सेशन ट्रायल झेल रहे सुभारती के संचालक अतुल भटनागर के कारनामे :
ये भी पढ़े सुभारती के बड़े बड़े कारनामे जिन्हे ये समिति बचाना चाहती है :
https://voiceofnationnews.com/ed-investigation-on-subharti-medical-dehradun/
https://voiceofnationnews.com/subharti-group-hospital-patient-died/
https://voiceofnationnews.com/two-more-enquiry-against-ias-pankjaj-pandey-today/
तो बड़ा सवाल यह हुआ कि गलत कौन है ? या सुभारती / MTVT TRUST/ JAGAT NARAIN TRUST वालो ने अधिकारियो और सरकार को बदनाम करने का ठेका लिया है और 72 करोड़ रुपये भी सरकार के दबाये बैठे है और सरकार के खिलाफ ही दर्जन मुकदमे हाई कोर्ट नैनीताल में डाले हुए है
तहसीलदार, पटवारी, कानूनगो जिसने 2018 में उक्त तहसीलदार प्रमाण पत्र जारी किया और जिसको डीएम देहरादून ने डिट्टो करके आगे भेज दिया और मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी बन गई या वर्तमान समिति के चार महारथी अरूणनेंद्र सिंह चौहान ,विवेक स्वरूप ,के के मिश्रा और आशुतोष सयाना की वर्तमान जांच रिपोर्ट क्या सही माना जाये ??
क्या अभी भी उक्त तथ्य प्रकाशित होने पर समिति, सरकारी जमीन बीच में दिखाने,कब्जा करने (अपनी ही रिपोर्ट के अनुसार) सुभारती / MTVT / ट्रस्टियो गलत तथ्य देने, भूमि क्रय का शशानादेश निजी विश्विद्यालय का और गलत प्रयोजन करने (मेडिकल कॉलेज ) बनाने पर धारा 167 की कार्यवाही करेगी ? क्या झूठे तथ्य बताने और समिति को गुमराह होने पर कार्यवाही होगी ?या समिति ही गुमराह कर रही है या हो रही है ,इस पर कार्यवाही होगी ?
जनता सब देख रही है और सारा मामला पब्लिक डोमेन में है …….और झूठी और गलत रिपोर्ट देने का क्या अंजाम होगा वो जीरो टॉलरेंस के मुख्यमंत्री को अपनी टीम की दुरुस्ती करके देना होगा और जल्द ही वर्तमान में पढ़ रहे 300 छात्रों को राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करके देना होगा नही तो पिछली बार की तरह सभी पेरेंट्स और छात्र आंदोलनरत होंगे ।
वॉयस ऑफ नेशन मुख्य सचिव और जांच समिति के सदस्यों को चैलेंज करता है कि अगर वे गलत है तो तत्काल संशोधन जारी करें और कॉलेज का अनिवार्यता प्रमाण पत्र निरस्त करें और शाशन के शाशना देश के खिलाफ भू प्रयोजन करने हेतु धारा 167 की करवाही करें या अपने पद को छोड़े और वॉयस ऑफ नेशन गलत हुआ तो वो सार्वजनिक खंडन करेगा । और समिति में हिम्मत है तो अपनी रिपोर्ट खसरा नंबर लिख कर जारी करें क्योंकि सच्चाई तभी सामने आएगी जैसे की आज भी बैंको के यह और राजस्व रिकार्ड में ऑनलाइन उक्त खसरा बन बैंक में बंधक देखें जा सकते है ।