भ्रष्टाचार में लिप्त MTVT बुद्धिस्ट ट्रस्ट (सुभारती ) के कॉलेज पर डी सी आई एवं भारत सरकार की 2020-21,2021-22 तथा 2022-23 तक की ना हुई ।

देहरादून : जगत नारायण सुभारती ट्रस्ट जिसका कई विवादों और 300 एम बी बी एस के छात्रों से धोखाधड़ी करने पर राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दिया था कि सुभारती इस संपत्ति के मालिक ही नही है क्योंकि उन्होंने इस संपत्ति के मूल स्वामियों से संपत्ति को टेकओवर करने के लिए जो लाइबिलिटी यानी देनदारी अपने ऊपर ली थी उनका भुगतान ही नहीं किया और सुभारती वालो ने न तो बैंको का पैसा दिया और न ही संपति टेकओवर करने के जो चैक दिए वो पास हुए क्योंकि वो बाउंस हो गए इस प्रकार दोनो पक्षों ने एक दूसरे पर विभिन्न केस किए हुए हैं जो वर्तमान में लंबित है इसलिए सुभारती वाले इस संपत्ति के मालिक नही है तथा समस्त संपति आज भी बैंको में बंधक है ।

देखे पत्र :

वहीं दूसरी ओर एक बड़ा खुलासा यह भी हुआ कि MTVT बुद्धिस्ट रिलीजियस ट्रस्ट को माइनोरिटी का संस्थान बता कर उत्तराखंड सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह और तीरथ सिंह से सचिव पंकज कुमार पांडेय सुभारती से मिलीभगत के चलते सुभारती वालों पर राज्य सरकार की 72 करोड़ देनदारी ( पेनल्टी ) होते हुए भी मात्र 100 का शपथ पत्र लेकर MBBS कोर्स के लिए अनिवार्यता प्रमाण पत्र 9 जुलाई 2021 को जारी करवा लिया जबकि गरीब आदमी को 10,000 रुपए के लिए सरकार उत्पीड़न करती है पर सुभारती यानी MTVT ट्रस्ट के मामले में सारे नियम कानून दर किनार कर दिए गए देखे इस सुप्रीम कोर्ट के हाल ही ऑर्डर को जिसमे सुभारती / MTVT ट्रस्ट खुद MINORITY संस्था घोषित करवाने के लिए न्यायालय के दरवाजे खटखटा रही है तो यक्ष प्रश्न यह उठता है कि 9 जुलाई 2021 को सचिव पंकज पांडे ने कैसे माइनोरिटी संस्थान का एसेंशियलिटी सर्टिफिकेट जारी कर दिया ?

देखे सर्टिफिकेट :

देखे माननीय सुप्रीम कोर्ट का 24 जनवरी 2022 का आदेश ;

उत्तराखंड के सचिव चिकित्सा शिक्षा रहे अमित सिंह नेगी IAS ने भी इस संबंध में अपनी रिपोर्ट दी थी और लिखा था न तो संस्था के नाम जमीन है और न अस्पताल क्रियाशील है और सरकारी देनदारी और विवाद भी है : देखे पत्र ;

बड़ा सवाल यह उठता है कि विभागीय मंत्री धन सिंह ने क्या किया 5 साल तक और वो अब भी इस मुद्दे को क्यों दबाए बैठे रहे और इस तरह से अनुमति जारी होने के बावजूद भी चुप रहे जो की दाल में काला ही नही पूरी दाल काली होनी दर्शाता है जिसमे मुख्य सचिव के यहां चल रही जांच में उपबंध कागजों पर सबूत के रूप में ध्यान न देकर स्थलीय निरीक्षण करवाया जा रहा है जबकि जांच तो पत्रावली पर उपलब्ध कागजों की होनी है और जांच भी क्या होनी है सब गड़बड़ झाला तो ऊपर छापे गए कागजों से स्पष्ट ही दिख रहा है । कुल मिलाकर सचिवालय की वो कहावत चरितार्थ होती दिख रही है कि यह उत्तराखंड सचिवालय है यहां कुछ भी करवा लो सब हो जाता है । पहले श्री देव सुमन फिर रस बिहारी बोस और अब गौतम बुद्ध के नाम को बदनाम किया जा रहा है और सब मूक बने हैं जैसे भरा होने के कारण मुंह खुल ही नही रहा हो

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