देहरादून के गौतम बुद्ध सुभारती मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के छात्रो से फिर धोखा । सबूतों के साथ मिले अभिलेखों पर भारत सरकार ने अनुमति निरस्त करने हेतु उत्तराखण्ड सरकार को पत्र भेज माँगी रिपोर्ट
चिकित्सा सिक्षा मंत्री धन सिंह रावत मौन
देहरादून के गौतम बुद्ध सुभारती मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के छात्रो से फिर धोखा । सबूतों के साथ मिले अभिलेखों पर भारत सरकार ने अनुमति निरस्त करने हेतु उत्तराखण्ड सरकार को पत्र भेज माँगी रिपोर्ट
देहरादून : ( वायस ऑफ़ नेशन) देहरादून में MTVT ट्रस्ट ( सुभारती ग्रुप) के अतुल भटनागर एवं यशवर्धन रस्तोगी द्वारा एमबीबीएस के 300 छात्रो से 2019 में धोखा एवं जालसाज़ी करते हुए खिलवाड़ किया था जिस पर उत्तराखण्ड सरकार ने उक्त मेडिकल कॉलेज को ब्लैकलिस्टेड करते हुए 3 वर्षों तक कोई कार्य न करने हेतु बैन किया था और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना था की संस्था ने श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज के नाम से फ्रॉड किया था तथा उक्त कॉलेज को बंद कर दिया था जिस पर कार्यवाही करते हुए धोखे के शिकार हुए छात्रों को उत्तराखण्ड के 3 सरकारी मेडिकल कॉलेजो में शिफ्ट किया गया था और उक्त कॉलेज पर राज्य सरकार द्वारा एक अरब रुपये का जुर्माना लगाया था जो आज तक उक्त कॉलेज ने पूरा जमा नहीं करवाया ।
उक्त कॉलेज के संचालक अतुल भटनागर एवं यशवर्धन रस्तोगी ने फिर जालसाज़ी की और उक्त संस्था का नाम बदल कर एमटीवीटी बुद्धिस्ट रिलीज़ियस चैरिटेबल ट्रस्ट कर दिया जिससे की पुराने नाम का बैन लगा हुए कालिख को छुपा लिया जाये और गौतम बुद्ध मेडिकल कॉलेज नाम बदल कर सरकार से दुबारा एनओसी के लिए 2020 में आवेदन किया था ।
परंतु तत्कालीन सचिव चिकित्सा सिक्षा अमित नेगी आईएएस ने जब निदेशक चिकित्सा सिक्षा द्वारा गठित हाई पॉवर जाँच समिति से निरीक्षण रिपोर्ट माँगी तो मौक़े पर निरीक्षण करके आई समिति जिसमे निदेशक,चिकित्सा सिक्षा के साथ 5 वरिष्ठ अधिकारी सहित तहसीलदार, विकासनगर सहित पटवारी ,कानूनगो और एसडीएम ,ज़िलाधिकारी देहरादून की ओर से एसडीएम शामिल थे, ने रिपोर्ट दी की NMC (नेशनल मेडिकल कमीशन ) के मानको और नियम के अनुसार आवेदन करने से पूर्व संस्था के नाम राजस्व अभिलेखों में ज़मीन दर्ज होनी चाहिए और इस संस्था के नाम कोई भी भूखंड सरकारी/राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं हे और चिकित्सालय क्रिया शील नहीं है तथा पंजीकरण भी नहीं है और उक्त कॉलेज ने पहले भी छात्रो से धोखाधड़ी की है और सरकारी पैनल्टी का 97 करोड़ रुपया भी जमा नहीं करवाया है इस कारण इनको अनुमति नहीं दी जा सकती ।
देखें जाँच समिति की रिपोर्ट पर निदेशक सहित सबके हस्ताक्षर किया पत्र :
निदेशक, चिकित्सा सिक्षा मुख्यालय कि ऊपर प्रकाशित रिपोर्ट से स्पष्ट है कि उक्त सभी तथ्य सत्य है
NMC के नियम अनुसार भूमि आवेदन कर्ता ट्रस्ट के नाम होनी चाहिए और कोई भी विवाद नहीं होना चाहिए देखिए आईएमसी की मानक :-
उसके बावजूद इस रिपोर्ट को अनदेखा कर तत्कालीन सचिव अमित नेगी के अवकाश पर जाने स्वरूप चिकित्सा सिक्षा सचिव का प्रभार देख रहे सचिव पंकज पांडेय ने गंभीर कमियाँ होने के बावजूद एसेंशियलिटी सर्टिफिकेट जारी किया परंतु उसमे NMC मानको के अनुसार भूमि का वर्णन नहीं किया और एनओसी भी मात्र अल्पसंख्यक छात्रों के लिए ही दी गई थी जिसमे कॉलेज द्वारा इस तथ्य को छुपाते हुए सभी जाति के छात्रों का एडमिशन कर दिया गया पर छात्रो को उनकी अंतिम डिग्री लेते समय जब सब तथ्यों की जाँच होगी तब उनपर गाज गिरनी तय है और तब तक उम्मीद की जा रही है कि ग़लत अभिलेखों पर बनी रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी निरस्त हो चुकी होगी क्योंकि उसका गैजेट नोटिफिकेशन में लिखी ज़मीन भी इस संस्था के नाम नहीं है और न्यायालय विकासनगर सिविल जज जूनियर डिवीसन द्वारा वाद संख्या 49,50,51,52/2012 के द्वारा समस्त सेल डीड निरस्त बर्ष 2012 में ही किए जा चुके है यानी किसी और की भूमि पर यह यूनिवर्सिटी सबको अंधेरे में रख कर बना दी गई है ।
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वही झाजरा स्तिथ 28 bigha भूमि सरकारी अतिक्रमण एवं कब्जा पाया गया और ED की जाँच भी चल रही है
देखे हाल की मुख्यमत्री को भेजी पटवारी की रिपोर्ट तथा जिन भूमि पर हाल ही में बिल्डिंग बनाई गई है वो गोल्डन फारेस्ट की है जिसके समस्त विक्रय पत्र कमिश्नर गढ़वाल की लैंड फ्रॉड कमिटी और SIT जाँच कर रही है जिसपर मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव ने रिपोर्ट की कॉपी माँगी हुई है :-
भ्रष्टाचार की चरम सीमा दर्शाता मुख्यमंत्री हेल्पलाइन का यह स्क्रीन शॉट कि एक वर्ष होने पर भी उक्त रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है जबकि कमिश्नर गढ़वाल का पत्र 2023 का है । आम आदमी के मामले में तत्काल कार्यवाही हो जाती है जबकि बड़े मगर बड़े माफिया के संबंध में जाँच लंबित रहती है ।
बड़ा सवाल यह ही की अब एमबीबीएस के छात्र तीसरे वर्ष में है और रिपोर्ट सार्वजनिक करने में देरी क्यों हो रही है ? क्योंकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई तो छात्रों को पूर्व में हुए घटनाक्रम केस संख्या सौरभ बराला बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया केस नंबर 571/2018 को देखते हुए तत्काल सुप्रीम कोर्ट जाना होगा नहीं फ़ीस और डिग्री ख़त्म हो जाएगी और पिछली बार भी इन्होंने छात्रों का पैसा नहीं लौटाया था बाद में उसके लिए भी छात्रों को सुप्रीम कोर्ट जाना पढ़ा और कुछ के अभी भी लंबित है और वो छात्र यही दूँ मेडिकल कॉलेज ,हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज और अलमोड़ा मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे है उनसे उस घटनाक्रम की पुष्टि की जा सकती है। भला हो उनके अभिभावकों का जो उन्होंने सही समय पर ये सारे दस्तावेज आरटीआई में लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस लगा दिया नहीं तो आज उनकी क्या दशा होती ।
देखे उस केस का लिंक :-https://indiankanoon.org/doc/127613363/
उस समय साँठ गाँठ करते हुए उत्तराखण्ड सरकार के भृष्ट अफ़सर ने निदेशक चिकित्सा सिक्षा की उक्त निरीक्षण रिपोर्ट भारत सरकार को नहीं भेजी और संचालकों ने NMC में मात्र शपथ पत्र देकर और यह लिख कर की मानक पूरे है, ज़मीन उनके नाम से है और कोई विवाद नहीं है आदि लिख कर झूठा शपथ पत्र देकर सच्चाई छुपाते हुए LOI / अनुमति हासिल कर ली और काउसलिंग में भाग लेते हुए छात्रों का एडमिशन कर लिया ।
अब एनएमसी और भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्य सरकार को धोखे से ली गई अनुमति निरस्त करने करने हेतु रिपोर्ट माँगी है ।
देखें आरटीआई में प्राप्त भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय का पत्र जिस पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नाड्डा ने शिकायत पर संज्ञान लिया है :
उत्तराखण्ड सरकार से प्राप्त इसी महीने आरटीआई के तहत निरीक्षण समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ है की उक्त संस्था के नाम राजस्व अभिलेखों में कोई भूमि दर्ज ही नहीं थी और राजस्व अभिलेखों का ऑनलाइन निरीक्षण करने से भी स्पष्ट होता है की उक्त संस्थान के नाम कोई भी भूखंड राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं है ।
देखे शाशन से आरटीआई में प्राप्त रिपोर्ट :
अब सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठता है और उक्त कॉलेज ने कल एक कैम्प लगा कर देहरादून के डीएम, क्षेत्र के विधायक तथा एसडीएम को कार्यक्रम में बतौर अतिथि बुलाया और सोशल मीडिया में लिखा की प्रशासन के सहयोग से कैम्प लगाया जिस पर कई सवाल खड़े हो रहे है । क्या प्रशासन ने वहाँ जाने से पहले इनके बारे में आपराधिक इतिहास पता नहीं किया की इसके संचालक अतुल भटनागर पर मर्डर की धारा 302,120B के तहत सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल किए गये मुक़दमे में सेशन ट्रायल केस संख्या 645/2018 ज़िला जज ग़ाज़ीयाबाद कोर्ट में चल रहा है और अतुल भटनागर के साथ शामिल 6 अन्य अपराधीं बुलन्दशहर जेल में है जहां इन्होंने भी जल्दी जाना है और कम से कम 25 अन्य आपराधिक मुक़दमे उत्तर प्रदेश में दर्ज है । तो सरकार का आरसी नियम यह भी है की यूनिवर्सिटी बनाने वाले की आपराधिक इतिहास नहीं होना चाहिए तो जब इनके नाम से आवेदन हुआ तो रास बिहारी बोस यूनिवर्सिटी कैसे बन गई ? वहाँ भी भ्रष्टाचार हुआ । यह भी पढ़े :-https://m.jagran.com/uttar-pradesh/bulandshahr-the-miscreant-told-the-md-and-former-mla-of-subharti-the-threat-of-life-19760800.html
क्या देहरादून में नये आये और अच्छा काम कर रहे डीएम देहरादून को बदनाम करने की साज़िश तो नहीं रची जा रही या उनको इम्प्रेस करके ज़मीन नाम करवाने का कोई षड्यंत्र रचा जा रहा हो ।
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अब छात्र और अभिभावकों में पुनः उनकी डिग्री और पढ़ाई को लेकर वही संकट खड़ा हो गया है की डिग्री किस यूनिवर्सिटी की होगी ? कॉलेज बंद हो गया तो पढ़ाई कहा करेंगे ? जो पूर्व में श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज के नाम से घोटाला हुआ था और पहले श्री देव सुमन का नाम बदनाम किया गया और अब रास बिहारी बॉस और गौतम बुद्ध के नाम पर पलीता लगाने की साज़िश हो रही हो, यही नहीं जो यूनिवर्सिटी इस मेडिकल कॉलेज के छात्रों की परीक्षा करवाती है वो भी घर की खेती है और भी ज़्यादा विवादित है उसने पहले 2019 में भी एमबीबीएस की फर्जी डिग्रिया बाँटी थी
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देखिए फर्जी डिग्री की कॉपी :
रास बिहारी बोस सुभारती यूनिवर्सिटी की फर्जी डिग्री जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया और MBBS के 300 छात्रो के 2 वर्ष बर्बाद हुए ।
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और उच्च न्यायालय में इस रास बिहारी बोस यूनिवरिस्टी को चैलेंज किया गया है जिसपर चीफ जस्टिस की डबल बेंच ने अवर न्यायालय को सुनवाई हेतु भेजा है जिसका केस नंबर SPA -1073/2017 है ( यह केस नंबर छात्रों के सुलभ संदर्भ हेतु दिये जा रहे जिससे वो अपनी कोर्ट जाने की तैयारी पूरी करने में मदद हो )
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यानी दाल में काला नहीं पूरी दाल ही काली है और छात्रों की डिग्री और पढ़ाई सहित फ़ीस आदि पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है ।
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वही सूत्रों के अनुसार शाशन के चिकित्सा सिक्षा विभाग के समीक्षा अधिकारी और सेक्शन ऑफिसर भारत सरकार को भेजी जाने वाली रिपोर्ट को साँठ गाँठ से की गई इतनी बड़ी गलती छिपाने के चक्कर में गोल मॉल रिपोर्ट भेजने के चक्कर में थे जिसपर पुनः आरटीआई लगा दी गई है और भेजे जाने वाले जवाब की प्रति सूचना के अधिकार में माँग ली गई है । और मुख्य सचिव को शिकायत भेजी गई है कि ये समीक्षा अधिकारी और सेक्शन ऑफिसर 7 से भी ज़्यादा वर्षों से इसी सेक्शन में जमे बैठे है और भ्रष्टाचार कर रहे है और स्पष्ट रिपोर्ट नहीं दे रहे है जो भारत सरकार ने माँगी है कि एमटीवीटी बुद्धिस्ट रिलीज़ियस ट्रस्ट के नाम पर आवेदन कर से पूर्व राजस्व अभिलेखों में भूमि दर्ज है या नहीं
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सूबे में ईमानदारी से काम करने की गारंटी देने वाली धाकड़ धामी सरकार क्या इस बड़े भ्रष्टाचार पर कारवाही करेगी ? यह देखना होगा और इन छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजो में शिफ्ट करते हुए अबकी बार कितनी पैनल्टी और क्या कड़ी कारवाही इस संस्था पर इस फ़र्जीवाडे के लिए करेगी
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क्योंकि यह यह कार्यवाही तय करेगा की सरकार की कार्यशैली कैसी चल रही है क्योंकि अब रिपोर्ट की मॉनिटरिंग केंद्र कर रहा है और केंद्र कोआरटीआई में प्राप्त उक्त अभिलेख उपलब्ध करवा दिये गये है
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और सबसे बड़ी बात तो यह की सरकार का ढीला रवैया अब तक 97 करोड़ नहीं वसूल पाए है जबकि डीएम देहरादून तहसील में निरीक्षण कर ग़रीबो और व्यापारियो से राजस्व वसूली पर सबके कान खींच आये हे बड़े मगरमच्छो पर चुप क्यों है ? क्या एक अच्छा वकील करके वसूली नहीं कर सकते ?
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बरहाल छात्रों और अभिभावकों को इस कॉलेज और यूनिवर्सिटी के संबंध में किए गये फर्जीवाडे के दस्तावेज चाहियें हो तो वो हमे संपर्क कर प्राप्त कर सकते है
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http://voiceofnationnews.com/voiceofnation-123/