आकाश आनंद और सतीशचंद्र मिश्रा… बीच चुनाव मायावती ने 2 फैसलों से चौंकाया, क्या हैं मायने?

झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के साथ ही यूपी की नौ सीटों पर उपचुनाव भी हो रहे हैं. इन चुनावों के बीच बसपा प्रमुख मायावती ने दो फैसलों से चौंकाया है. अब इन फैसलों के मायने तलाशे जा रहे हैं.

महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. अमूमन उपचुनावों से दूरी बनाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी इस बार नौ सीटों के रण में अपने रणबांकुरे उतारे हैं. बसपा ने मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद को झारखंड और महाराष्ट्र जैसे चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दी है. साथ ही यूपी उपचुनाव के लिए 40 स्टार प्रचारकों की भारी-भरकम लिस्ट भी जारी कर दी है. आकाश आनंद को चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दिया जाना और स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मायावती के बाद नंबर दो पर सतीशचंद्र मिश्रा का नाम होना, इसके पीछे बसपा की रणनीति क्या है? बात इसे लेकर भी हो रही है.

आकाश आनंद को चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी के पीछे क्या

आकाश आनंद को यूपी उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर जगह मिली है. उन्हें पार्टी ने झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव अभियान की जिम्मेदारी सौंपी है. यूपी उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की लिस्ट में आकाश का नाम तीसरे नंबर दिए जाने और चुनावी राज्यों का जिम्मा सौंपने के पीछे बसपा की रणनीति को चार पॉइंट में समझा जा सकता है.

उपचुनाव नतीजों के बाद न बने आम चुनाव जैसी स्थितिः लोकसभा चुनाव में आकाश आनंद खासे सक्रिय थे. आकाश आनंद ने यूपी में ताबड़तोड़ रैलियां कीं लेकिन नतीजे आए तो हाथी खाली हाथ ही रह गया. इसे आकाश आनंद की नेतृत्व क्षमता से जोड़ा जाने लगा था, विफलता बताया जाने लगा था. बसपा नहीं चाहती कि उपचुनाव नतीजों के बाद वैसी स्थिति बने.

सर्वाइवल का सवाल बने उपचुनावः बसपा के लिए यूपी उपचुनाव एक तरह से सर्वाइवल का सवाल बन गए हैं. 2022 के यूपी उपचुनाव में एक विधानसभा सीट पर सिमटी बसपा आम चुनाव में खाली हाथ रह गई थी. पार्टी के सिमटते जनाधार को लेकर भी काफी बात हो रही है, मायावती और बसपा के सियासी भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में सर्वाइवल का सवाल बन चुके यूपी उपचुनाव में मायावती सियासत में अपेक्षाकृत नवप्रवेशी आकाश आनंद को फ्रंट पर डालने की जगह खुद मोर्चा संभालने के मोड में नजर आ रही हैं.

3- पुराने नेता, पुरानी रणनीति आजमाने की कोशिशः मायावती खुद भी कहती रही हैं कि बसपा पार्टी नहीं, एक आंदोलन है. इस आंदोलन का कोर वोटर, कोर सपोर्टर दलित मतदाता रहे हैं लेकिन साल 2007 के बाद बसपा का वोट शेयर लगातार गिरता ही चला गया. माायावती अब पुराने वोटर-सपोर्टर को फिर से साथ लाने की कोशिश में जुटी हैं.

मायावती की रणनीति अनुभवी नेताओं और पुराने पैंतरों को फिर से आजमाने की भी हो सकती है. आकाश आनंद युवा हैं और उनका काम करने का तरीका भी मायावती और बसपा की परंपरागत कार्यशैली से अलग है. आकाश आनंद की अपनी टीम है. ऐसे में अगर वह यूपी उपचुनाव में अधिक सक्रिय होते तो मायावती की कोर टीम के कामकाज पर असर पड़ने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

चंद्रशेखर बनाम आकाश आनंद न हो जाए मुकाबलाः यूपी उपचुनाव में एडवोकेट चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी भी मैदान में हैं. दलित पॉलिटिक्स की पिच पर बसपा के लिए चुनौती बनी एएसपी की सक्रियता के बीच आकाश आनंद की सक्रियता से मामला चंद्रशेखर बनाम आकाश हो सकता था.

बसपा को वैसे भी बहुत पाने की उम्मीद इन उपचुनावों से नहीं है लेकिन एएसपी के प्रदर्शन से तुलना तो हो ही सकती है. पार्टी कहीं एएसपी से पीछे रही तो उसे चंद्रशेखर के सामने आकाश आनंद की विफलता की तरह भी देखा जा सकता था. अब आकाश प्रचार की कमान संभालेंगे भी तो बसपा के पास यह तर्क होगा कि उनका फोकस महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों पर था.

5- महाराष्ट्र में खाता खुला तो जय-जयः महाराष्ट्र चुनाव में बसपा खाता खोलने में सफल हो जाती है तो भी आकाश आनंद की जय-जय हो जाएगी. इससे लोकसभा चुनाव में विफलता का दाग भी धुल जाएगा. महाराष्ट्र में भी ठीक-ठाक संख्या में दलित हैं और सूबे में आरपीआई, वंचित बहुजन अघाड़ी जैसी पार्टियां पहले से ही दलित पॉलिटिक्स में सक्रिय हैं. ऐसे में बसपा का एक सीट जीतना भी आकाश आनंद के लिए बड़ी सफलता की तरह होगी.

सतीशचंद्र मिश्रा की नंबर दो पर वापसी के मायने क्या

1- चुनावी चाणक्य की इमेजः सतीशचंद्र मिश्रा की इमेज चुनावी चाणक्य की है. 2007 के यूपी चुनाव में हंग विधानसभा का ट्रेंड तोड़कर बसपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही थी तो उसके लिए श्रेय सतीशचंद्र मिश्रा की चुनावी रणनीति को ही दिया गया. स्टार प्रचारकों की लिस्ट में नंबर दो पर उनकी वापसी इस बात का संकेत है कि बसपा फिर से 2007 के प्रयोग दोहराने की तैयारी में है.

  1. ब्राह्मणों को संदेशः यूपी में दलित आबादी करीब 20 फीसदी है. इनमें करीब 12 फीसदी जाटव हैं जो बसपा का कोर वोटर माने जाते हैं. सूबे की आबादी में करीब 12 फीसदी भागीदारी ब्राह्मणों की है. सतीशचंद्र मिश्रा को स्टार प्रचारकों की लिस्ट में आकाश आनंद से पहले स्थान दिए जाने को ब्राह्मण समाज को फिर से साथ लाने की कोशिश में उठाए गए कदम की तरह भी देखा जा रहा है. इस कदम के जरिये पार्टी ने ब्राह्मणों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में उनका सम्मान है.
    2007 के फॉर्मूले से आगे का संकेतः बसपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में जब पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, तब पार्टी को दलित के साथ ब्राह्मणों का भी समर्थन मिला था. बसपा ने तब अधिक ब्राह्मणों को टिकट दिया था. इस बार नौ सीटों के उपचुनाव में भी बसपा ने दो ब्राह्मणों को टिकट दिया है. दो मुस्लिम और दो ओबीसी चेहरों के साथ ही एक ठाकुर नेता पर भी पार्टी ने दांव लगाया है. यह 2007 के दलित-ब्राह्मण समीकरण से आगे दलित-सवर्ण समीकरण बनाने की रणनीति का संकेत बताया जा रहा है.
    यूपी से लेकर मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा की राजनीति में भी कभी अच्छी धमक रखने वाली बसपा अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. ऐसे में बीच चुनाव मायावती के इन फैसलों का क्या असर होता है, कितना असर होता है, यह 23 नवंबर की तारीख ही बताएगी
    लेखक : बिकेश तिवारी से साभार

 

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