एक कहानी : मुआवजा ( लेखक विनोद भगत )

मंगलू रिक्शावाले ने विधायक को दिया मुआवजा

(“इतना कहकर मंगलू ने माइक छोड़ा और चल दिया” भीतर तक आपको झकझोर देगी ये कहानी)

मुआवजा

कहानी – विनोद भगत @copyright ( लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार है )

मंगलू ने रिक्शा खड़ा किया और अपने कुर्ते की बांह से पसीना पोंछा।
दो कमरे के टूटे और गिरताऊ मकान की ओर देखा। अपनी मजदूरी की कमाई को ध्यान में रखकर उसने एक लंबी सांस ली। कुछ और सोचता कि उसकी बेटी चुन्नो घुटनों के बल चलती हुई दरवाजे की दहलीज लांघने की कोशिश करते हुए पिता की ओर निहारने लगी।

बेटी पर नजर पड़ते ही मंगलू अपनी सारी थकावट भूल गया। जल्दी से बेटी को अपनी बांहों में समेटकर वह निहाल हो उठा। ये रोज का क्रम था उसका।

अपने तीन लोगों के छोटे से परिवार में मंगलू अपनी मुफलिसी के बावजूद खुशी के पलों को तलाश लेता था। इस बीच पत्नी लाजो ने भी पति की रिक्शा की आवाज सुन ली थी। वैसे भी बेटी चुन्नो की किलकारी से भी उसे पता चल जाता था।

पति के घर आने पर नित्य प्रति की भांति लाजो ने प्लास्टिक की बाल्टी से शीशे के गिलास में पानी दिया। बेटी के साथ खेलते खेलते पानी पीते हुए लाजो कुछ सवाल भरी नजर से पति को देख रही थी।

मंगलू ने बिना कहे सवाल समझ लिया था और जबाब में ना में सिर हिला दिया।

अचानक पत्नी फट पड़ी। देखो, मैं कहती न थी।” ये नेता सिर्फ वोट मांगने ही आते हैं। ये कभी कुछ देते नहीं। “

मंगलू ने पानी पीकर गिलास नीचे रखा और बोला “लाजो, तू समझती नहीं। विधायक जी, इत्ते बड़े आदमी हैं।

अर्जी तो दे दी है। टाइप वाले की दुकान में जाकर लिखवाई। तीस रुपये लिये उसने। दो सवारी के पैसे तो अर्जी टाइप कराने में चले गए। फिर विधायक जी के आफीस में जाकर जमा करा दी है।

यह सब कहते हुए मंगलू मकान की छत से झड़ रहे प्लास्टर की ओर देखा। बोला, एक लाख रुपये की मदद दिलवाने के लिए लिखा है कि सरकार तक पहुंचा दें। मकान की मरम्मत के लिये। विधायक जी का जो आदमी बैठा था। वो तो कै रिया था अर्जी सरकार तक पहुंच जायेगी विधायक जी पहुंचा देंगे।

पति की यह बात सुनकर लाजो के चेहरे पर चमक सी आ गई।
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रात भर मंगलू सोचता रहा। कल विधायक जी से मिलेगा और उसकी अर्जी पर अपनी चिड़िया बिठाकर सरकार को भेज देंगे। छत गिरने का डर भी दूर हो जायेगा। वर्ना जब भी बारिश होती तो पूरी रात आंखों में कटती थी। कहीं छत गिर गयी तो…. । इसी चिंता में मंगलू दिन में भी रिक्शा चलाते हुये घर की चिंता में रहता।

उस दिन बाजार में एक सवारी उसकी रिक्शा में बैठी थी। उसके पास किसी का फोन आया था। फोन पर कोई बता रहा था कि किसी घर की छत गिरने से मां बेटी की मौत हो गई थी। जिस पर सरकार ने दो दो लाख का मुआवजा दिया था। सवारी की फोन पर होती बातचीत सुनकर मंगलू सरकार की मन ही मन तारीफ करता रहा। कितनी अच्छी सरकार है?

यही बातें सोचते सोचते मंगलू की आंख कब लग गई पता ही नहीं चला। सुबह जब उठा तो फटाफट तैयार हुआ। पत्नी लाजो ने रोज की तरह चाय दी और पूछा आज तो पैसे मिल जायेंगे।

मंगलू को पहले तो गुस्सा आया लेकिन फिर सवाल के पीछे पत्नी की बेबसी और चिंता को उसने महसूस कर लिया। हंसते हुये बोला, “हां, हमारे तांई धर रखे है रूपया, विधायक जी ने । इधर मैं पहुंचोंगो तो पोटली थमा देंगें मोको।

लाजो एकटक पति का मुख देखती रही। अपनी तोतली आवाज में बा,.. बा… कहती हुई चिन्नी बाप के पास आ गयी। दरअसल रोज का नियम था मंगलू रिक्शा पर अपनी बेटी को सबसे पहले सुबह बिठाकर एक चक्कर लगाता था।

मंगलू कहता था, “लाजो, हमारी चुन्नो जाय दिन रिक्शा पर नाहि बैठती तो बोहनी भी बड़ी मुश्किल से होवे। मैं तो सबसे पहले अपनी चुन्नो को सवारी बना के बैठाऊ। लक्ष्मी जी है हमार चुन्नो तो।

चुन्नो लाजो और मंगलू तीन लोगों का यह छोटा सा परिवार एक छोटे से मकान में मुफलिसी के साथ जी तोड़ मेहनत कर खुश रहने की पूरी कोशिश करता था। पर मुफलिसी में खुश दिखाई देने का जबरन प्रयास किया जा सकता है।


मंगलू जैसे ही गली के नुक्कड़ तक पहुंचा कि दो सवारियों ने उसे हाथ दिया। मंगलू सवारियों को बिठाकर उन्हें छोड़ने चल दिया। मौसम हल्की बारिश का था। बादल छाए हुए थे उमस काफी थी। लगता था कि अभी बारिश होने ही वाली है। पसीना पोंछते हुये मंगलू रिक्शा चलाने लगा। उसका ध्यान विधायक जी की तरफ था जहाँ से उसकी अर्जी सरकार तक पहुंचनी थी।

सोच में डूबे मंगलू की तंद्रा अचानक भंग हुई। रिक्शा में बैठी सवारी ने जब कहा, “अरे, रोक दे भाई, कहाँ ले जायेगा? मंगलू ने ब्रेक लगा दिया। सवारियां उतरी और बीस का नोट मंगलू के हाथ में दिया। और समय होता तो मंगलू रेट को लेकर कुछ हील हुज्जत करता लेकिन इस समय उसे विधायक जी के निवास पर जाना था। चुपचाप पैसे पकड़ कर वह आगे चल दिया।

रिक्शा की गति तेज करते हुए वह विधायक आवास पर चला। रास्ते में कई सवारियों ने उसे हाथ दिया लेकिन वह अनदेखा कर आगे चलता रहा। उसे सिर्फ अपना गिरताऊ मकान और परिवार की सुरक्षा की फिक्र थी।

विधायक निवास पर पहुंचते ही उसने बाहर ही रिक्शा खड़ा किया और भीतर जाने लगा। गेट पर बैठे गार्ड ने उसे रोक दिया। ऐ, कहाँ जा रहा है? किस्से मिलना है?

मंगलू बोला, विधायक जी से मिलना है।

गार्ड ने मंगलू को झिड़कने के अंदाज में कहा विधायक जी तेरे इंतजार में बैठे हैं जैसे।

मंगलू कुछ कहता कि विधायक जी की कार घर से निकली और उसमें बैठे विधायक जी ने मंगलू को देखा।

मंगलू ने हाथ जोड़ दिये। विधायक जी ने मंगलू के अभिवादन का जबाब देने के बजाय चेहरा घुमा लिया। वैसे भी विधायक जी मंगलू को कौन सा जानते थे। उनके विधानसभा क्षेत्र में कई मंगलू जैसे हैं।

मंगलू आश्चर्य में था। उसे याद आ गया वो दिन जब चुनाव चल रहे थे यही विधायक जी उसके आगे हाथ जोड़े आये थे।

मंगलू वापस लौटने लगा। धीमे धीमे कदमों से वह रिक्शा की ओर बढ़ गया। बारिश तेज होने लगी थी। रिक्शा की गद्दी के नीचे रखी बरसाती निकाल कर मंगलू ने ओढ़ ली। और निकल पड़ा सवारी की तलाश में।

एकाएक बारिश मूसलाधार होने लगी। सड़क के किनारे वह एक जगह पर वह बारिश के थमने का इंतजार करने लगा। ऐसे में सवारी मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

बारिश और तेज होती रही। लगभग पौन घंटे की बारिश के बाद सड़कों पर लबालब पानी भर चुका था।
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मंगलू रिक्शा लेकर चल दिया। तभी उसने देखा कि तमाम पुलिस की गाड़ियां तेजी से निकल रही थी। गाड़ियां मंगलू के घर की गली की दिशा में दौड़ती नजर आ रही थी। वैसे यह कोई नई बात नहीं थी। पुलिस की गाड़ी आती-जाती रहती थी।

मंगलू धीरे-धीरे रिक्शा पर पैडल मारता रहा और घर की ओर चल दिया। तेज बारिश मंगलू की चिंता और बढ़ा रही थी। जब भी बारिश तेज होती मंगलू चिंतित हो उठता था।

घर के पास पहुंचने ही वाला था मंगलू कि उसे अपने घर की गली की ओर लोग जाते हुये दिखाई दिये। मंगलू का दिल धक सा हो गया। किसी अनहोनी की आशंका से वह सिहर उठा।
चिंतित और परेशान मंगलू ने जैसे ही अपने घर की गली में प्रवेश किया तो वह सिहर उठा। सामने का जो नजारा था उसने मंगलू के सारे सपनों पर वज्रपात कर दिया। उसका मकान ढह चुका था तेज बारिश नहीं झेल पाया।
बेटी और पत्नी का क्या हुआ? वह यह सोचकर सिहर उठा। उसे सामने देखने का साहस नहीं हुआ। कुछ लोग एक बच्ची को गोद में लेकर बाहर निकल रहे थे। बच्ची बेजान थी। बच्ची चुन्नो ही है, है नहीं थी। कमजोर मकान बारिश नहीं झेल पाया और मंगलू इतना बड़ा दुख बर्दाश्त नहीं कर पाया। मंगलू अचेत हो गया।
वहाँ मौजूद लोगों ने उसे किसी तरह संभाला। मंगलू को काफी देर बाद होश आया।

उसके चारों ओर भीड़ लगी हुई थी। हर किसी के चेहरे पर मंगलू पर टूटे पहाड़ जैसे दुख की असीम वेदना थी। सब मंगलू के दुख में दुखी थे। बारिश थम गई थी लेकिन बारिश मंगलू की दुनिया उजाड़ कर गईं थी।
लोग दुख जता रहे थे। मंगलू को ढाड़स बंधा रहे थे। मंगलू की आंखें कहीं शून्य में ताक रही थी। मंगलू की पत्नी का रो रो कर बुरा हाल था। मकान के ढहने से वह भी चोटिल और घायल थी।
तभी एक हूटर बजाती गाड़ी का शोर सुनायी दिया। सब लोगों का ध्यान उस ओर चला गया।
विधायक जी, मौके पर पहुंच गये थे। गाड़ी से उतरे लोगों ने विधायक जी को कोई तकलीफ न हो इसलिए उनके लिए रास्ता बना दिया। विधायक जी, चेहरे पर जमाने भर का दुख समेटे हुए अंदाज में मंगलू के पास आये।
मंगलू के कंधे पर हाथ रखा। ऐसा लगा विधायक जी मंगलू के दुख से भीतर तक दुखी हैं। बस उनके रोने भर की देर थी।

बड़े करूण स्वर में बोले, “मंगलू, हमें बड़ा दुख हुआ। हम इस दुख में तुम्हारे साथ हैं। अभी मुख्यमंत्री जी से बात करते हैं। मुआवजे की बात करते हैं।

वहाँ मौजूद लोग विधायक जी की ओर प्रशंसा की नजरों से देखने लगे। विधायक जी ने तुरंत मुख्यमंत्री को फोन लगाया और हादसे की जानकारी दी।

मुख्यमंत्री जी ने विधायक की बात सुनकर तत्काल मंगलू से बात करने की इच्छा जताई।
विधायक जी, दुख के समय भी गर्व से बोले, मंगलू, सीएम साहब तुमसे बात करना चाहते हैं। और मोबाइल को स्पीकर पर डाल दिया ताकि वहाँ मौजूद सभी लोग सुन सकें।

सीएम साहब ने मंगलू की बच्ची के निधन पर शोक जताया। बोले, मंगलू हम इस दुख की घड़ी में तुम्हारे साथ हैं। हम जिलाधिकारी को आदेश दे रहे हैं कि दो लाख का मुआवजा तुम्हारी बच्ची की मौत पर और पचास हजार रुपए तुम्हारी पत्नी के घायल होने पर तुम्हें दिया जाये।
मंगलू कुछ नहीं बोला। सिर्फ विधायक जी और वहाँ मौजूद लोगों की तरफ देखता रहा। उसकी नजरे और चेहरा सपाट था।
विधायक जी ने पुनः मंगलू का कंधा थपथपाया और हूटर बजाती गाड़ी में बैठकर चले गए।
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अगले दिन मंगलू के पास सरकार की ओर से सूचना आई कि शाम को एक कार्यक्रम में उसे मुआवजा विधायक जी द्वारा दिया जायेगा।
मंगलू के चेहरे पर कोई भाव नहीं। पर मंगलू कुछ सोच रहा था।

शाम को शहर के पालिका मैदान में मुआवजा वितरण का कार्यक्रम था। शहर में कुछ अन्य दुकानों का भी नुकसान हुआ था। सभी को मुआवजा दिया जाना था।
तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ। कार्यक्रम की पूरी तैयारियां की गई थीं।
विधायक जी के कर कमलों से मुआवजा वितरित होना था। कार्यक्रम स्थल पर मीडिया को बड़ी संख्या में बुलाया गया था प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधि ससम्मान बैठाये गये थे।
मुआवजा वितरण शुरू किया गया एक एक कर लोगों के नाम पुकारे गये।
मंगलू की बारी आई। मंगलू अपना नाम पुकारे जाते ही फुर्ती से खड़ा हुआ। उसकी आंखों में परिस्थिति के विपरीत चमक दिखाई देने लगी। वह स्टेज पर पहुंचा।
मंगलू को मुआवजे की राशि का चैक दिया जाता उससे पहले मंगलू हाथ जोड़कर बोला, “बाबूजी, हम कुछ कह सकते हैं क्या? भौत जरुरी बात है। और यह कहते हुए मंगलू के शब्दों में दृढ़ता थी।

वहाँ विधायक जी समेत मौजूद हर शख्स मंगलू के इन शब्दों से चौंका। हर किसी के मन में सवाल था कि अब यह रिक्शा चालक क्या कह सकता है?
बहरहाल मंगलू को माइक दे दिया गया।
मंगलू ने माइक पकड़ लिया और बिना किसी को संबोधित करते हुए सपाट शब्दों में बोला, हम को मुआवजा नहीं चाहिये। ये मुआवजा, कहने के साथ मंगलू ने विधायक जी की ओर इशारा किया, इन्हें दे दिया जाये।
वहाँ मौजूद हर शख्स हतप्रभ रह गया। मंगलू रुका नहीं आगे बोला, “हम तो रिक्शावाला हूँ। रिक्शा चलाके अपना गुजारा करता हूं और करता रहूंगा। चुन्नो अब दोबारा वापस ना आने वाली।

चुन्नो को कुछ न होता अगर आज मेरे लिए मुआवजा दिलवाने वाले विधायक जी टूटे हुये मकान की मरम्मत के लिए पहले दी गई मेरी अर्जी मुखमंत्री तक पहुंचा देते तो आज चुन्नो मेरे पास होती। मंगलू के शब्द वहाँ मौजूद हर शख्स के लिए किसी हथौड़े से कम नहीं थे।

मंगलू बोले जा रहा था लोग सुन रहे थे किसी की आंखों में आंसू भी थे। हमारी चुन्नो तो अब वापस आने से रही इसलिए ये मुआवजा विधायक जी को दे दो कि हमारी तरह कोई दूसरा ऐसी अर्जी लेकर इनके पास आये तो यह मुआवजे का रूपया विधायक जी उसे तुरंत दे देना। कम से कम उसकी चुन्नो तो बच जायेगी।
इतना कहकर मंगलू ने माइक छोड़ा और कार्यक्रम स्थल से चल पड़ा।
किसी ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं की। विधायक जी वहाँ मौजूद भीड़, अपने समर्थकों और मंगलू की पीठ की ओर देख रहे थे। पहली बार जनता ने विधायक को मुआवजा दिया। वर्ना जनता वोट ही देती आई थी।

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