जिंदगी ने फिल्मों के विलेन सोनू सूद को रियल लाइफ ने बनाया असली हीरो,जाने
VON NEWS: पूरी दुनिया में तबाही फैलाने वाली कोरोना महामारी के दौरान जब लोग एक तरफ अपने स्वजनों के अंतिम संस्कार से भी इन्कार कर रहे थे, तब कुछ लोग प्रभावित मरीजों की सेवा कर रहे थे। लॉकडाउन से प्रभावित प्रवासियों को खाना खिला रहे थे और उन्हें घर पहुंचाने का इंतजाम कर रहे थे। ऐसे ही लोगों में रुपहले पर्दे के मशहूर विलेन सोनू सूद भी शामिल थे। अपने स्तर पर उन्होंने एक छोटी-सी शुरुआत की, जो धीरे-धीरे एक बड़े अभियान में परिवर्तित हो गई। संकटग्रस्त लोगों की मदद के दौरान हुए अनुभवों पर उन्होंने ‘मैं मसीहा नहीं’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है। पत्रकार मीना के अय्यर इस पुस्तक की सहलेखिका हैं।
पहली नजर में यह लग सकता है कि सोनू सूद ने अपनी प्रशंसा के पुल बांधने के लिए इसकी रचना की है। शायद उन्हें भी इसका अंदेशा था। इसलिए, उन्होंने पुस्तक की भूमिका में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि यह आत्मश्लाघा की कहानी नहीं है और न ही उनके जीवन में यह सब कुछ अचानक हुआ। जब तक अपने से कमतर हालात वाले किसी व्यक्ति की मदद न कर दो। सोनू ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि माता-पिता की इस सीख के बावजूद जीवन में कभी उन्हें यह महसूस नहीं हुआ कि वे इतने बड़े अभियान का हिस्सा बनेंगे। अब इस अभियान का नेतृत्व करने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि बहुत-सी बाहरी शक्तियां हमारे रास्तों का निर्माण करती हैं। गौर से देखा जाए तो यही इस पुस्तक की सबसे बड़ी सीख है।
उन्हें इस रास्ते पर लाने के लिए वे अपने पड़ोसी अजय धामा के शुक्रगुजार रहेंगे, जो उन्हें 15 अप्रैल, 2020 को ठाणो के कालवा चौक लेकर गए। इससे पहले तक दूसरी मशहूर हस्तियों की तरह सोनू भी अपने सुविधासंपन्न जीवन में मस्त थे। वे चाहते तो दूसरी शख्सियतों की तरह रिमोट कंट्रोल के सहारे दान-पुण्य का काम करके संतुष्ट हो जाते, लेकिन उनकी किस्मत में तो कुछ और लिखा था। उनकी अंतरात्मा के अंदर से वह आवाज आई,
जाहिर है, इतना सारा काम वे अकेले नहीं कर सकते थे। इसलिए, इस काम को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए उन्होंने एक प्रतिबद्ध और समर्पित टीम खड़ी की। उनकी यह टीम आज भी लोगों की मदद के काम में जुटी हुई है। पुस्तक के अंत में सोनू ने टीम के लोगों का परिचय करवाते हुए यह स्वीकार किया है कि इन लोगों के बिना वे कभी इस काम को नहीं कर पाते। इसके लिए उन्होंने सभी का आभार भी जताया है। मूल पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई है, इसलिए इसका हिंदी अनुवाद पढ़ते समय अटपटा लग सकता है। इसकी वजह यह है कि दोनों भाषाओं की प्रकृति अलग-अलग है। अंग्रेजी में लंबे और जटिल वाक्य खूब फबते हैं, लेकिन हिंदी में छोटे वाक्य ज्यादा बांधते हैं। अंग्रेजी के लंबे वाक्यों का हूबहू अनुवाद करने के कारण कई जगह वाक्य विन्यास दुरूह हो गया है।
पुस्तक : मैं मसीहा नहीं
लेखक : सोनू सूद और मीना के अय्यर
प्रकाशक : हिन्द पाकेट बुक्स
मूल्य : 250 रुपये