Update : चुनाव आयोग को पत्र देंगे दिल्ली तलब हुए मदन कौशिक ?
चुनाव आयोग को पत्र देंगे दिल्ली तलब हुए मदन कौशिक ?
देहरादून /नई दिल्ली : वॉयस ऑफ नेशन (मनीष वर्मा )कानूनी विशेषज्ञों की माने तो इतिहास गवाह है कि जब जब उप चुनावों एवं राज्यो मे मुख्यमंत्री के निर्वाचन पर संवैधानिक संकट होता है तो चुनाव आयोग, माननीय उच्च न्यायालय एवं सुप्रीम कोर्ट की दलीलों की तरफ देखा जाता है ।
राजनीति में इतिहास दोहराया जाता रहा है और ऐसा ही मामला कुछ समय पूर्व महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के संबंध में भी हुआ जिसमें ध्यान महाराष्ट्र हाई कोर्ट के आदेश की ओर जाता है और हो सकता है मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की रूलिंग उप चुनाव के आड़े न आ जाए क्योंकि उत्तराखंड में अभी विधान परिषद अस्तित्व में नही है ।
क्योंकि एक चुनाव को पूरा करने के लिए 28 दिन प्रक्रिया में लगते है और कोरोना के इस आपदा काल में चुनाव आयोग क्या निर्णय ले पाएगा यह भविष्य के गर्भ में है बरहाल सूत्र कह रहे है कि भाजपा किसी भी परिस्थिति में अपनी गलती का ठीकरा अपने हीं ऊपर नही फोड़ना चाहेगी और गेंद को चुनाव आयोग के पाले में डालकर इतिश्री करना चाहेगी जिससे कल नेतृत्व परिर्वतन की नौबत भी आए तो चुनाव आयोग या न्यायालय का निर्णय कह कर जनता और राजनीतिक पार्टियों के बे वजह आरोप प्रत्यारोप से बचा जा सके ।
हालांकि एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया मीडिया में कोरोना की तीसरी लहर को अगस्त या सितंबर में संभावित कह चुके हैं तो ऐसी स्तिथि में चुनाव आयोग क्या निर्णय ले पाएगा कहना असंभव है क्योंकि डेल्टा प्लस वेरिएंट के कुछ केसेस कई राज्यों में रिपोर्ट हुए है और चुनाव होंगे तो सिर्फ उत्तराखंड ही अछूता नहीं है बल्कि उत्तराखंड ,उत्तरप्रदेश ,बंगाल सहित 22 से अधिक सीटें शामिल है जो उप चुनाव हेतु इंतजार कर रही है ।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को दिल्ली बुलाया जाना इस बात का प्रतीक है कि चुनाव आयोग को पार्टी अध्यक्ष की ओर से उप चुनाव करवाने का पत्र दिया जा सकता है ! और उप चुनाव करवाने के लिए तैयारी शुरू करने की बात की जा सकती है, पर देखना यह कि चुनाव आयोग कितने समय में यह निर्णय ले पाएगा या मामला कोर्ट तक पहुंचेगा ?
मुख्यमंत्री ने खुद कई बार कहा है उनके चुनाव लडने का निर्णय पार्टी हाई कमान लेगा जबकि पार्टी के नेता कहते है उप चुनाव निश्चित होगा और मुख्यमंत्री चुनाव लडेंगे ।
ऐसे में मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच का निर्णय संदीप यशवंत राव सरोदे बनाम इलेक्शन कमिशन ऑफ़ इंडिया 2019 में भी बिल्कुल इसी तरह की स्तिथि आ गई थी और समय 1 वर्ष से कम रह गया था और चुनाव आयोग के पैनल ने चुनाव की इजाजत दे दी थी क्योंकि चुनाव आयोग ने उस सीट पर विधायक के इस्तीफे की तिथि से 1 वर्ष की गणना की थी पर यहां गंगोत्री उप चुनाव में विधायक का स्वर्गवास 22 अप्रेल 2021 को हुआ था पर इस गणना पर भी 18 मार्च तिथि आड़े आ रही है जिस हिसाब से एक माह और 4 दिन कम हो रहे है ।
लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 151 के तहत 2 बिंदु अहम है जिसमे एक वर्ष से कम विधान सभा/सीट का कार्यकाल शेष हो अथवा दूसरा यह कि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार में यह सहमति हो की चुनाव होना कठिन है अर्थात इन दोनो ही स्तिथि में ही चुनाव नही हो सकता पर हां यदि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की सहमति हो जाए तो चुनाव संभव है पर यदि उसको चुनौती दी गई तो आंध्र और महाराष्ट्र कोर्ट की रूलिंग आड़े आ सकती है ।
वही माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट ) की जस्टिस एस बी शुक्रे और पुष्पा वी की बेंच ने आंध्र प्रदेश के संबध चुनाव आयोग के निर्णय को गलत ठहराया था और उनके निर्णय पर रोक लगा दी थी । वही पंजाब के मंत्री तेज प्रकाश सिंह के मामले को देखे तो जिन्हे बिना चुनाव जीते दुबारा मंत्री बना दिया गया था जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने असंवेधानिक बताया था,यह भी यहां दोहराया नही जा सकता ।
चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार एस के मेंहदीरत्ता ने बताया कि उप चुनाव अब नियमित विधान सभा चुनाव के साथ ही होने के सिवा कोई अन्य नियम नहीं दिखाई देता है ।
बरहाल अभी तो मदन कौशिक दिल्ली गए है और मुख्यमंत्री और मदन कौशिक साथ ही वापस आएंगे उसके बाद चुनाव आयोग का निर्णय और आवश्यकता पड़ने पर न्यायपालिका का दरवाजा भी खटखटाया जायेगा और उसके बाद प्रयवेक्षको का दौर भी चलेगा यानी जुलाई तो इन सबमें निकेलगा ही जिससे नेताओ, अधिकारियों,मीडिया की व्यस्तता और कयासबाजी बढ़ेगी और अंत में निर्णय वही होगा जो संवैधानिक और न्याय संगत होगा ।
कुल मिलाकर लगता ऐसा है कि जैसे पटकथा लिखी जा चुकी थी और अब तो उसको फिल्माया जा रहा है ।
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