5 मार्च के बाद 12 हजार से अधिक लोग आए उत्तराखंड

उत्तराखंड में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच एक मार्च के बाद प्रदेश के बाहर से आए प्रवासियों, पर्यटकों और जमातियों तक पहुंच बनाना शासन और प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ है। अभी तक एकत्रित किए गए आंकड़ों के अनुसार 5 मार्च के बाद लॉकडाउन के शुरुआती दिनों तक तकरीबन 12 हजार लोग प्रदेश में आए हैं। इनकी पहचान कर इनसे संपर्क साधकर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली जा रही है।

इसके लिए स्थापित सेल अभी तक तीन हजार लोगों तक पहुंच चुका है और उम्मीद जताई जा रही अगले दस दिन में सभी के बारे में जानकारी मिल जाएगी। हालांकि, पुलिस ने प्रदेश में आने वाली जमातों व यहां से गई जमातों के बारे में काफी जानकारी जुटा ली है।

 अब जब संकट सिर पर खड़ा है तो कौन पनाह दे रहा है? कोरोना संक्रमण के बीच जब काम-धंधा ठप्प है तो लोग क्यों उन पहाड़ों की तरफ लौटने को आतुर हैं, जिन्हें दुर्गम बताकर पीछे छोड़ आए थे। अब परिस्थितियां विषम हई तो बड़ी संख्या में लोग पहाड़ लौट गए हैं। आगे बढ़ने में गुरेज नहीं है, पर अपनी जड़ों को भूल जाना भी गलत है। रोज नहीं, कुछ महीने नहीं, साल में एक बार तो अपने मूल स्थान की सुध लेनी चाहिए। क्या पता लोगों की हलचल पाकर सरकार भी इन गांवों की सुध ले ले। क्या पता कुछ का प्रेम भी जाग जाए पहाड़ के प्रति। रिवर्स माइग्रेशन का मतलब पीछे हटना नहीं, अपनी जड़ों को और मजबूत बनाना भी होता है।

बत्ती गुल मीटर चालू

पूरा देश कोरोना के संक्रमण से लड़ रहा है। सरकार मकान मालिकों से किराया न लेने के लिए कह रही है। कंपनियों को अपने कार्मिकों को पूरा वेतन देने की अपील की जा रही है। तमाम देनदारियों को स्थगित किया जा रहा है। एक हमारा ऊर्जा निगम है, जो चाहकर भी उपभोक्ताओं को राहत नहीं दे सकता। अब भी भावुक अपील कर बिजली का बिल मांगा जा रहा है।

बिल्कुल बत्ती गुल मीटर चालू वाला हाल है। किसी पहुंचे फकीर ने यूं ही नहीं कहा, समझदारी उसमें जो आपातकाल से पहले परिस्थितियों को वश में कर ले। समय रहते ऊर्जा निगम ने हालात पर काबू पा लिया होता तो यह दिन न देखने पड़ते। ऊर्जा निगम की माली हालत ऐसी नहीं कि वो भी सीना ठोककर कहे कि अभी कोरोना को हराओ, बिल का बाद में देख लेंगे। इससे कुछ हमदर्दी ही मिल जाती। यहां तो निगम अपना रोना लेकर बैठ गया।

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