नियमित दिनचर्या में शामिल करें योगासन और प्राणायाम:

नई दिल्ली,VON NEWS: दुनियाभर में योग की स्वीकार्यता बढ़ने के साथ वैज्ञानिक भी इसके गुणों का अध्ययन करने में जुटे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में पता चला है कि योग आधारित जीवनशैली का हमारे जींस की गुणवत्ता पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र

(सीसीएमबी), हैदराबाद और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।

शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि योग के लाभकारी गुणों का परस्पर संबंध जींस की अभिव्यक्ति को प्रभावित करने वाले गैर-आनुवंशिक (एपिजनेटिक) परिवर्तनों से है। लगातार योग के अभ्यास से पुरुषों में ऑक्सीडेटिव तनाव में कमी और फर्टिलाइजर जीन्स की गतिशीलता में सुधार देखा गया है।

इस अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों को 21 दिनों तक प्रतिदिन एक घंटा शारीरिक गतिविधियां, योगासन, श्वास क्रियाएं (प्राणायाम) और ध्यान संबंधी अभ्यास करने को कहा गया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करने पर प्रतिभागियों के फर्टिलाइजर जींस की क्रियाशीलता में जबर्दस्त सुधार देखा गया है।

शोधकर्ताओं ने डीएनए विश्लेषण की अत्याधुनिक विधियों के उपयोग से योग साधकों में जींस के मिथाइलोम को रीसेट किया है। मिथाइलोम को जींस की अभिव्यक्ति को सीधे तौर पर नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है। यहां मिथाइलोम से तात्पर्य उस रासायनिक परिवर्तन के स्वरूप से है, जिसे डीएनए मिथा लेशन कहते हैं। इस अध्ययन में मिथाइलोम का संबंध लगभग 400 जीनों में परिवर्तन के साथ जुड़ा पाया गया है। इनमें कई ऐसे जीन भी शामिल हैं, जो पुरुष प्रजनन क्षमता और भ्रूण प्रत्यारोपण में अहम भूमिका निभाते हैं

सीसीएमबी के निदेशक डॉ. राकेश मिश्र ने बताया कि इस अध्ययन में एपिजीनोमिक पद्धति के उपयोग से पहचाने गए जीन्स आगामी परीक्षणों के लिए सशक्त उम्मीदवार हो सकते हैं। यह एक शुरुआती अध्ययन है, जो सीमित प्रतिभागियों पर किया गया है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बीमारियों के उपचार के लिए योग आधारित जीवनशैली सहायक साबित हो रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि योग आधारित जीवनशैली पुरुषों को बांझपन से उबरने में मददगार हो सकती है।

पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती है आनुवंशिक प्रणाली : जीवों की आनुवंशिक प्रणाली पर्यावरणीय कारकों द्वारा व्यापक रूप से प्रभावित और नियंत्रित होती है। डीएनए अनुक्रम के विपरीत पर्यावरण के प्रभावों के कारण होने वाले एपिजेनिटिक परिवर्तन गतिशील और प्रतिवर्ती होते हैं। अस्वस्थ जीवनशैली और सामाजिक आदतों से भी हाल के वर्षों में पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी आई है। यह अध्ययन शोध पत्रिका एंड्रोलॉजिया में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ. राकेश मिश्र के अलावा शिल्पा बिष्ट, सोफिया बानू, सुरभि श्रीवास्तव, रश्मि यू. पाठक, राजीव कुमार और रीमा डाडा अध्ययन में शामिल थे।

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