लगातार करीब आ रहे भारत और अमेरिका
नई दिल्ली,VON NEWS: अधिकांश विश्लेषक इस बारे में एकमत हैं कि ट्रंप की मेहमाननवाजी में मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी और अमेरिकी नेता ने सार्वजनिक रूप से यह एलान किया कि भारत के साथ उनके देश के रिश्ते इतने अच्छे पहले कभी नहीं रहे हैं। उन्होंने तीन “अरब डॉलर“ के सैनिक सामान की खरीद वाले सौदे की पुष्टि भी की जिसमें हम 24 सी हॉक तथा 6 अपाचे हेलिकॉप्टर खरीदेंगे।
अब आप चाहें तो यह सोच-सोच कर खुश हो सकते हैं कि भविष्य में भी यह साजोसामान हमें इसी भाव मिलता रहेगा पर कहीं अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या हमें इन्हीं आयुधों की जरूरत है या इनके विकल्प किसी अन्य देश से भी हासिल किए जा सकते हैं? कुछ ही समय पहले फ्रांसीसी राफेल लड़ाकू विमानों की बड़े पैमाने पर खरीद के सौदे का चर्चा गरम था। असली बात टेक्नोलॉजी के हस्तांतरण की है जिसके बारे में कोई ठोस आश्वासन तभी दिया जा सकता है जब बड़ा सौदा पटाया जा चुका हो।
अमेरिकी विमानों आदि की खरीद का एक अर्थ यह भी है कि हम दीर्घकालीन सामरिक नीति के अनुसार ऐसा कर रहे हैं और सुरक्षा के संदर्भ में अपनी निर्भरता एक ही देश पर बढ़ा रहे हैं। एक और बात रेखांकित करने की जरूरत है। भारत और अमेरिका के उभय पक्षीय व्यापार का पैमाना 142 अरब डॉलर से अधिक है जिसका असंतुलन भारत के पक्ष में है- यह राशि पचीस-तीस अरब डॉलर आंकी जाती है।
इसे देखते तीन “अरब डॉलर” का सैनिक सौदा ऊंट के मुंह में जीरा जैसा लगता है। अमेरिका ने अपने कृषि उत्पादों तथा दूध जनित पदार्थों और मुर्गे की टांगों लिए भारत के बाजार को अबाध बनाने के लिए दबाव जारी रखा पर यहां भी इसकी एवज में भारत को कोई रियायत किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं दी गई।
ट्रंप ने जहां सबसे ज्यादा निराश किया वह पाकिस्तान से आतंकवाद का निर्यात था। उन्होंने कड़े शब्दों में कट्टरपंथी इस्लामी दहशतगर्दी की भत्र्सना तो की परंतु पाकिस्तान को अपना अच्छा मित्र बतलाया और यह हठ जारी रखा कि अमेरिकी दबाव में वह सुधर रहा है, और उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में यह सुधार जारी रहेगा।
इससे भारत को कोई सांत्वना नहीं मिल सकती। अपने दो मित्रों के बीच तनाव घटाने और विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता का प्रस्ताव मंद स्वर में ट्रंप ने फिर दोहराया। यह साफ है कि ट्रंप “अफगानिस्तान“ से निकलने के लिए तालिबान से वार्ता कर चुके हैं। यह दोहराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि भारत और अमेरिका के हित अफगानिस्तान में एक जैसे नहीं। न ही पाकिस्तान और चीन की भारत विरोधी जुगलबंदी को समाप्त करने की कोई उतावली अमेरिका को है।
इस समय ट्रंप कई मोर्चों पर जूझ रहे हैं। चीन के साथ वाणिज्य युद्ध जारी है तो ईरान के विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लागू हैं। पुतिन ने पश्चिम एशिया में उनके लिए जो जटिल चुनौती पेश की है उसकी कोई काट नजर नहीं आती।दूसरी ओर ब्रेक्जिट के बाद यूरोपीय समुदाय के साथ “अमेरिका“ के सामरिक आर्थिक संबंध भी अनिश्चित असमंजस में हैं। ऐसे में भारत यात्रा से ट्रंप ने अपने दिग्विजयी राजनयिक पराक्रम का प्रदर्शन बख़ूबी कर दिखाया।
उनके डेमोक्रेटिक विपक्षी चाहे उनकी कितनी ही आलोचना करें वह घर लौटकर अपनी झोली भरी दिखा सकते हैं। पहले यह लग रहा था कि मोदी भी इस यात्रा का राजनीतिक लाभ उठाने में सफल होंगे। अभी ट्रंप का शासनकाल नौ दस महीने चलेगा।
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