नैनीताल से था कवि लेखक मंगलेश डबराल का गहरा नाता, पढ़े पूरी खबर
VON NEWS: वरिष्ठ पत्रकार और कवि लेखक मंगलेश डबराल का नैनीताल और कुमाऊं विश्वविद्यालय से गहरा नाता रहा है। वे कई दशक से लगभग हर वर्ष नैनीताल और विशेषकर रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा पीठ में आते रहते थे। हाल में 2018 में वे यहां एक कार्यक्रम में आए थे। अंतिम समय तक भी वे इसकी कार्य परिषद के सदस्य थे।
विवि के हिंदी के पाठ्यक्रम में उत्तराखंड के साहित्यकार के पेपर में डबराल और उनका साहित्य शामिल है जो विद्यार्थियों को उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित कराता है।
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही बताते हैं कि 1998 में जब बटरोही ने विवि के हिंदी के सिलेबस को अपडेट किया था तो उसमें उत्तराखंड के मूर्धन्य कवियों, लेखकों के साथ डबराल को भी जोड़ा था। बटरोही ने गढ़वाल विवि की पाठ्य समिति सदस्य के रूप में वहां भी उन्हें पाठ्यक्रम में जोड़ा था।
उन्होंने जल्द ही आने की इच्छा जताई थी
बटरोही ने बताया कि वे डीएसबी परिसर में कविताओं की दोपहर जैसे विभिन्न आयोजनों में आते रहते थे। विवि में हिंदी के प्रोफेसर, महादेवी वर्मा पीठ के वर्तमान निदेशक और लेखक शिरीष मौर्य डबराल के बहुत बड़े प्रशंसक और उनके नजदीकी रहे हैं।
मौर्य ने बताया कि डबराल हर वर्ष पीठ के कार्यक्रमों में आते थे और हाल ही में उन्होंने जल्द ही आने की इच्छा जताई थी। मौर्य के अनुसार डबराल में सौम्यता के साथ क्रांति की ऊष्मा और बदलाव के लिए कोमलता भरी जिद का अद्भुत मेल था।
उनकी कविता की पंक्ति ‘जहां तहां जो भी बिखरा था शोर की तरह उसे ही मैं लिखता रहा संगीत की तरह’ को मौर्य उनका जीवन दर्शन बताते हैं। राजनीति में बदलते धर्म, पाशविक होते इंसान और आदमी को निगलते बाजार का विरोध उन्होंने बहुत संतुलित तरीके से किया है।
मौर्य के मुताबिक डबराल उन दुर्लभ लेखकों में से एक हैं जिन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में शानदार लेखन किया है। उनके अनुसार वर्तमान में युवा पीढ़ी और नव लेखकों में वे सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले साहित्यकार थे।
‘घर का रास्ता’ रचना से बताया था पलायन का दर्द : चीमा
1948 में टिहरी गढ़वाल स्तिथ काफ लपानी गांव में जन्मे मंगलेश डबराल हिंदी के एक वरिष्ठ कवि और पत्रकार थे। जनकवि बल्ली सिंह चीमा ने बताया कि मंगलेश की पहली रचना ‘पहाड़ पर लालटेन’ थी जिसने उस दौर में पहाड़ की जीवंत समस्याओं को बताया था।
उनकी दूसरी रचना ‘घर का रास्ता’ ने पहाड़ के पलायन को उजागर किया था। तीसरी रचना उन्होंने लिखी ‘हम जो देखते हैं’। अपनी इन्हीं रचनाओं के कारण साहित्य के क्षेत्र में मंगलेश डबराल को साहित्य अकादमी और शमशेर पुरस्कार से नवाजा गया।
अमेरिका आयोआ विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम में भी मंगलेश डबराल शामिल हुए थे। कुछ विदेशी कविताओं का भी उन्होंने हिंदी अनुवाद किया था।