हिमाचल में फीकी पडऩे लगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की चमक, पढ़े पूरी खबर
VON NEWS: कभी आकर्षक करियर रही इंजीनियरिंग की पढ़ाई की चमक फीकी पडऩे लगी है। हिमाचल के युवाओं का इंजीनियरिंग की पढ़ाई से मोहभंग होने लगा है। यही वजह है कि बहुतकनीकी व इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रशिक्षुओं की संख्या घट रही है। पांच साल में 20 से अधिक संस्थान बंद हो चुके हैं। इनमें निजी क्षेत्र के 12 बहुतकनीकी संस्थान व आठ इंजीनियरिंग संस्थान शामिल हैं। प्रशिक्षु न मिलने से कई अन्य संस्थानों के बंद होने की नौबत आ गई है।
2005 तक सरकारी क्षेत्र में था एकमात्र इंजीनियरिंग कॉलेज
सरकारी क्षेत्र में हमीरपुर में एकमात्र इंजीनियरिंग कॉलेज था। इंजीनियरिंग कॉलेज को एनआइटी का दर्जा मिलने के बाद 2005 में सुंदरनगर में इंजीनियरिंग कॉलेज खोला गया।
पांच जिलों में खोले गए पांच नए बहुतकनीकी संस्थान
सिरमौर, लाहुल-स्पीति, किन्नौर, कुल्लू व बिलासपुर में पांच नए बहुतकनीकी संस्थान खोले गए। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र में शिमला के प्रगतिनगर में इंजीनियरिंग कॉलेज व बहुतकनीकी संस्थान खोला गया। इससे प्रदेश के बहुतकनीकी संस्थानों में सीटों की संख्या 1200 से बढ़कर 2250 हो गई।
ईडब्ल्यूएस कोटे से बढ़ी 469 सीटें
ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर) कोटा लागू होने से 469 सीटें बढऩे से सीटों की संख्या 2719 हो चुकी है। आठ निजी बहुतकनीकी संस्थानों में अलग से 1000 के करीब सीटें हैं।
सरकारी क्षेत्र के 15 बहुतकनीकी संस्थानों में पिछले साल 2250 में से 1842 यानी 82 फीसद सीटें भरी थीं। इस साल कुल सीटें 2719 हो चुकी हैैं और 1899 भरी जा सकी हैैं यानी 69 फीसद। निजी संस्थानों में एक भी सीट नहीं भरी गई।
छह सरकारी व आठ निजी इंजीनियरिंग कॉलेज
प्रदेश में इस समय सरकारी क्षेत्र में छह व निजी क्षेत्र में आठ इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। सुंदरनगर, प्रगतिनगर, नगरोटा बगवां, धर्मशाला, ज्यूरी व हाइड्रो इंजीनियनिंग कॉलेज शामिल हैं। इसके अलावा मंडी, सोलन, कांगड़ा, सिरमौर व ऊना में आठ इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।
हिमाचल में 16 निजी विश्वविद्यालय खुलने से बहुतकनीकी संस्थानों में प्रशिक्षुओं की कमी आई है। कई निजी विश्वविद्यालय गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए। अभिभावकों व युवाओं का इंजीनियरिंग की पढ़ाई से मोहभंग होने का बड़ा कारण यह भी है। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में प्रशिक्षित युवा एनआइटी व अन्य बड़े संस्थानों से प्रशिक्षित युवाओं के आगे नहीं टिक पा रहे हैं। कई संस्थानों में स्टाफ की कमी है।
73 में से सात सीटें यानी 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित, 66 से 45 प्रतिशत सामान्य वर्ग व 45 फीसद आरक्षित वर्ग के लिए हैं।
45 फीसद में से 22 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 18 फीसद ओबीसी, 5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। इसी कोटे से 2 फीसद सीटें खेल व तीन प्रतिशत दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं।
निजी व सरकारी क्षेत्र में 21 बीफार्मेसी कॉलेज
हिमाचल प्रदेश के युवाओं का रुझान फार्मा क्षेत्र की तरफ अधिक देखने को मिल रहा है। इसका बड़ा कारण बीबीएन व सिरमौर के फार्मा उद्योग में रोजगार के उचित अवसर होना है। बीफार्मेसी की करीब 1000 सीटों में से मात्र 80 ही खाली हैं।
निदेशक तकनीकी शिक्षा हिमाचल प्रदेश विवेक चंदेल का कहना है प्रदेश के बहुतकनीकी संस्थानों में संख्या के हिसाब से पिछले वर्ष के बराबर सीटें भर गई हैं। ईडब्ल्यूएस कोटे की वजह से सीटें बढ़ी हैं। उन्हें भरने की प्रक्रिया चल रही है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्युनिकेशन ट्रेड में पिछले साल की तरह इस बार भी युवाओं में रुझान कम देखने को मिला है।
एसोसिएट प्रोफेसर आइआइटी मंडी आरती कश्यप का कहना है इंजीनियरिंग में युवाओं का क्रेज कम होने का सबसे बड़ा कारण नौकरी न मिलना है। बहुतकनीकी संस्थान व इंजीनियरिंग कॉलेज आवश्यकता से ज्यादा खोल दिए गए। गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया। इन संस्थानों से प्रशिक्षित युवा एनआइटी व आइआइटी से बीटेक करने वालों के आगे प्रतिस्पर्धा के मामले में नहीं टिक पा रहे हैं। युवाओं का रुझान अब फार्मा, होटल, फूड व कॉमर्स क्षेत्र की तरफ ज्यादा बढ़ा है।