नवाबी काल से एक ही रूप में है शानदार लखनवी मिठाई, जान‍िए

लखनऊ,VON NEWS: कहा जाता है कि ओस की बूंदें मोती के समान होती हैं मगर लखनऊ में इसी ओस से मक्खन बनता है। रुई सा मुलायम और खुशबूदार जिसमें मलाई और खोया की ताकत है तो दूध की पौष्टिकता भी नवंबर से फरवरी के तीन माह मिलने वाले लखनवी मक्खन का बाजार इन दिनों चौक में गुलजार है। सुबह तीन बजे से बनना शुरू होने वाला ये मक्खन सुबह सात बजे तक बाजार में आ जाता है।

चौक का ये मक्खन शहर में कहीं भी बिके मगर बनता चौक में ही है। चौक के सराय माली खां के आसपास मक्खन बनाने के अधिकांश कारीगर रहते हैं। नवाबी काल से ही लखनऊ में येे मक्खन बनाया जाता रहा है। ये उस मक्खन से कुछ अलग है जो घी के स्वरूप में होता है। ये मुख्य रूप से दूध का गाढ़ा झाग होता है। जिसमें चीनी, इलायची, केवड़ा मिलाया जाता है। जिसको केसरिया रंग और मेवा से सजाया जाता है।

रात में बांस पर टंगती हैं दूध की बाल्टियां

दोपहर भर दूध को कंडों की आंच पर उबाला जाता है। जिसके बाद गाढ़े दूध को बाल्टियों में भर कर कपड़े से बांध कर बाहर ओस में बांस पर टांग दी जाती हैं। सुबह करीब तीन बजे घर की महिलाएं इस दूध को रस्सी वाली मथानी से मथना शुरू करती हैं। जिससे उठने वाले झाग को अलग कर के बड़े तसले में जमाया जाता है। पूरा मक्खन निकलने के बाद इस पर मलाई, खोया मेवा की परत जमाई जाती है।

चीनी दूध में पहले से ही मिलाई जाती है। इसके बाद डेकोरेशन का काम आदमी करते हैं। फिर इन तसलों को लेकर सुबह करीब छह बजे मक्खन वाले गलियों बाजारों में निकेल जाते हैं। चौक के बाजार में 300 से 400 रुपए किलो की कीमत में मक्खन बेचा जाता है। चौक चौराहे पर गोल दरवाजे के बाहर सबसे बड़ा जमावड़ा लगता है। सराय माली खां के मक्खने राजेंद्र लाल साहू बताते हैं कि उनके पुरखों से ये काम होता जा रहा है। अब खाने वाले बढ़ रहे हैं। नवंबर से फरवरी तक हम मक्खन बेचते हैं और इसके बाद में कुल्फी बेचने लगते हैं।

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