अभिनय से हर दिल में समाईं माला सिन्हा,जानिए

VON NEWS: ‘हिमालय की गोद में’, ‘प्यासा’, ‘गुमराह’, ‘आंखें’, ‘धूल का फूल’, जैसी हिट फिल्मों की अभिनेत्री माला सिन्हा ने अपने तीन दशक के कॅरियर में करीब सौ फिल्में की। 11 नवंबर, 1936 को जन्मीं माला सिन्हा के पिता बंगाली और मां नेपाली थीं। सिनेमेटोग्राफर और निर्देशक प्रेम सागर जन्मदिन पर उन्हें स्नेहिल शुभकामनाएं देने के साथ ही पिता रामानंद सागर के निर्देशन में बनी फिल्मों ‘आंखें’, ‘गीत’ और ‘ललकार’ के दरम्यान माला सिन्हा के साथ बिताए लम्हों की यादें साझा कर रहे हैं..

माला सिन्हा ने हमारे साथ ‘आंखें’ के बाद ‘गीत’ और ‘ललकार’ फिल्मों में काम किया था। वर्ष 1969 में हम लोग फिल्म ‘गीत’ का निर्माण कर रहे थे। उस समय मनाली के लिए कोई हवाई जहाज सेवा नहीं थी। कुल्लू के करीब एयर फील्ड है भुंतर, वहां पर प्राइवेट प्लेन उतरते थे। पापा जी ने दिल्ली से एक प्राइवेट डकोटा प्लेन बुक कराया। वह हमें दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से कुल्लू लेकर जाने वाला था। उस फ्लाइट में राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा, मैं, मेरे भाई और पापा जी समेत फिल्म यूनिट के सभी सदस्य मौजूद थे। यात्रा के दौरान सब मस्ती कर रहे थे। उस प्लेन का पायलट डच था। मेरे बड़े भाई सुभाष प्रोडक्शन संभालते थे।

वह कुल्लू में सबके स्वागत के इंतजार में थे। एक घंटा 20 मिनट की फ्लाइट थी। मगर उससे अधिक समय हो गया। प्लेन लैंड ही नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद हमने देखा कि प्लेन डगमगा रहा है। पायलट ने अनाउंस किया कि हम पहाड़ों में भटक गए हैं। उन्हें कहीं पर क्रैश लैंडिंग करनी पड़ेगी। उस वक्त सभी के चेहरे देखने वाले थे। राजेंद्र कुमार रुआंसे थे। उन्हें लगा कि वह मरेंगे तो परिवार उनके साथ नहीं होगा। माला सिन्हा चीखें मार के रो रही थीं कि उनकी मृत्यु के साथ पूरा परिवार खत्म हो जाएगा। वह अपने माता-पिता के साथ यात्र कर रही थीं।

पापा जी पायलट के पास गए। अनुभवी पापा जी पहले भी प्राइवेट पाइपर प्लेन से कुल्लू गए थे। उन्होंने पायलट से नशा दिखाने को कहा। उनकी याददाश्त कमाल की थी। उन्होंने पायलट से उस मोड़ पर वापस चलने को कहा, जहां से प्लेन को दाएं जाना था। जब हम उतरे तो वहां पर लोगों की भीड़ थी। एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने विमान के लापता होने की घोषणा कर दी थी। रेडियो स्टेशन ने माला सिन्हा और राजेंद्र कुमार की मौत की खबर दे दी थी। हमारा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

बहरहाल, माला सिन्हा की खासियत थी कि हर किरदार में सहजता से उतर जाती थीं। कैमरे के सामने आने से पहले वह ऐसे पूछती थीं जैसे कुछ पता ही नहीं। कैमरा ऑन होते ही वह किरदार में आ जाती थीं। ‘ललकार’ में एक सीन में उन्हें पता चलता है कि उनका प्रेमी (राजेंद्र कुमार) हवाई दुर्घटना में मर गया है, पर वह इसे स्वीकारती नहीं हैं। वह दृढ़ निश्चय करती हैं कि उसे वापस लेकर आएंगी। वह सीक्वेंस है उनकी फोटो के सामने। पापा जी ने कहा कि माला आंसू चाहिए। उन्होंने उस सीन को इतनी कुशलता से किया कि हम सबके आंसू निकल आए थे।

पापा जी माहौल के अनुसार दृश्य जोड़ते थे। हम लोग ‘आंखें’ फिल्म की शूटिंग के लिए जापान गए थे। हमें जापान सरकार की ओर से टूरिस्ट गाइड मिला था। वह सिर्फ जापानी बोलता था। उसे अंग्रेजी समझ नहीं आती थी। पूरी यूनिट बस में सफर करती थी। पापा जी को बस बहुत अच्छी लगी। पापा जी ने कहा कैमरा निकालो। पूरे सीक्वेंस में धमेंद्र माला को देख रहे हैं और माला उन्हें। यह बस में ही फिल्माया गया। फिर हम रेड क्योटो टेंपल में शूटिंग करने गए। वहां बाहर पानी से भरा टब जैसा पात्र रखा होता है। उसमें से पानी निकालने के लिए लकड़ी का बड़ा सा करछुल था।

पापा जी ने वहां पर सीन सेट किया और कहा कि धरम तुम पानी पीते रहना। माला तुम्हें देखती रहेंगी। तुम्हारे साइंलेंट इश्क का सीन शूट करेंगे। धमेर्ंद्र ने जैसे ही करछुल से पानी पिया, उनका पुजारी दौड़ता हुआ आया। उसने करछुल को वापस रखा। उसने धमेर्ंद्र को उंगली से इशारा किया कि आप ये क्या कर रहे हैं। इसी बीच हमारा गाइड दौड़ता हुआ आया। उसने स्थानीय भाषा में पुजारी से हमें शूटिंग करने देने के लिए कहा। पुजारी माफी मांगने लगा। वो दृश्य देखकर माला की हंसी फूट गई थी।

‘हिमालय की गोद में’, ‘प्यासा’, ‘गुमराह’, ‘आंखें’, ‘धूल का फूल’, जैसी हिट फिल्मों की अभिनेत्री माला सिन्हा ने अपने तीन दशक के कॅरियर में करीब सौ फिल्में की। 11 नवंबर, 1936 को जन्मीं माला सिन्हा के पिता बंगाली और मां नेपाली थीं। सिनेमेटोग्राफर और निर्देशक प्रेम सागर जन्मदिन पर उन्हें स्नेहिल शुभकामनाएं देने के साथ ही पिता रामानंद सागर के निर्देशन में बनी फिल्मों ‘आंखें’, ‘गीत’ और ‘ललकार’ के दरम्यान माला सिन्हा के साथ बिताए लम्हों की यादें साझा कर रहे हैं..

माला सिन्हा ने हमारे साथ ‘आंखें’ के बाद ‘गीत’ और ‘ललकार’ फिल्मों में काम किया था। वर्ष 1969 में हम लोग फिल्म ‘गीत’ का निर्माण कर रहे थे। उस समय मनाली के लिए कोई हवाई जहाज सेवा नहीं थी। कुल्लू के करीब एयर फील्ड है भुंतर, वहां पर प्राइवेट प्लेन उतरते थे। पापा जी ने दिल्ली से एक प्राइवेट डकोटा प्लेन बुक कराया। वह हमें दिल्ली के पालम हवाई अड्डे से कुल्लू लेकर जाने वाला था। उस फ्लाइट में राजेंद्र कुमार, माला सिन्हा, मैं, मेरे भाई और पापा जी समेत फिल्म यूनिट के सभी सदस्य मौजूद थे। यात्रा के दौरान सब मस्ती कर रहे थे। उस प्लेन का पायलट डच था। मेरे बड़े भाई सुभाष प्रोडक्शन संभालते थे।

वह कुल्लू में सबके स्वागत के इंतजार में थे। एक घंटा 20 मिनट की फ्लाइट थी। मगर उससे अधिक समय हो गया। प्लेन लैंड ही नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद हमने देखा कि प्लेन डगमगा रहा है। पायलट ने अनाउंस किया कि हम पहाड़ों में भटक गए हैं। उन्हें कहीं पर क्रैश लैंडिंग करनी पड़ेगी। उस वक्त सभी के चेहरे देखने वाले थे। राजेंद्र कुमार रुआंसे थे। उन्हें लगा कि वह मरेंगे तो परिवार उनके साथ नहीं होगा। माला सिन्हा चीखें मार के रो रही थीं कि उनकी मृत्यु के साथ पूरा परिवार खत्म हो जाएगा। वह अपने माता-पिता के साथ यात्र कर रही थीं।

पापा जी पायलट के पास गए। अनुभवी पापा जी पहले भी प्राइवेट पाइपर प्लेन से कुल्लू गए थे। उन्होंने पायलट से नशा दिखाने को कहा। उनकी याददाश्त कमाल की थी। उन्होंने पायलट से उस मोड़ पर वापस चलने को कहा, जहां से प्लेन को दाएं जाना था। जब हम उतरे तो वहां पर लोगों की भीड़ थी। एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने विमान के लापता होने की घोषणा कर दी थी। रेडियो स्टेशन ने माला सिन्हा और राजेंद्र कुमार की मौत की खबर दे दी थी। हमारा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

बहरहाल, माला सिन्हा की खासियत थी कि हर किरदार में सहजता से उतर जाती थीं। कैमरे के सामने आने से पहले वह ऐसे पूछती थीं जैसे कुछ पता ही नहीं। कैमरा ऑन होते ही वह किरदार में आ जाती थीं। ‘ललकार’ में एक सीन में उन्हें पता चलता है कि उनका प्रेमी (राजेंद्र कुमार) हवाई दुर्घटना में मर गया है, पर वह इसे स्वीकारती नहीं हैं। वह दृढ़ निश्चय करती हैं कि उसे वापस लेकर आएंगी। वह सीक्वेंस है उनकी फोटो के सामने। पापा जी ने कहा कि माला आंसू चाहिए। उन्होंने उस सीन को इतनी कुशलता से किया कि हम सबके आंसू निकल आए थे।

पापा जी माहौल के अनुसार दृश्य जोड़ते थे। हम लोग ‘आंखें’ फिल्म की शूटिंग के लिए जापान गए थे। हमें जापान सरकार की ओर से टूरिस्ट गाइड मिला था। वह सिर्फ जापानी बोलता था। उसे अंग्रेजी समझ नहीं आती थी। पूरी यूनिट बस में सफर करती थी। पापा जी को बस बहुत अच्छी लगी। पापा जी ने कहा कैमरा निकालो। पूरे सीक्वेंस में धमेंद्र माला को देख रहे हैं और माला उन्हें। यह बस में ही फिल्माया गया। फिर हम रेड क्योटो टेंपल में शूटिंग करने गए। वहां बाहर पानी से भरा टब जैसा पात्र रखा होता है। उसमें से पानी निकालने के लिए लकड़ी का बड़ा सा करछुल था।

पापा जी ने वहां पर सीन सेट किया और कहा कि धरम तुम पानी पीते रहना। माला तुम्हें देखती रहेंगी। तुम्हारे साइंलेंट इश्क का सीन शूट करेंगे। धमेर्ंद्र ने जैसे ही करछुल से पानी पिया, उनका पुजारी दौड़ता हुआ आया। उसने करछुल को वापस रखा। उसने धमेर्ंद्र को उंगली से इशारा किया कि आप ये क्या कर रहे हैं। इसी बीच हमारा गाइड दौड़ता हुआ आया। उसने स्थानीय भाषा में पुजारी से हमें शूटिंग करने देने के लिए कहा। पुजारी माफी मांगने लगा। वो दृश्य देखकर माला की हंसी फूट गई थी।

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