डोबराचांठी पुल : ‘भ्रष्टाचार’ बनाम ‘इच्छाशक्ति’
डोबराचांठी पुल : ‘भ्रष्टाचार’ बनाम ‘इच्छाशक्ति’
इच्छाशक्ति हो तो वर्षों से तमाम झंझावातों में फंसा बड़ा से बड़ा कोई प्रोजेक्ट कैसे चंद समय में पूरा हो जाता है, इसका सटीक उदाहरण है उत्तराखण्ड का ‘डोबराचांठी पुल’। 11 वर्षों से अटके पड़े इस पुल का निर्माण मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सख्ती के बाद महज साढ़े तीन वर्ष में पूरा कर लिया गया। 3 अरब की लागत से तैयार डोबराचांठी पुल के बनने से प्रतापनगर-सभागाँव क्षेत्र के तकरीबन 3 लाख लोगों को राहत मिलेगी।
8 नवम्बर 2020 का दिन टिहरी जनपद के लिये ऐतिहासिक होगा। इस दिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ‘डोबराचांठी पुल’ के रूप में प्रतापनगर-सभागाँव क्षेत्र की जनता के लिए खास सौगात देने जा रहे हैं। खास बात यह है कि डोबराचांठी पुल देश का सबसे लम्बा (440 मीटर) मोटरेबल झूला पुल है। पुल बनने से प्रतापनगर-सभागाँव क्षेत्र की जनता को अपने जिला मुख्यालय टिहरी आने-जाने में 100 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी। इससे धन, समय और श्रम तीनों की बचत होगी। 440 मीटर लम्बे इस पुल के निर्माण में 14 वर्ष का लम्बा समय लग गया, जिससे इसकी लागत 1.38 अरब से बढ़कर ढाई गुनी हो गई। दरअसल, ‘डोबराचांठी पुल’ का निर्माण वर्ष 2006 में शुरू हुआ था। लेकिन डिजाइन फेल होने, भ्रष्टाचार और अफसरों की लापरवाही से प्रोजेक्ट का निर्माण कभी ‘अटक’ गया तो कभी ‘लटक’ गया। इस अवधि में क्षेत्र की जनता परेशान रही। उसकी कहीं सुनवाई नहीं हुई। वर्ष 2017 में सत्ता में आने के बाद त्रिवेन्द्र सरकार ने इस प्रोजेक्ट की अहमियत समझते हुये इसे अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखा। अधूरे पड़े पुल के निर्माण के लिये 88 करोड़ का बजट एकमुश्त स्वीकृत किया गया। मिशन मोड में प्रोजेक्ट फिर से शुरू हुआ। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने निरन्तर पुल के निर्माण कार्य की प्रगति परखी और जांची भी। उनकी इच्छाशक्ति की बदौलत आज यह पुल अपना पूरा आकार ले चुका है। उत्तराखण्ड की इस नई धरोहर को मुख्यमंत्री अब जनता को समर्पित करने जा रहे हैं।
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