20 साल पहले पलायन से खाली हो चुके रिठा गांव में लौटी हरियाली, पढ़िए पूरी खबर

चम्पावत,VON NEWS:  20 वर्ष पूर्व पलायन से खाली हो चुके चम्पावत जिले के रिठा गांव की बंजर जमीन एक बार फिर हरियाली से लहलहा उठी है। जिन बुजुर्गों ने बुनियादी सुविधाओं के अभाव की पीड़ा में गांव छोड़ा था उन्हीं की औलादें अब बेरोजगारी की पीड़ा से गांव की ओर लौटने लगी हैं। खाली हो चुके गांव के ही चार बेरोजगार युवाओं ने 300 नाली जमीन को लीज पर लेकर आलू की फसल उगाई है। इन दिनों आलू की फसल यौवन पर है और लहलहाते खेतों को देख युवा काश्तकारों को अपनी मेहनत और इरादे पर नाज है। संकल्प से सिद्धि तक के सफर का यह जिले में पहला उदाहरण है।

युवाओं की इस पहल ने सुविधाओं के अभाव का रोना रोकर गांव छोड़ रहे लेागों को आइना तो दिखाया ही है साथ में इस बात का भी संकेत दिया है कि बेरोजगारी की स्थिति में गांव की आबोहवा और वहां की मिट्टी को छोड़कर अधिक दिनों तक मुंगेरी लाल के हसीन सपने नहीं देखे जा सकते। लफड़ा ग्राम पंचायत के वीरान और भुतहा हो चुके रिठा तोक की बंजर धरती को आबाद करने वाले युवाओं में गंगादत्त जोशी, वर्षीय प्रकाश चंद्र जोशी, गणेश दत्त जोशी और मुलीधर जोशी शामिल हैं। रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को बाद इन युवाओं ने गांव की बंजर जमीन आबाद करने का निर्णय लिया।

आपस में पैसा इकट्ठा कर गांव की 300 नाली बंजर जमीन को 20 साल तक लीज में लेने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद इन्होंने खेतों में उगी कंटीली झाडिय़ों को साफ करवाने के बाद उनकी खुदाई करवाई और 40 कुंटल पीला चपटा आलू का बीज बोया। इस समय पूरी जमीन आलू की फसल से लहलहा रही है। युवाओं ने खेतों में गोबर की खाद डाली है। खेतों तक गोबर पहुंचाने में इनके परिजनों ने भी मदद की। युवाओं ने बताया बताया कि आगामी सीजन में सभी प्रकार की सब्जियां पैदा की जाएंगी। खास बात यह है कि जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा के लिए युवा रात में अलाव जलाकर पहरा हे हैं। इन युवाओं की पहल पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। बुजुर्ग लोग उनके इस कार्य की दाद दे रहे हैं। इनका कहना है कि वह गांव में खंडहर हो चुके अपने पुस्तैनी मकानों को नए सिरे से बनाकर गांव को भी आबाद करना चाहते हैं।

20 साल पहले खाली हो गया था गांव

जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर लफड़ा पंचायत के रिठा गांव में रहने वाले 15 परिवारों ने उपजाऊ जमीन और अपने पुस्तैनी आशियाने को 20 साल पहले छोड़ दिया था। इनमें से कुछ ने लफड़ा गांव में रहना शुरू कर दिया तो कुछ चम्पावत नगर में आ गए। ग्रामीणों के पलायन का कारण सड़क, बिजली और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। आज भी इस गांव की स्थिति जस की तस है। यही कारण है कि जो लोग गांव लौटना चाह रहे हैं वह चाहकर भी नहीं जा पा रहे हैं।

न सहायता मिली न प्रोत्साहन

गांव की बंजर जमीन को आबाद करने वाले युवाओं को न तो विभागीय स्तर पर कोई सहायता मिली है और न ही प्रोत्साहन। अपने दम पर अब तक वह झाड़ी कटान से लेकर जमीन खोदकर खेत तैयार और आलू बीज खरीदने में दो लाख से अधिक रुपया खर्च कर चुके हैं।

अभी भी उदास हैं बाखलियां

युवाओं ने भले ही पूरे गांव की बंजर जमीन को हरा भरा कर दिया हो लेकिन गांव की पगडंडी और बाखलियां अभी भी वीरानी और उदासी की हालत में हैं। लगभग 20 घर या तो खंडहर हो चुके हैं या फिर होने की कगार में हैं। युवाओं की इस पहल से बिजली पानी की सुविधा मिलने के बाद अब गांव के अन्य लोग भी गांव जाना चाहते हैं।

सिंचाई सुविधा का अभाव फेर सकता है मेहनत पर पानी

चम्पावत। युवाओं ने भले ही 300 नाली जमीन में साग सब्जी लगाकर बेहतर भविष्य का सपना बुना हो, लेकिन सिंचाई सुविधा का अभाव इनकी मेहनत पर पानी फेर सकता है। युवाओं का कहना है कि गांव के ठीक नीचे नदी बहती है जहां से खेतों की सिंचाई के लिए पानी मिल सकता है। लेकिन इसके लिए उन्हें सरकारी मदद की जरूरत होगी।

बंजर जमीन को आबाद करने का काम सराहनीय

जिला उद्यान अधिकारी चम्पावत एनके आर्या ने बताया कि युवाओं द्वारा पलायन से खाली हुए गांव की बंजर जमीन को आबाद करने का काम अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। मौके पर जाकर वस्तु स्थिति का अवलोकन करने के बाद विभागीय स्तर पर जो सुविधाएं दी जा सकती हैं, उन्हें उपलब्ध कराया जाएगा।

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