उत्तराखंड की सबसे बड़ी एफआइआर,पढिये पूरी खबर

काशीपुर,VON NEWS.  काशीपुर कोतवाली में लिखी गई प्रदेश की सबसे लंबी एफआइआर एक साल का लंबा समय बीतने के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है। विवेचना डंप पड़ी हुई है और पुलिस अन्य केसों में व्यस्त हो गई है। सात दिन में लिखी गई एफआइआर 365 दिन बीतने के बाद भी गति नहीं पकड़ पाई है।

आरोपित ने कोर्ट से स्टे ले रखा है और संबंधित एजेंसी पेनाल्टी मिल जाने के कारण शांत है। ऐसे में प्रदेश की सबसे बड़ी एफआइआर अब सबसे लंबी विवेचना बनने के कगार पर पहुंच गई है। केस में अंतिम रिपोर्ट दाखिल होगी या चार्जशीट लगाई जाएगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लंबी माथापच्ची के बाद भी विवेचक को इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि आखिर इस केस का क्या करें? ऐसे में सबसे सुरक्षित तरीका निकाला गया कि विवेचना को ठंडे बस्ते में ही रहने दिया जाए।

सितंबर 2019 में काशीपुर कोतवाली में 50 पेज से ज्यादा की तहरीर पहुंची तो सभी आश्चर्य में पड़ गए। इतनी बड़ी तहरीर उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी। आयुष्मान घोटाले से संबंधित यह तरीर काशीपुर के दो अस्पताल एमपी मेमोरियल और देवकीनंदन अस्पताल के खिलाफ थी।

मामला बड़ा था तो एफआइआर लिखने की शुरुआत की गई। सात दिन में 58 पेज की यह एफआइआर लिखकर तैयार हुई। पुलिस अधिकारियों के अनुसार धोखाधड़ी समेत तमाम केसों में आमतौर पर दो से तीन माह में चार्जशीट या फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी जानी चाहिए, लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ। न जाने क्यों विवेचना का दायरा लंबा होता चला गया। एक महीना बीता फिर दूसरा और तीसरा महीना बीत गया, लेकिन केस जहां था वहीं ठहरा रहा। इसी बीच आरोपित कोर्ट से स्टे ले आए और गिरफ्तारी के रास्ते बंद हो गए।

पुलिस विवेचना की दिशा तय कर पाती इससे पहले ही दूसरा झटका लगा। आरोपितों ने वह पैसा जमा कर दिया, जिसे हड़पने का उन पर आरोप लगाया गया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार केस में अस्पतालों के खिलाफ दस्तावेजी सबूत मिले हैं। ऐसे में केस खत्म कर पाना संभव नहीं हो रहा है, लेकिन अटल आयुष्मान योजना का क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी ने कह दिया कि पैसा जमा हो गया है, ऐसे में कार्रवाई की जरूरत नहीं है।

अब पुलिस यह तय नहीं कर पा रही है कि आखिर इस केस में चार्जशीट लगाई जाए या फिर अंतिम रिपोर्ट भेजी जाए। पुलिस कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक इसी को लेकर चिंतित हैं कि आखिर केस को किस दिशा में ले जाया जाए। चार्जशीट लगाई जाए या एफआर दाखिल की जाए इसको लेकर माथापच्ची चल रही है, लेकिन अभी तक यह तय नहीं हो पाया कि आखिर केस में करना क्या है? विद्वान अधिवक्ताओं का कहना है कि अगर किसी केस में दस्तावेजी सबूत है तो पुलिस चार्जशीट दाखिल कर सकती है। पर्याप्त सबूत होने पर एफआर नहीं लगाई जा सकती।

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