लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों का पैरोकार होने का स्वांग- चालबाज चीन का
VON NEWS. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में चीन का चुना जाना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अब संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों के शोषकों के आगे घुटने टेक दिए हैं। भविष्य में वह मानवाधिकारों की लड़ाई चीन जैसे देशों के खिलाफ सख्ती से नहीं लड़ पाएगा। चीन के समर्थन से पाकिस्तान और नेपाल भी चुने गए हैं। रूस और क्यूबा जैसे अधिनायकवादी देश भी इस परिषद के सदस्य हैं। इस कारण यूएनएचआरसी की विश्वसनीयता लगातार घट रही है।
पाकिस्तान में हिंदुओं पर निरंतर अत्याचार : अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने बयान दिया है कि ऐसे हालातों के चलते परिषद से अमेरिका के अलग होने का फैसला उचित है। दरअसल जब अमेरिका ने परिषद से बाहर आने की घोषणा की थी, तब संयुक्त राष्ट्र ने सदस्य देशों से परिषद में तत्काल सुधार का आग्रह किया था, परंतु किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया।
आज स्थिति यह है कि अधिकतम मानवाधिकारों का हनन करने वाले देश इसके सिरमौर बन बैठे हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं और इसाइयों के साथ-साथ अहमदिया मुस्लिमों पर निरंतर अत्याचार हो रहे हैं। वहीं चीन ने तिब्बत को तो निगल ही लिया है, उइगर मुस्लिमों का भी लगातार शोषण कर रहा है।
चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों से वियतनाम चिंतित है। हांगकांग में वह एकतरफा कानूनों से दमन की राह पर चल रहा है। इधर चीन और कनाडा के बीच भी मानवाधिकारों के हनन को लेकर तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। भारत से सीमाई विवाद तो सर्वविदित है ही। लोक-कल्याणकारी योजनाओं के बहाने चीन छोटे से देश नेपाल को भी तिब्बत की तरह निगलने की फिराक में है। साफ है, चीन वामपंथी चोले में तानाशाही हथकंडे अपनाते हुए हड़प नीतियों को बढ़ावा दे रहा है।
मानवाधिकारों के समर्थन में वह मजबूती से खड़े रहेंगे : चीन की स्थितियों को देखते हुए हाल ही में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो ने कहा है कि उनका देश चीन में होने वाले मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ हमेशा खड़ा रहेगा।
कनाडा में चीन के राजदूत कोंग पियू ने हांगकांग छोड़कर आ रहे लोगों को शरण नहीं देने के मामले में ओटावा को चेतावनी देते हुए कहा है कि कनाडा हांगकांग में रहने वाले तीन लाख कनाडाई नागरिकों के बारे में और वहां कारोबार कर रही कंपनियों के बारे में सोचता है तो उसे चीन के हिंसा से लड़ने के प्रयासों में सहयोग करना होगा। टूडो ने स्पष्ट किया है कि मानवाधिकारों के समर्थन में वह मजबूती से खड़े रहेंगे। फिर चाहे बात कनाडाई नागरिकों की हो या उइगर समुदाय के शोषण की?