सूचना विभाग में 5 करोड़ के बिल लैप्स क्यों हुए DG सूचना खामोश क्यों ?

सूचना विभाग में 5 करोड़ के बिल लैप्स क्यों हुए । DG सूचना खामोश क्यों ?

देहरादून : उत्तराखंड सूचना विभाग के ढीलेपन के चलते मार्च में लगभग 5 करोड़ के बिल लेप्स हो गए और अभी तक सूचना विभाग का बजट वित्त से पास न होने के कारण पत्रकारों के बिल पास नही हो पाए जिस कारण लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ।

आपको बता दे कि मार्च से लेकर अब तक सूचना विभाग द्वारा पत्रकारों के बिलो को पास नही किया गया और श्री देव सुमन व वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के नाम पर भी सिर्फ खानापूर्ति के चलते नाम मात्र का विज्ञापन जारी किया गया । वही अप्रैल के महीने में खानापूर्ति के नाम पर नाम मात्र आर. ओ. दिया गया पर विज्ञापन के कागज से तो पीड़ा का समाधान नही होता यह महानिदेशक महोदय को कौन समझाए ।

हालांकि इसका कारण सूचना विभाग द्वारा कर्मचारियों की हड़ताल व उसके बाद कोरोना लॉक डाउन बताया गया पर सवाल यह है कि जबसे कार्यालय खुलने के आदेश हुए है तब तो यह कार्य संपादित किया जा सकता था परन्तु इस मुद्दे पर भी बजट का हवाला देकर पत्रकारों को टाल दिया गया जो कि सूचना विभाग व महानिदेशक सूचना का निकम्मापन है यदि ये चाहते तो छोटे व मंझोले पत्रकारों को उचित व्यवस्था करके प्राथमिकता के आधार पर उनके बिलो का भुगतान कर सकते थे ।
प्रश्न यह है कि जब लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के साथ यह खिलवाड़ हो रहा है तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा ? कम से कम सूचना महानिदेशक को तो इन सब बातों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए था पर उनके पास विभाग इतने ज्यादा है और वे अपर सचिव मुख्यमंत्री भी है तो मुख्यमंत्री के सारे विभाग भी उन्हीं के हुए और वे खनन के निदेशक भी है जिस कारण लगता है उनके फुर्सत ही नहीं है । ये बात दीगर है कि सूचना विभाग को अपडेट करने में महानिदेशक ने कोई कसर नही छोड़ी पर अपडेट करने से छोटे व मंझोले पत्रकारों का दुख दर्द कहाँ दूर होता है साहब ?

हालांकि अब मई का महीना आ चुका है और यह आपदा का वर्ष भी है
और इस लापरवाह विभाग के अधिकारी ,कर्मचारी, व महानिदेशक की इतनी बड़ी लापरवाही है कि कोई पत्रकारों की सुध नही ले रहा है और पत्रकार अपने दर्द को लेकर कहाँ जाए ?

इस विषय पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन,उत्तराखंड के अध्यक्ष व दर्जन भर पत्रकार संगठन व सरकार ने शामिल जन प्रतिनिधि श्री मनीष वर्मा इस मुद्दे पर बड़ा प्रतिनिधिमंडल लेकर महानिदेशक से मिलना चाहते थे पर सोशल डिस्टेंसिन के चलते महानिदेशक ने मिलने से मना कर दिया व whstup पर ज्ञापन भेजने को कहा गया ।

श्री मनीष वर्मा द्वारा महानिदेशक को ज्ञापन whstup के माध्यम से प्रेषित कर दिया गया है जिसमे 48 घन्टे में बजट आवंटन करवा कर छोटे मंझोले पत्रकारों को भुगतान करने का अल्टीमेटम दिया गया है जिसमे मुख्यत: यह लिखा है कि 48 घंटे में पत्रकारों की समस्या पर निर्णय नही लिए जाने पर पत्रकारों द्वारा राज्य सरकार की समाचार व विज्ञप्तियों /बुलेटिन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया जा सकता है व वित्त सचिव, मुख्य सचिव का घेराव किया जा सकता है तथा मुख्यमंत्री से भेंट कर सूचना विभाग की कार्यप्रणाली के सम्बन्घ में अवगत करवाया जाएगा व अन्य कई निर्णय भी लिए जा सकते है ।

श्री मनीष वर्मा ने मांग की है जब तक बजट की व्यव्यस्था नहीं हो जाती तब तक सभी पंजीकृत व गैर पंजीकृत पत्रकारों को राहत कोष से 15-15 हजार की आर्थिक मदद की जाए और राज्य के,यशस्वी,ईमानदार संवेदनशील मुख्यमंत्री त्रिवेंन्द्र सिंह रावत इस पर गंभीरता से विचार कर शीघ्रातिशीघ्र निंर्णय लेंगे ।

(आपको बता दे कि श्री मनीष वर्मा व उनसे संबंधित किसी भी प्रकाशन का सूचना विभाग में आज तिथि तक कोई बिल जमा या भुगतान लंबित नही है यह इसलिए लिखा जा रहा है कि पत्रकारों की भावनाओ को श्री मनीष वर्मा ने लॉक डाउन के दौरान समझा व परखा है व सरकार तक उनकी आवाज पहुँचाना वे जन प्रतिनिधि व सरकार में शामिल होने के कारण अपना कर्तव्य समझते है )

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