कोरोना के इलाज में उम्मीद की नई किरण,

नई दिल्ली,VON NEWS: कोरोना के इलाज में उम्मीद की एक नई किरण दिखी है। इस बीमारी से ठीक हो चुके मरीज के ब्लड प्लाज्मा से नए मरीजों के इलाज में मदद मिली है। चीन में देखा गया है कि कोरोना के गंभीर मरीजों को यह प्लाज्मा दिए जाने के 72 घंटे में ही उनके लक्षण खत्म होने लगे और हालत में सुधार भी हुआ। ब्रिटेन और अमेरिका में भी ठीक हो चुके कोरोना मरीजों के खून से इलाज के अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

कोविड-19 से उबरे मरीजों के प्लाज्मा में वह एंटीबॉडीज पाया जाता है, जो वायरस के सफाये के लिए उनकी इम्युनिटी के लिए जरूरी होता है। इसे कान्वलेसंट प्लाज्मा थैरेपी के रूप में जाना जाता है। इस थैरेपी का इस्तेमाल पहली बार एक शताब्दी पहले 1918 में स्पैनिश फ्लू महामारी के समय हुआ था। यह थैरेपी जीवन रक्षक साबित हो रही है और एक छोटे समूह पर किए प्रयोग में कोई गंभीर साइड इफेक्ट भी नहीं देखा गया है।

कोरोना:

ब्लड प्लाज्मा से इलाज की नई किरण ब्लड प्लाज्मा देने वाली टिफ्फनी मौजूदा महामारी में कोरोना से उबर चुकी 39 वर्षीय एक महिला टिफ्फनी पिंकेनी पिछले सप्ताह अपना ब्लड प्लाज्मा देने वाली पहली अमेरिकी बनीं। वह अब खुद को नए मरीजों के लिए ‘आशा की किरण’ मानती हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि कान्वलेसंट प्लाज्मा पर और अध्ययन की जरूरत है, क्योंकि अभी तक उसके असर का कोई ठोस निष्कर्ष का सबूत नहीं मिला है।

क्या है प्लाज्मा

प्लाज्मा रक्त की मात्रा का लगभग 55 फीसद बनाता है और लाल तथा श्वेत रक्त कोशिका के लिए तरल पदार्थ उपलब्ध कराता है, जो उसे पूरे शरीर में ले जाता है। इसे रोगियों को उचित मात्रा में दिए जाने से एंटीबॉडीज बनता है। लोगों द्वारा यह एंटीबॉडीज सिर्फ संक्रमित हो चुके लोगों से ही बनाया जा सकता है। सार्स और कोरोना वायरस-2 के मामलों में यह देखा जा चुका है कि एंटीबॉडीज किस प्रकार कारगर होते हैं, इसलिए कोविड-19 के इलाज में भी इसे एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि वैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए और भी तरीकों की खोज कर रहे हैं।

यह कैसे करता है काम

ब्लड बैंक खून की तरह ही प्लाज्मा का भी डोनेशन लेता है। यदि कोई व्यक्ति सिर्फ प्लाज्मा डोनेट करता है तो उसका खून एक ट्यूब के जरिए निकाला जाता है और उसमें से प्लाज्मा निकाल कर शेष को डोनर के शरीर में वापस पहुंचा दिया जाता है। इसके बाद प्लाज्मा की जांच कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि कहीं उसमें कोई रक्त जन्य वायरस तो नहीं है और क्या इसका इस्तेमाल सुरक्षित है। कोविड-19 के शोध के लिए इस बीमारी से उबर चुके लोग डोनर हो सकते हैं।

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