क्या टीबी वैक्सीन कर पाएगी कोरोना वायरस से बचाव?

नई दिल्ली,VON NEWS: कोरोना वायरस महामारी से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। रोज़ाना हज़ारों की संख्या में लोग मर रहे हैं। मौत का तांडव बदस्तूर जारी है। दुनिया के 178 देश पूरी रह से लॉकडाउन की स्थिति में हैं। देश और प्रदेश की सीमाएं सील हैं, जो जहां है वे वहीं पर स्थिर रहने को मजबूर हैं। चिकित्सा और विज्ञान जगत में हड़कंप मचा हुआ है। वैज्ञानिक और डॉक्टर्स इसकी तोड़ ढूंढने में दिलों जान से जुटे हैं।

ऐसे में मेलबर्न के डॉक्टर्स को ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी की रोकथाम के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैक्सीन दी गई है, ये देखने के लिए कि क्या कोरोना वायरस के मरीज़ों पर भी काम कर पाएगी या नहीं।

बैसिलस कैलमेट-ग्यूरिन या BCG शॉट का इस्तेमाल पिछले 100 सालों से किया जा रहा है। इस शॉट के ऑफ-टारगेट लाभों को देखते हुए इसकी बड़ी प्रशंसा हुई है। ये न सिर्फ ब्लैडर कैंसर की शुरुआती स्टेज के लिए एक आम इम्यूनोथैरेपी है बल्कि ये किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर के पहले इम्यून डिफेंस को बेहतर तरीके से ट्रेन करती है।

क्या BCG शॉट आएगा काम?

कोरोना वायरस के खिलाफ स्पेशन वैक्सीन आने में कम से कम एक साल है, ऐसे में WHO का कहना है कि तब तक ये जानना ज़रूरी है कि क्या BCG वैक्सीन उन लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करेगी जो इससे पीड़ित हैं। मेलबर्न के मरडॉक चिल्ड्रन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के इंफेक्शियस डिसीज़ रिसर्च के हेड, नाइजेल कर्टिस BCG पर रिसर्च कर रहे हैं। WHO अंतर्राष्ट्रीय समूहों को प्रोत्साहित कर रहा है कि वो भी इस अध्ययन में नाइजिल का सहयोग करें।

ऑस्ट्रेलिया में अस्पताल के 4000 हेल्थ केयर स्टाफ ने 6 महिने तक चलने वाले इस ट्रायल के लिए वॉलंटियर किया है। सोमवार से शुरू हुए इस ट्रायल में एक-एक करके सबको फ्लू, टीबी और इंफ्लूएंज़ा के खिलाफ ये वैक्सीन लगेगा। इस दौरान प्लेसबो वैक्सीन एक कंट्रोल के तौर पर काम नहीं करेगी क्योंकि BCG का शॉट त्वचा पर रिएक्शन की वजह से निशान छोड़ता है, जिससे ये साफ हो जाएगा कि किस ग्रुप को ये वैक्सीन लगाया गया है।

स्वास्थ्य कर्मी हैं प्राथमिकता

इसी तरह की रिसर्च नीदरलैंड में भी की जा रही है। कर्टिस ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह ऑस्ट्रेलिया के बाकी शहरों के साथ बॉस्टन के साथ भी लगातार चर्चा कर रहे हैं। उनको उम्मीद है कि यह वैक्सीन जो बिल्कुल महंगी नहीं है और हर साल 13 करोड़ नवजात बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए लगाई जाती है, अब कई और लोगों की हिफाज़ करने में काम आ सकती है। इस वक्त प्राथमिकता हेल्थ वर्कर्स को दी जा रही है, जिन्हें बीमार रोगियों की देखभाल करते समय कोरोना वायरस से संक्रमित होने का अधिक ख़तरा है। कर्टिस का कहना है कि हमें हर हाल में ऐसा रोस्ता ढूंढ़ना है जिससे हम स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा कर सकें।

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