पढ़े 5 साल का मुख्य विश्लेषण:अबकी बार शराब,मुर्गा,किराए की भीड़ वाले हुए निराश,न नुक्कड़ सभा,न रैली और पदयात्रा।सिर्फ 5 लोगो के साथ जायेंगे प्रत्याशी घर-घर ।
नई दिल्ली/उत्तराखंड : वॉयस ऑफ नेशन (मनीष वर्मा ) जहां वर्तमान विधायकों ,मंत्रियों में कुछ लोगो ने 5 साल बाद आचार संहिता लगने के बाद चैन की सांस ली है क्योंकि उनका जनता से और रोज रोज की ढिंगा मुश्ती से पीछा छूटा वही कुछ ऐसे भी है जो ये सोच रहे हैं की अब क्या और कैसे होगा क्योंकि मोदी की 2017 की लहर में तो जीत गए पर अब उनकी नैय्या 5 साल के कार्यकाल को देखते हुए कैसे पार होगी ?
हालांकि चुनावों में सभी प्रत्याशी अपनी अपनी कोशिश और जी जान लगा कर सत्ता के उस सुख को भोगने के लिए जो किस्मत से ही मिलता है,पाने को काफी कुछ कुछ दांव पर लगा देते हैं पर कुछ ऐसे भी होते हैं जो लहर के सहारे ही बिना कुछ किए जीत जाते हैं, शायद ऐसा ही कुछ पिछली मोदी लहर में उत्तराखंड में हुआ था और भाजपा को 58 सीट मिल गई थी ।
इस बार कुछ समीकरण अलग ही दिखाई देते है क्योंकि जनता ने जो भरोसा मोदी पर जताया था उसे राज्य की भाजपा नीत सरकार ने निभाया नही और जनता से सुनने में तो ये आ रहा है कि जनता दिलो में खुंदक का गुबार लिए बैठी हैं और कई जगह तो नारा ” मोदी तुझसे बैर नही और उत्तराखंड भाजपा की खैर नहीं ” भी देखने को इन 5 वर्षो के दौरान मिला ।
इस नारे के पीछे यदि पृष्ठभूमि में जाए तो आम जनमानस का एक ही कहना था कि जिन उम्मीदों और आशाओं से जनता ने भाजपा को मोदी पर विश्वास जता कर वोट दिया था , उस पर यहां के तीनो मुख्यमंत्री खरे नहीं उतरे और 5 साल सिर्फ सोशल मीडिया और विज्ञापन के द्वारा ऊपरी प्रचार के सिवा कोई राहत जनता को धरातल पर नहीं मिली सिर्फ प्रचार में दिखी ।
निचोड़ तक सीमित तथ्य :
त्रिवेंद्र सिंह फैक्टर ( 2017 के प्रथम बार नियुक्त मुख्यमंत्री ) : जहां तक बात करे त्रिवेन्द्र सिंह रावत की वो सिर्फ सोशल मीडिया और प्रचार प्रसार तक ही सीमित रहे जनता से उनके सलाहकारों ने उन्हें काट दिया और नौबत यहां आई की हाई कोर्ट द्वारा, एक पत्रकार से जूझने के कारण और एफ आई आर होने के आदेश के बाद उन्हें भाजपा को हटाना पड़ा । त्रिवेद्र सिंह ने 2 IAS सस्पेंड करे दिखाने को, और अंदरूनी रास्ते से तत्कालीन गवर्नर उनके आरोप वापस कर गई ( गवर्नर की पावर इस्तेमाल हुई ) और फिर RTI लगते ही इस्तीफा दे गई, पर जनता तो सब समझ गई । क्या खेल हुआ ये तो सरकार ही जाने और धामी ने उन्ही में से एक पंकज पांडे को महत्वपूर्ण विभाग चिकित्सा शिक्षा और सूचना तक दे दिया । जबकि सबसे ज्यादा आरोपों में घिरे मंत्री धन सिंह रावत 5 साल तक विवादित यूनिवर्सिटी के बनने में हुए घोटाले और जांच की बात करने की बात के बाद भी चुप रहे और सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों तो चिल्ला चिल्ला कर ” यूनिवर्सिटी ले लो ” यूनिवर्सिटी ले लो ” की आवाज सूत्रों के अनुसार लगाए दिखाई दिए और और धन सिंह के चाहने वालो ने उनके कार्यकाल के तमाम मुद्दे पार्टी आलाकमान को पुलंदे के साथ सौंप दिए है जिसके चलते इस बार धन सिंह की राह भी कांटो से भरी दिख रही है
तीरथ सिंह रावत फैक्टर : फटी जींस के लिए महिलाओं पर टिप्पणी ,अल्प ज्ञान , 50 साल गोरों के गुलाम रहने का बयान सहित कई अन्य बिना सोचे समझे आदेश करना , बिल्ली के हाथ छींका जैसा गिरना हुआ और भाजपा के गले की हड्डी बन गया और देश में नही विदेश में भी भाजपा की हंसी उड़ी और भाजपा को इन्हे हटाना पड़ा । वही त्रिवेंद्र के द्वारा करोड़ो रुपए की पुस्तिकाएं ,विज्ञापन आदि जो की 4 साल पूरे होने की उपलब्धियों के लिए छपवाए गए थे ,धरे रह गए और सारी योजना पर पानी फिर गया । त्रिवेंद्र को ऐसा ठंडे बस्ते में लगाया गया कि सोचना भी दुश्वार दिखता है ।
और सारी गलती त्रिबेद्र सहित उनके निक्कमे ,नालायक सलाहकारों की है की भी उतनी ही हैं, त्रिवेंद्र ने अपनी टीम का सही चयन नही किया और डर डर कर चलते रहे और सालाहकारो और तत्कालीन आका अधिकारी के सामने नतमस्तक रहे और अपने सी एम होने की ताकत नहीं समझ पाए उनको उच्च अधिकारियों ( तत्कालीन राका और आका ) और सलाहकारों ने ऐसा बेवकूफ बनाया जैसे की चोर को बोल दिया चोरी करो और पीछे से दरोगा को बोल दिया की जाओ आज चोरी होने वाली हैं और फिर त्रिवेंद्र को डरा और गुमराह कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे और त्रिवेंद्र गुमराह होते रहे और भांडों ने ऐसा खेल खेला कि सी एम पद से पार्टी को हटाना पड़ा त्रिवेंद्र को कभी अपने असली सहयोग करने वालो पहचानना ही नही आया और बाद में उनकी पीठ में चक्कू भोका गया ।
पत्रकारों के खिलाफ षड्यंत सबसे बड़ी गलती :
मीडिया लोक तंत्र का चौथा स्तंभ है और किसी उद्देश्य से ही उन्हें स्वत्रंत रूप से अपनी बात रखने का अधिकार दिया हैं,पर यह पहली बार भाजपा सरकार में हुआ की मीडिया के लोगो को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार इस्तेमाल करने पर जेल भेजा गया हो और अन्याय किया गया हो । इस बात की दूरदर्शिता स्व. नारायण दत्त तिवारी से सीखनी चाहिए थी उनके खिलाफ क्या नहीं पत्र पत्रिकाओं में छपा पर उन्होंने कभी कोई इस प्रकार का षड्यंत्र या मुकदमा पत्रकारों के खिलाफ नहीं किया उल्टा उनकी तारीफ करते थे और अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया की पत्रकारों की लिखने स्वतंत्रता को नहीं रोका जा सकता बशर्ते वो तथ्यो पर आधारित हो ।
पुष्कर सिंह धामी फैक्टर :
अल्प समय में बहुत कुछ कर पाना इस युवा चेहरे के लिए उपयुक्त नहीं हो पाया पर अच्छे सलाहकार न होना और कम समय मिलना भी इनके लिए भी उपयुक्त नहीं हो पाया और अपने निकटस्थ, पार्टी कार्यकता के बीच ही जा पाए और जनता के बीच जा ही नही पाए क्योंकि समय कम था फिर भी जितनी कोशिश कर सकते थे, करने की कोशिश करी पर धरातल पर रिजल्ट नही दिखा क्योंकि घोषणा ,शिलान्यास,और एफ एम पर यही सुनाई दिया की जो घोषणाएं हुई हैं उसके शासन के आदेश जारी कर दिए है पर जनता अब समझदार हो गई है और सोचती है अगली सरकार ने उन आदेशों पर रोक लगा दी तो क्या होगा जैसे की तीरथ रावत ने अपनी ही सरकार के दर्जा धारियों को पैदल कर दिया कुछ तो बेचारे त्रिवेंद्र के द्वारा एक हफ्ता पहले ही बनाए गए थे ।
इन सब कृत्य से जनता को समझ आता है कि जनता धरातल पर विकास देखना चाहती है , और सच्चाई भी यही है , हालंकि धामी, त्रिवेंद्र और तीरथ की तरह विवादित नही हुए पर उनके अधिकारियों को नियुक्त कर देने का चयन गलत साबित हुआ जबकि एक काम जो दूर तक उनका सफल और वाह वाही लूट गया वो था मुख्य सचिव ओम प्रकाश को हटाना पर जो उनकी जगह आए वो अपनी जगह जनता और जन प्रतिनिधियों के बीच में बनाने से दूर रहे ।
कैबिनेट :
कई बार हुए फेरबदल और कई कैबिनेट मंत्रियों और विधायकों को अपने ही पार्टी के लोगो,नेताओ के निशाने पर आना पड़ा और हद तो तब हो गई जब कई बार अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ़ पार्टी के विधायकों को दिल्ली चक्कर काटने पड़े और इन महानुभव लोगो के खिलाफ भी उन मुख्य मंत्रियों को मोर्चा खोलना पड़ा भले ही गुपचुप या सोशल मीडिया के माध्यम से और एक दूसरे को नीचा और बदरंग दिखाने का युद्ध भाजपा में आरंभ हुआ । बाद में हरीश रावत की एंट्री से प्रदेश में शांत पड़ी कांग्रेस में भी हो हल्ला मच गया और टीका टिप्पणियों का ऐसा दौर शुरू हुआ जो आज तक चल रहा है ,हरीश रावत के चंगू मंगू फिर एक्टिव हो गए और फिर फोटो और छपास का दौर शुरू है और बची खुची पार्टी का बेड़ा गर्क करने को आतुर हैं ।
प्रदेश अध्यक्ष बदलना :
इस दौरान भाजपा के 3 प्रदेश अध्यक्ष भी बदलते दिखे जिनमे अजय भट्ट ,कार्यकारी अध्यक्ष नरेश बंसल , बंशीधर भगत बदले और वर्तमान में मदन कौशिक मोर्चा संभाले दिखाई दे रहे हैं ,बंशीधर भगत “बहुत हुआ मोदी मोदी ” बड़बोले पन से बोल कर निकल गए जबकि अजय भट्ट और नरेश बंसल सांसद बन कर गए और सारी आफत मदन कौशिक के गले पढ़ गई । त्रिवेंद्र से नजदीकी ,पहाड़ी – मैदान और कुमाऊं – गढ़वाल का समीकरण मदन कौशिक को अध्यक्ष बना गया पर उतना वो भी नही कर पाए क्योंकि सी एम बदलते ही उनके काम के समीकरण भी बदल रहे थे और भाजपा के मोर्चा तो पहले से ही नाम मात्र के लिए बने हैं, किसी मोर्चा का काम सही व्यक्तिं के चयन न होने से फेल साबित हुआ क्योंकि एक सांसद जबरदस्ती उनमें अपने लोगो का नाम लिखवा गए ।
देखा जाए तो पार्टी केवल पार्टी न होकर प्रदेश अध्यक्ष द्वारा अपने सांसदों मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को ऑबलाइज करने की पार्टी रह गई ।
एक जमाने से कहावत चली आती थी कि कांग्रेस ही कांग्रेस को हराती है वही अतिशयोक्ति अब भाजपा पर भी चरितार्थ हो गई हैं कि भाजपा ही भाजपा को हराती है और ” कोटद्वार में खंडूरी है जरूरी ” रायपुर / डोईवाला में त्रिवेंद्र के चुनाव के दौरान सब लोग यह तथ्य महसूस भी कर चुके हैं कि किसने किसको हराया और अब भी कमान की प्रत्यंचाए चढ़ चुकी है और महत्वकांक्षा लिए नेता ” अपने अपने ” कार्य में लग गए है
ऐसे कई मामले सामने आए जिसमे भाजपा की अंदरूनी कलह सामने आईं और जनता सहित शीर्ष नेतृत्व को बहुत कुछ देखने और समझने को मिला । जिसमे कबीना मंत्री को ” मिस्टर इंडिया ” तक का खिताब पार्टी के लोगो ने ही दिलवा दिया क्योंकि वो सी एम की दौड़ में लगे थे
कई कैबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री बनने की लालसा लियें दिल्ली चक्कर काटते रहे और कई एक दूसरे के खिलाफ पुलिंदा आरएसएस और पार्टी मुख्यालय को सौंपते रहे एवं कई एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार का सबूत आलाकमान को देते रहे तो कई मीडिया के माध्यम से तथ्य उजागर करवाते रहे और नौबत यह तक आ गई की हाई कोर्ट को उस समय मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करने के आदेश देने पड़े जो आज तक लंबित है और सुप्रीम कोर्ट के 6 माह के नए नियम के हिसाब से स्टे भी हट चुका है । इस बार का चुनाव “खंडूरी हे जरुरी पैटर्न पर ” ज्यादा होता दिखाई देगा न की जीत- हार पर क्यूंकि बात तो मूछ के बाल की है और सब पुराना हिसाब किताब ” दो-चार ” करने के मूड में है और इसलिए “कुछ ” लोगो के लिए तो यह चुनाव टेढ़ी खीर साबित होने वाला है और “कुछ ” को तो शायद टिकट ही न मिले
कांग्रेस फैक्टर :
कांग्रेस पार्टी की बात करें तो हरीश रावत को सबने नेशनल टेलीविजन पर स्टिंग ऑपरेशन में कहते हुए सुना है ” तुम जितना चाहो ले लेना मै मुंह फेर लूंगा ” और ” टॉप अप “स्पष्ट है भ्रष्टाचार में हरीश रावत नीत सरकार भी घोटाले से अछूती नहीं रही है उनके सलाहकार रंजीत रावत ने खनन और शराब में प्रदेश को डूबो दिया और दिल्ली के हयात होटल का उनका और हरीश रावत का विवाद सभी के सामने आया तभी उनके खिलाफ भी हाई कोर्ट में स्टिंग ऑपरेशन का केस दाखिल हुआ और येन केन प्रक्रेण सभी के मामले अभी तक लंबित है भले ही एडवोकेट जर्नल ही बल्कि नही अभिषेक मनु, कपिल सिब्बल आदि जैसे अधिकवक्ता मैदान में कूद चुके हो और हरीश रावत ने करोड़ो रुपए ऑर्डर के तथ्य छुपाने को मीडिया में बांटे हो ।
कांग्रेस पार्टी में ग्रुप बाजी किसी से छुपी नहीं है, कई ग्रुप बन गए है और कुछ नेता तो सिर्फ सत्ता का सुख भोगने के लिए समयानुसार भाजपा में चले जाते हैं और समयानुसार वापस कांग्रेस में आ जाते हैं ऐसे में जो लोग 5 वर्ष डंडे,लाठी खाते है और पार्टी का झंडा उठाते हैं उनके दिलो पर क्या कुठाराघात होता है, उसकी तो परिकल्पना करके भी दिल सहर जाता है, कि क्या सिर्फ कांग्रेस पार्टी मौका परस्त और अवसर वादियों के लिए ही है ? बार क्या यही भाई , भतीजा वाद और धन बल का बोलबाला ही चलता रहेगा ।
उत्तराखंड के विधायक ,मंत्रियों के धन और संपत्ति की जांच हो जाए तो पिछले 20 वर्षो में उनकी संपत्ति में कई सौ गुना का इजाफा हुआ है और जो दिखाई नहीं दे रहा वो तो अरबों में उम्मीद जताई जाती है और आज ई डी की निगाहे तिरछी हो जाए तो इत्र व्यवसाई की तरह सारा धन केंद्र ले जाए ।
कई बार तो जनता को ऐसा लगता है की कोई अंडरस्टैंडिंग सी चल रहीं हैं कि एक बार तुम लौकी ले आना और अगली बार मै तोरी ले आऊंगा और मिलकर दोनो एक दूसरे को खाना खिलाते रहेंगे । न तुम हमारी पोल खोलना न हम तुम्हारी । आखिर यह कैसा लोकतंत्र हैं ?
बात तो सही लगती है क्योंकि 20 सालो में जो भी आरोप विधायको, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर लगे किसी में भी करवाही नही हुई और लोकपाल की बात करे तो सभी चुप हैं क्योंकि हम्माम में सब नंगे है ।
जनता ही पिसती आई है हर बार महंगाई और टैक्स बढ़ते गए :
हो न हो इन नेताओ की इस ढींगा मुश्ति से हर बार जनता ही पिसती आई है और पीस रही है , चाहे कोरोना का दंश हो या महंगाई का सिला जनता में चाहे उच्च वर्ग हो या निम्न वर्ग अथवा पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग या छोटे व्यापारी सभी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, खासकर कुछ तबका तो ऐसा था जो भूखा ,प्यासा रहा पर आम जन को कह न पाया और सरकार की बड़ी बड़ी घोषणाएं और राहत पैकेज धरी की धरी रह गई और जैसा कहा गया किसी को धरातल पर पता ही नही है ।
अब कोरोना के बीच चुनाव हो रहे हैं और कई गाइड लाइन आ गई है और इन गाइड लाइन में देखे तो भाजपा को फायदा मिलता दिख रहा है क्योंकि भाजपा के डेडीकेटेड वर्कर हैं जो आर एस एस और पार्टी के प्रति डेडीकेटेड है और वोट डालने जरूर जाते है, बशर्ते कि उनके दिलो में इस बार मंहगाई और पार्टी विवादो की खुन्नस न हो ।
यू के डी और आम आदमी फैक्टर :
आम आदमी पार्टी में दो रिटायर्ड आई ए एस एवं आई पी एस आए थे, सुबर्धन और अनंत राम चौहान ,जब उनकी ही नही सुनी जो की डिप्लोमेटिक थे और पार्टी को बढ़िया चला सकते थे और रविंद्र जुगरान जैसे महारथी नेता थे पर उनकी अहमियत अरविंद केजरीवाल ने नही समझी ,क्योंकि आम आदमी पार्टी का खुला कहना है की इस बार उनका फोकस पंजाब चुनाव है और कही नही तथा कोठियाल जैसे नॉन पॉलिटिकल दाव खेल कर पार्टी अपने हाथ जला बैठी है जिन्हे राजनीतिक सोच ही नही है और न ही अच्छे ,भले का ज्ञान और न आदमी की पहचान और आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता।
हालांकि दीपक बाली और और भूपेश कुछ चमत्कार कर सकते है पर पार्टी के पास राजनीतिक सोच और जानकर व्यक्ति और नेता नही है । वहीं उत्तराखण्ड क्रान्ति दल कुछ मनमुटाव को छोड़ कर एक होती दिखी हैं पर राजनीतिक सोच,दूरदर्शिता एवं उच्च सोच और पार्टी चलाने वाले नेताओं की इसमें भी कमी है ।
जनता क्या करें :
जनता वोट डालने जरूर जाए और कुछ ऐसा करे की जो महंगाई ,सिलेडर,पेट्रोल, टैक्स और रोजगार को लेकर मन जो में गुबार है उसका निर्विवाद समाधान हो जाए और जनता को धरातल पर राहत देने वालें नेता, धरती से जुड़े और जनता के दर्द को समझने वाले जन प्रतिनिधि का साथ मिले ।
देवस्थानम बोर्ड ,महिला संपत्ति भू अधिकार और जीरो टॉलरेंस :
पिछले 5 सालो में भाजपा का ज्यादातर समय तो उक्त तीन मुद्दों को सुलझाते सुलझाते बीत गया और धामी को वो दंश झेलने पड़े जो उनके पूर्ववर्ती उन्हें दे गए पर ये बात स्पष्ट है कि पिछले 5 साल में जीरो टॉलरेंस कही देखने को नहीं मिला सिर्फ पत्रकारों के उत्पीड़न के सिवा । और यही 3 तथ्य इस बार चुनाव का मुख्य मुद्दा रहेंगे ।
कुल मिलाकर कांग्रेस की सरकार के दौरान आधे – आधे कार्यकाल में रहे विजय बहुगुणा और हरीश रावत तथा भाजपा की सरकार के दौरान त्रिवेंद्र, तीरथ और धामी कुछ ऐसा नहीं कर पाए जिससे ” अजीम ओ शान शहंशाह ” की तरह जनता के दिलों में जगह बना पाते ।
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