एस पी ट्रैफिक साहब ये देहरादून है यहां व्यापारियों और निवासियों के व्यापार और घर के आगे से गाड़ियां उठवाने की बजाय साइड रोड्स पर इंक्रोचमेंट पहले हटाए और व्हाइट लाइन गहरी करवाए तथा सही होने पर अपने अधिकारी के आदेशों सम्मान भी करे । एक सिपाही एसएसपी के सीधे आदेश दरकिनार कर गया ।

एस पी ट्रैफिक साहब ये देहरादून है यहां  व्यापारियों और निवासियों के व्यापार और घर के आगे से गाड़ियां उठवाने की बजाय साइड रोड्स पर इंक्रोचमेंट  पहले हटाए और व्हाइट लाइन गहरी करवाए तथा सही होने पर अपने अधिकारी के आदेशों सम्मान भी करे ।एक सिपाही एसएसपी के सीधे आदेश दरकिनार कर गया ।


देहरादून  ; (वॉयस ऑफ नेशन ) देहरादून में जब भी कोई नया अधिकारी आता है तो उसके सामने एक ही सबसे बड़ी समस्या होती है कि ट्रैफिक समस्या का समाधान करना और यह अच्छी बात भी है ।
पर समस्या वहां विकट हो जाती है कि आपका अपना घर चौराहे पर हो आपका व्यापारिक प्रतिष्ठान भी वही हो या आपका मीडिया कार्यालय भी वही हो और काम के समय ट्रैफिक पुलिस आकर कहे कि अपने घर या दफ्तर के आगे से गाड़ी हटाओ ( जबकि आपके घर जिसके आप स्वामी हो या दफ्तर उसके आगे अपना वाहन खड़ा करना आपका जन्म सिद्ध अधिकार है ), हालांकि व्हाइट लाइन लगी थी जो नाला रिपेयर में मिट गई और खंबे में भी सड़क के बीच में हो जिसके बाद वाइटब्लाइन का पुराना निशान भी हो और फिर फुटपाथ भी हो, हालांकि फुटपाथ कि देखभाल और क्षेत्राधिकार नगर निगम के अंतर्गत है तथा ट्रैफिक पुलिस का क्षेत्राधिकार सड़क तक ही सीमित है और व्हाइट लाइन लगवाना भी ट्रैफिक पुलिस का ही काम है तो क्यों न वाहन उठाने की बजाय पहले ट्रैफिक पुलिस व्हाइट लाइन लगवाए   और फिर कोई गलती करे तो जरूर चालान करे ।


 फिर आए दिन जो दिन नोक झोंक दिखाई देती है और अधिकारी भी इसमें इस वजह से पक्षकार बन जाते है क्यूंकि उनके भी उच्चचाधिकारी या मातहत इसमें  निर्देश देते या लेते रहते है  तो इसका समाधान काफी हद तक हो जायेगा  परंतु  इसके अभाव से ट्रैफिक की समस्या जस की टस है ।
अब बात करते है ट्रैफिक पुलिस की , देखा जाए तो देहरादून ट्रैफिक कि आपको याद होगा 90 के दशक में जब यह ट्रैफिक सिग्नल नही थे तो कभी जाम की स्तिथि आती ही नहीं थी जबकि उस समय सड़के भी बहुत छोटी थी पर अब आज के दशक में सड़के भी बड़ी हो गई है, पटरिया और फुटपाथ भी बन गए है पर उनका रख रखरखाव न के बराबर है और ट्रैफिक सिग्नल लगने के बाद तो लंबा जाम हर ओर दिखाई देता है शायद ट्रैफिक सिग्नल लगने में सुनियोजित प्लानिंग का अभाव हो जिस पर मंथन करना आवश्यक है ।
व्यापारियों की दुकान में ग्राहक आएगा कैसे ? या व्यापारी अपना वाहन या दुपहिया पार्क करेगा कैसे ? पलटन बाजार ,सरनीमल बाजार में भी जाकर जरा गौर फरमाए एस पी ट्रैफिक साहब ।


घर के बड़े, बुजुर्ग, महिला ,वृद्ध कैसे घर के आगे से वाहन में चढ़ेंगे या उतरेंगे स्मार्ट सिटी  या स्मार्ट पुलिसिंग का मतलब सभी  की देखभाल और सुगमता भी है न की इसे दुर्गम बना दिया जाए ?
आज की घटना दर्शन लाल चौक की है जहां 6 मीडिया के दफ्तर सहित कई अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान एवम बैंक के एटीएम है, 2 पूर्व मंत्रियों का निवास स्थान और  जहां बैंक के आगे पटरी, फिर पुरानी सफेद लाइन भी है, जो नाले की सफाई के चलते हल्की पढ़ गई है और सभी एटीएम आने वाले ,मनी चेंजर एवम अन्य प्रतिष्ठान में आने वाले लोग अपना वाहन खड़ा करते है । जब व्हाइट लाइन के अंदर गाड़ी खड़े करते है तो ट्रैफिक वाले कहते है वाहन हटाओ और जब पटरी पर गाड़ी खड़ी कर देते है तो ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी उठाने आ जाती है । और जब पूरी बात अधिकारियो तक पहुंचाई जाती है तो  बड़े कप्तान तक की बात एक सिपाही तो दूर बल्कि एस पी ट्रैफिक ने भी दरकिनार कर दी । ( फोटो में स्पष्ट है कि बिजली के खंभों के आगे यहां व्हाइट लाइन रही है और फिर  फुटपाथ है तो व्यापारी या ग्राहक अथवा विजिटर अपना वाहन कहा खड़ा करेंगे ? या इस क्षेत्र के व्यापारियों को कार्ड इश्यू कर दीजिए  )  कुछ तो समाधान निकालना ही होगा 


अपनी इगो  संतुष्टि  के लिए एस पी ट्रैफिक  गाड़ियों को अपने कार्यालय ले गए और वाहन स्वामियों से माफी नामा लिखवाया जिसमे वाहन स्वामियों को ही जबरदस्ती अपनी गलती लिखने को कहा गया और वाहन छोड़े गए  पर सवाल यह है कि ऐसा कब तक चलेगा ? एक दिन, दो दिन, महीना या फिर कोई नया अधिकारी आएगा फिर वही सब कहानी होगी, इसलिए क्यूं ना इसका परमानेंट समाधान सौहार्द पूर्ण रूप से सुलझाया जाए । 
आखिर यह हम सभी की आम नागरिकों एवं शहरवासियों के लिए जिम्मेदारी भी बनती है कि हम ट्रैफिक पुलिस से लड़ने की बजाय उनके साथी बने और उनके काम में सहयोग प्रदान करें ।
देखना यह है कि अब एस पी ट्रैफिक इस मुद्दे का समाधान किस प्रकार करेंगे या रोज रोज इसी प्रकार  यह सब चलता रहेगा और  बात चाहे कुछ भी हो कप्तान तो जिले के कप्तान होते है तो क्या एक ट्रैफिक का सिपाही महेंद्र सिंह यादव अपने जिला कप्तान के आदेश की अवहेलना कर अनुशासन हीनता कर सकता है ? यह भी एक सोचनीय विषय है और इसका संदेश क्या जायेगा ? एसएसपी बड़ा या एस पी ट्रैफिक का सिपाही ?
हालांकि देहरादून एक शांत प्रिय और अधिकतर रिटायर्ड अधिकारी और कर्मचारियों का निवास गाह है और यहां सभी शांतिप्रिय नागरिक है जो अपने अधिकारों के प्रति सजग है ।

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