मध्य हिमालय तक आबाद हुआ जड़ी-बूटियों का संसार, पढ़े पूरी खबर
अल्मोड़ा,VON NEWS: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटियां अब मध्य हिमालय की सेहत और आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं। करीब डेढ़ वर्ष पहले व्यावसायिक खेती शुरू होने से स्थानीय स्तर पर व्यापक रोजगार भी मुहैया होने लगा है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) की पहल से इनकी बिक्री भी सुगम हो गई है। यहां के किसान अब सीधे हर्बल उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियों को उपज बेच रहे हैं।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक दोहन व वनाग्नि से जड़ी-बूटियां नष्ट होती जा रही हैं। जीबी पंत राष्टï्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल के विज्ञानियों ने इनके संरक्षण के लिए कदम बढ़ाया। हिमालय की निचली घाटियों पर शोध शुरू किया।
आबोहवा और मिट्टी औषधीय खेती के लिए माकूल मिली। अध्ययन में ही पता चला कि स्थानीय किसान अपने दैनिक जीवन में परंपरागत रूप से जड़ी-बूटियों का उपयोग तो करते हैं पर सरकारी प्रोत्साहन व तकनीक न मिलने से व्यावसायिक खेती नहीं कर पाते।
15 प्रजातियों से शुरुआत, कंपनियों से करार
विज्ञानियों ने समुद्रतल से ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौदास घाटी के नारायण आश्रम क्षेत्र को प्रयोग के लिए चुना। प्रशिक्षणशाला बनाई। शुरुआत में संकटग्रस्त गंधरैणी, कटुकी, जंबू, जटामासी, सम्यों, वन तुलसी, वज्रदंती, चंद्रा, कूट, मेदा एवं महामेदा सहित 15 प्रजातियां उगाईं।
बेहतर बढ़वार पर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत नामचीन हर्बल उत्पाद कंपनियां डाबर, पतंजलि, इमामी के प्रतिनिधियों व ग्रामीणों के बीच सीधा संवाद कराया। विपणन व मूल्य तय कराया। विज्ञानियों की पहल, कंपनी प्रतिनिधियों की सहमति और किसानों की मेहनत अब रंग ला रही। किसान अपनी उपज अब सीधे कंपनियों को देने लगे हैं। धीरे-धीरे अब 11 गांवों के 172 किसान इससे जुड़ गए हैं।