पौष्टिक मंडुवे से स्कॉच बनाने की योजना

देहरादून,VON NEWS: देवभूमि का पौष्टिकता” से भरपूर अनाज यानी मंडुवा। इससे इस समय कई राज्यों में कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है। मंडुवे के फायदों को देखते हुए वर्ष 2016 में प्रदेश सरकार को नई योजना सूझी और इससे स्कॉच बनाने का निर्णय लिया गया। लगे हाथ पर्वतीय क्षेत्रों के फलों से भी वाइन बनाने का फैसला हुआ। इसके फायदे बताए गए। अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक इसकी पहुंच के सपने दिखाए गए। स्कॉच कैसे बनेगी, इस पर लाखों रुपये खर्च किए गए। वहीं फलों के लिए वाइनरी बनाने को 14 करोड़ रुपये की डीपीआर तक तैयार की गई। बावजूद इसके नतीजा सिफर रहा। शुरुआती दौर में तेजी से हाथ पांव मारने के बाद अब ये योजनाएं ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई हैं। स्थिति यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में माल्टा व अन्य फल अभी भी अच्छे दाम और बाजार न मिलने के कारण खेतों में ही खराब हो रहे हैं।

परिवहन समझौतों” को इंतजार

राज्य गठन के 20 वें वर्ष में प्रवेश करने के बावजूद अभी तक उत्तराखंड में परिवहन व्यवस्था हिचकोले खा रही है। वर्ष 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम बनने से उम्मीद जगी कि दूसरे राज्यों में आवागमन सुगम हो जाएगा। परिवहन समझौते होने से बसों को बदलने के झंझट से मुक्ति मिल सकेगी। अफसोस इस दिशा में अभी तक बहुत अधिक काम नहीं हो पाया है। उत्तराखंड केवल उत्तरप्रदेश और हिमाचल से ही परिवहन समझौता कर पाया है। राजस्थान, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश की बसें भी उत्तराखंड आती हैं लेकिन उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों का संचालन इन राज्यों में नहीं होता है। इन बसों की कोई निश्चित समय सारिणी भी नहीं है। ऐसे में यात्रियों को दोहरी मार पड़ती है। परिवहन निगम अभी भी बस बेड़े के अभाव का रोना रोते हुए फिलहाल अन्य राज्यों से परिवहन समझौता करने से दूरी बनाए हुए है। इसकी मार यात्रियों पर पड़ रही है।

शहरों का बाहरी आवरण” 

सपना दिखाया गया देवभूमि को मनमोहक बनाने का। निर्णय लिया गया कि राज्य के मुख्य मार्गों पर बने भवनों के बाहरी आवरण में एकरूपता लाई जाएगी ताकि इन मार्गों से गुजरने वाले यात्रियों को ये आकर्षित करे। इसके लिए कैबिनेट ने बकायदा बाह्य आवरण (फसाड) नीति को मंजूरी दी। प्रविधान किया गया कि उत्तराखंड की संस्कृति और पारंपरिक शैली अपनाने पर भवन में एक अतिरिक्त मंजिल की छूट दी जाएगी। इसके अलावा शहरों-कस्बों में मुख्य मार्गों को भी साइन बोर्ड, फ्लैक्स, बैनर लगाकर चमकाया जाएगा। सरकार की जम कर वाहवाही हुई। उम्मीद जताई गई कि अब जल्द ही देवभूमि बदले स्वरूप में नजर आएगी। इसके उलट स्थिति यह है कि इस दिशा में अभी तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सका है। मुख्य मार्गों के दोनों ओर अभी भी बेतरतीब तरीके से भवनों का निर्माण हो रहा है, जो सरकार की नीति को मुंह चिढ़ाता सा लगता है।

अनुमोदन हुआ”  एकीकरण नहीं

केंद्र में एक विभाग और प्रदेश में दो-दो। नतीजतन, केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद के बंटवारे में दिक्कतें आने लगी। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने केंद्र की तर्ज पर विभागों के एकीकरण की राह में कदम बढ़ाए। दावा किया गया कि इससे न केवल विभागीय कार्यों में मितव्ययता आएगी, बल्कि प्रशासन भी बेहतर होगा। केंद्रीय योजनाओं के तहत मिलनी वाली आर्थिक सहायता का दुरुपयोग नहीं होगा और यह सही तरीके से खर्च की जा सकेगी। तीन साल पहले सरकार ने कृषि व उद्यान और खेल एवं युवा कल्याण विभाग के एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए। बाकायदा कैबिनेट से अनुमोदन भी लिया गया। यहां तक कि अधिकारियों को जिम्मेदारी भी बांटने की तैयारी कर ली गई। बावजूद इसके अभी तक इन दोनों ही महकमों का एकीकरण नहीं हो पाया है।  इससे केंद्रीय योजनाओं के तहत मिलने वाली आर्थिक सहायता को खर्च करने में दिक्कतें महसूस हो रही हैं।

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