One Nation One Election की राह नहीं है आसान, संविधान में कम से कम पांच संशोधन की पड़ेगी जरूरत
एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election) का मुद्दा इस समय देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि संसद के विशेष सत्र में सरकार इससे संबंधित विधायक पेश कर सकती है। ऐसे में यह सवाल मन में आता है कि वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करना क्या आसान होगा। आइए इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं…
नई दिल्ली, पीटीआई। One Nation One Election: देश में इस समय ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर काफी चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द (Ram Nath Kovind) की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर इस चर्चा को और हवा दे दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संभव है। आइए, इस सवाल का जवाब जानते हैं…
कम से कम पांच संविधान संशोधनों की पड़ेगी जरूरत
दरअसल, अधिकारियों का मानना है कि अगर एक साथ लोकसभा एवं विधान सभा चुनाव कराया जाता है तो संविधान में कम से कम पांच संशोधनों की जरूरत पड़ेगी। इसके साथ ही हजारों करोड़ रुपये ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों पर खर्च होंगे। हालांकि, इससे सरकार को बचत होगी।
अधिकारियों ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सरकार को काफी बचत होगी। उन्होंने बताया कि इससे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को अपने चुनाव अभियान में काफी बचत होगी। हालांकि, चुनाव के समय अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की भी जरूरत होगी। अधिकारियों ने बताया कि लोकसभा और विधान सभा चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लंबे समय तक लागू रहती है, जिसके विकास कार्यक्रमों पर बुरा असर पड़ता है।
संविधान के किन अनुच्छेदों में करना पड़ेगा संशोधन?
- अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि से संबंधित)
- अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित)
- अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित)
- अनुच्छेद 174 (राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित)
- अनुच्छेद 356 (राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित)
राजनीतिक दलों की सहमति होनी जरूरी
वन नेशन वन इलेक्शन पर सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति भी जरूरी है। इसके अलावा, केंद्र को सभी राज्य सरकारों की सहमति मिलनी भी जरूरी है। इसके लिए अतिरिक्त संख्या में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वीवीपीएटी (पेपर ट्रेल मशीन) की भी आवश्यकता होगी, जिसकी लागत हजारों करोड़ रुपये होगी।
हर 15 साल में मशीन को बदलने की नहीं होगी जरूरत
अगर वन नेशन वन इलेक्शन को देश में लागू किया जाता है तो इससे मशीन को हर 15 साल में बदलने की जरूरत नहीं होगी। आमतौर पर एक मशीन का उपयोग केवल 15 साल तक किया जाता है। एक राष्ट्र एक चुनाव के लागू होने से एक मशीन का उपयोग 15 साल में तीन या चार बार किया जा सकेगा।
इन देशों में एक साथ होते हैं चुनाव
कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला था कि दक्षिण अफ्रीका में, राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव एक साथ पांच साल के लिए होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
स्वीडन में भी राष्ट्रीय विधायिका (रिक्सडैग), प्रांतीय विधायिका/काउंटी परिषद (लैंडस्टिंग) और स्थानीय निकायों/नगरपालिका विधानसभाओं (कोमुनफुलमकटीज) के चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होता है। ब्रिटेन में भी संसद अधिनियम, 2011 के तहत एक साथ चुनाव होते हैं।