परीक्षा में कामयाब होने के लिए इन जरूरी बातों का रखें ध्यान
VON NEWS: घर में जब भी बच्चों के “बोर्ड एग्ज़ैम” का जि़क्र होता है तो बच्चों से ज्य़ादा पेरेंट्स परेशान हो जाते हैं। उन्हें कई तरह की चिंताएं घेर लेती हैं कि तैयारी कैसे होगी, अगर परीक्षा में अच्छा ग्रेड नहीं मिला तो क्या होगा?….मन में सवाल आना स्वाभाविक है लेकिन उनसे घबराना समस्या का समाधान नहीं है। पेरेंट्स की ऐसी सोच के कारण बच्चे भी घबरा जाते हैं, फिर तनाव भरे माहौल में उनके लिए परीक्षा की तैयारी मुश्किल हो जाती है। ऐसी समस्या से बचने का सबसे सही तरीका यही है कि जैसे ही आपका बच्चा दसवीं कक्षा में पहुंचे, नए एकेडमिक सेशन के पहले दिन से ही आप उसकी दिनचर्या इस तरह व्यवस्थित करें कि वह सहज ढंग से तनावमुक्त होकर परीक्षा की तैयारी में जुट जाए।
1. मन में न हो कोई डर
सबसे पहले उसके मन से यह डर दूर करने की कोशिश करें कि कहीं कम मार्क्स मिले तो फिर क्या होगा? आप उसे यही समझाएं कि तुम पूरी ईमानदरी से केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करो, परीक्षा में केवल ज्य़ादा मार्क्स लाना ही काफी नहीं है। तुम जो भी पढ़ते हो, उसे याद रखने के साथ अच्छी तरह समझना भी बहुत ज़रूरी है। इसलिए मार्क्स की चिंता छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करो। वैसे भी पिछले चार सालों में तुमने जो कुछ भी सीखा है, 10वीं का सिलेबस उसी का सारांश होता है। ऐसी सकारात्मक बातों से उसका मनोबल बढ़ेगा और वह तनावमुक्त होकर पढ़ाई करेगा। यही वह दौर है, जब छात्रों के करियर की दिशा निर्धारित होती है। कुछ बच्चे तो आठवीं-नौवीं कक्षा से ही तय कर लेते हैं कि भविष्य में उन्हें किस प्रोफेशन का चुनाव करना है पर सभी के साथ ऐसा नहीं हो पाता। अगर कोई स्टूडेंट दसवीं में आने के बाद भी अपनी क्षमताओं और रुचियों को पहचान नहीं पाता तो दूसरे बच्चों से उसकी तुलना करने के बजाय स्कूल काउंसलर की सहायता लेनी चाहिए।
2. सही समय“प्रबंधन“
अगर एकेडमिक सेशन के शुरुआती दौर में ही दसवीं के छात्र अपना टाइम टेबल तैयार कर लें तो आगे उन पर पढ़ाई का ज्य़ादा बोझ नहीं पड़ेगा। अपने बच्चे को शुरू से ही सेल्फ स्टडी की अहमियत समझाएं। स्कूल का असाइनमेंट पूरा करने के अलावा प्रतिदिन क्लास में जो कुछ भी पढ़ाया जाता है, घर आकर उसका रिवीज़न, सवालों के जवाब को लिखित रूप में याद करने की प्रैक्टिस, सप्ताह में एक दिन पुराने प्रश्नपत्रों में से एक या दो सवाल को घड़ी देखकर निर्धारित समय के भीतर हल करने की कोशिश को स्टडी रूटीन में ज़रूर शामिल करना चाहिए। इससे राइटिंग स्पीड अच्छी होगी और परीक्षा हॉल में देर की वजह से सवाल छोडऩे की नौबत नहीं आएगी। मैथ्स के सवालों की प्रैक्टिस के लिए अलग से एक घंटे का समय निर्धारित होना चाहिए। सोशल साइंस, इकोनॉक्सि और लिटरेचर की स्टडी के दौरान अपनी सुविधा के लिए अलग से संक्षिप्त नोट्स बनाना और तीन-चार दिनों के अंतराल पर उनकी रीडिंग करने से पढ़ा गया लेसन हमेशा याद रहेगा। स्कूल में होने वाले इंटर्नल एग्ज़ॉम के समय सिर्फ रिवीज़न करना ही पर्याप्त होगा।
3. नींद भी है ज़रूरी
कुछ स्टूडेंट दसवीं में आने के बाद बोर्ड परीक्षा को लेकर इतने चिंतित हो जाते हैं कि पढ़ाई के लिए देर रात तक जाग रहे होते हैं और सुबह देर तक सोते हैं। अपने बच्चे में ऐसी आदत विकसित न होने दें। नींद पूरी न होने की वजह से सिर और हाथ-पैरों में दर्द, चिड़चिड़ापन और याददाश्त में कमी जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं। पाचन-तंत्र पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। उसके सोने-जाने का सही समय निर्धारित करें और इस बात का ध्यान रखें कि वह रोज़ाना आठ घंटे की गहरी नींद ले।
4. माहौल हो सहज
आज स्कूल में क्या पढ़ाया गया? बच्चे के साथ हलके-फुलके माहौल में इस विषय पर नियमित रूप से बातचीत की आदत डालें। इससे बातचीत के बहाने उसे क्लास में पढ़ाई गई बातों को दोहराने का मौका मिलेगा। अगर उसे कोई बात समझने मेें दिक्कत आ रही है तो आप उसकी सहायता करें। बातचीत से उसके मन में यह आत्मविश्वास जगाएं कि अगर कोई बात समझने में परेशानी हो तो टीचर से दोबारा पूछने में झिझकना नहीं चाहिए। रोज़ाना बातचीत के दौरान स्कूल की पढ़ाई से संबंधित जो भी समस्याएं सामने आती हैं, उन्हें एक डायरी में नोट करें और पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग के दौरान क्लास और सब्जेक्ट टीचर से बातचीत के ज़रिये उनका हल ढूंढऩे की कोशिश करें। प्रत्येक शनिवार को बच्चे से इस बात की जानकारी ज़रूर लें कि पूरे सप्ताह उसे स्कूल में क्या पढ़ाया गया और उसने कितना रिवीज़न किया? अगर वह अपने लक्ष्य से पीछे हो तो उसे समझाएं कि नियमित अभ्यास से वह इस गैप को जल्द से जल्द दूर कर ले।
5. “ट्यूशन” दिलाने में न झिझकें
कड़ी प्रतियोगिता के इस युग में एजुकेशन सिस्टम की ओर से छात्रों पर सर्वाधिक अंक लाने का दबाव हमेशा बना रहता है। इसलिए ज़रूरत पडऩे पर ट्यूशन टीचर की मदद लेने में संकोच न बरतें। दसवीं कक्षा में जाने के बाद शुरुआती तीन महीने में ही आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाएगा कि आपके बच्चे को किन विषयों को समझने में दिक्कत हो रही है। अगर ऐसी कोई समस्या हो तो बिना देर किए उसके लिए कोचिंग या ट्यूशन की व्यवस्था करवा देें क्योंकि देर होने से उस पर पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ बढ़ता जाएगा। अपने बच्चे से भी कोचिंग सेंटर या टीचर के बारे में फीडबैक लेते रहें कि वहां उसे कोई परेशानी तो नहीं होती? अगर कभी स्कूल के टर्म एग्ज़ैम में उम्मीद के अनुकूल माक्र्स न आएं तो इसके लिए उसे डांटने के बजाय उसकी कमियों को पहचान कर उन्हें दूर करने में बच्चे की मदद करें।
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