कैलास मानसरोवर यात्रा पर इस साल भी संशय के बादल, जानिए वजह

नैनीताल,VON NEWS: रहस्य व रोमांच से हिंदू धर्म के आस्था से जुड़े कैलास मानसरोवर यात्रा को लेकर लगातार दूसरे साल भी संशय के बादल मंडराने लगे हैं। कोरोना महामारी खत्म नहीं होना और गलवां घाटी में भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद भारत-चीन संबंधों में आई कड़वाहट अब तक दूर नहीं होने इस दिशा में अभी कोई कवायद शुरू नहीं सकी है। नया साल शुरू हो चुका है मगर अब तक विदेश मंत्रालय से यात्रा को लेकर किसी तरह के संकेत नहीं मिले हैं।

उत्तराखंड में कुमाऊं के रास्ते कैलास मानसरोवर यात्रा अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1980 से सरकार के उपक्रम कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा संचालित की जाती है। जून से सितंबर तक होने वाली यात्रा पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों से होकर गुजरती है।

24 दिन की यात्रा दिल्ली से शुरू होकर काठगोदाम, अल्मोड़ा, डीडीहाट, धारचूला के गर्भाधार, नजंग, मालपा, बूंदी, गूंजी, कुट्टी, जोलीकांग, नाभी, कालापानी आदि भारतीय व तिब्बत के पड़ावों से गुजरती हैं। इसमें पैदल यात्रा भी शामिल है। हर साल यात्रा में 18 जत्थे शामिल होते हैं । ब्यास व दारमा घाटी से होने वाली इस रोमांचक यात्रा से निगम को भी करीब चार करोड़ आय हो जाती है।

करीब 19 हजार श्रद्धालु कर चुके हैं यात्रा

कैलास मानसरोवर यात्रा हिंदुओं के साथ ही बौद्ध व जैनियों के लिए धार्मिक महत्व रखती है। कैलास पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है, जबकि मानसरोवर झील का भी पुराणों में उल्लेख है।

केएमवीएन से मिली जानकारी के अनुसार 1981 से 2018 तक 460 जत्थों में 18845 शिवभक्त कैलास मानसरोवर की यात्रा कर चुके हैं। 1981 में मात्र तीन लोगों ने यह यात्रा की थी जबकि 2017 में 18 जत्थों में सर्वाधिक 921 शिवभक्तों ने शिव के धाम के दर्शन किये।

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