सुपरमैसिव ब्लैक होल के विस्फोट को तलाशने में भारत ने निभाई अहम भूमिका
मेलबर्न VON NEWS: “खगोलविदों” ने बिग बैंग के बाद से ब्रह्मांड में हुए सबसे बड़े विस्फोट का पता लगाया है जो एक सुपरमैसिव ब्लैक होल में हुआ था। इसका पता लगाने के लिए पुणे स्थित विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) और चंद्रा एक्स-रे ऑब्जर्वेटरी व ऑस्ट्रेलियाई रेडियो दूरबीनों का उपयोग किया गया। चंद्रा एक्स-रे वेधशाला एक कृत्रिम उपग्रह है जिसे 23 जुलाई 1999 को STS-93 पर नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इसका नामकरण भारतीय अमेरिकी भौतिक विज्ञानी सुब्रमण्यम चंद्रशेखर के सम्मान में किया गया जो कि सफेद बौने तारों के लिए अधिकतम द्रव्यमान का निर्धारण करने के लिए जाने जाते हैं।
एस्ट्रोफिजिकल नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, यह विस्फोट पृथ्वी से 39 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित आकाशगंगाओं के एक समूह (ओफीयूकस) में मौजूद एक ब्लैक होल में हुआ। इसमें बताया गया है कि यह विस्फोट इतना जबर्दस्त था कि एमएस073574 नामक आकाशगंगा के समूह में हुए विस्फोट की तुलना में इससे पांच गुना ज्यादा ऊर्जा निकली। इस समूह में हुए विस्फोट को अब तक सबसे बड़ा विस्फोट माना जाता था।
“ऑस्ट्रेलिया” की कर्टिन यूनिवर्सिटी से इस अध्ययन की सह-लेखिका मेलानी जॉनस्टन होलिट ने कहा, ‘हमने आकाशगंगाओं के बीच कई विस्फोट होते देखे हैं, लेकिन यह विस्फोट सचमुच बहुत जबर्दस्त है।’ उन्होंने कहा कि लेकिन यह विस्फोट बहुत धीमी गति से हुआ। यह ठीक वैसा ही था जैसे हम स्लो मोशन में किसी विस्फोट को होते देखते हैं।
इसके भीतर समा सकती हैं 15 आकाशगंगाएं
“अमेरिका” में नेवल रिसर्च लैबोरेटरी से जुड़ीं और इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका सिमोना गियासिंटुकी ने कहा कि यह विस्फोट 1980 में माउंट सेंट हेलेंस के विस्फोट के समान ही था, जिसने पहाड़ की चोटी को तहस-नहस कर दिया था। इस विस्फोट के कारण गर्म गैसों के बीच एक ऐसा विशाल गड्ढा बना, जिसमें लगभग 15 आकाशगंगाएं समा सकती हैं।
खगोलविदों ने विस्फोट मानने से कर दिया था इन्कार
‘ओफीयूकस’ की ‘एक्स-रे’ से ली गई तस्वीरों ने देखा गया कि वहां एक अनोखा उभार बना हुआ है। खगोलविदों ने पहले तो इसे किसी विस्फोट की श्रेणी में रखने से इन्कार कर दिया था क्योंकि उनका मानना था कि गैसों में इतना बड़ा गड्ढा बनाने के लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा चाहिए, लेकिन फिर दो अन्य स्पेस ऑब्जर्वेटरी से मिली जानकारी और ऑस्ट्रेलिया और भारत की दूरबीनों से मिले रेडियो डाटा को मिलाने से इसकी बात की पुष्टि हो गई कि वह उभार वास्तव में एक विशाल गड्ढे का ही सुबूत है।
अमेरिका में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर से जुड़े इस अध्ययन के सह-लेखक मैक्सिम मार्केविच ने कहा, ‘अध्ययन के दौरान हमने देखा कि रेडियो डाटा और ‘एक्स-रे’ दोनों एक साथ ऐसे फिट हुए जैसे हाथों में दस्ताने फिट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में हमें मानना पड़ा कि यहां एक महा विस्फोट हुआ है।
विस्फोट पर हो रहा अध्ययन
खगोलविदों ने बताया कि विस्फोट को हुए अब एक साल से ज्यादा समय हो चुका है। शोध टीम अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आखिर महा विस्फोट में क्या हुआ होगा।
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