हर साल चार से पांच मीटर सिकुड़ रहे हिमाचल और जम्‍मू कश्‍मीर के ग्लेशियर, जानिए वजह..

धर्मशाला,VON NEWS: प्रकृति से छेड़छाड़ के परिणाम घातक होते हैं। उत्तराखंड के चमोली में हिमस्खलन भी इसका ही नतीजा है। ग्लोबल वार्मिग ही हिमस्खलन का सबसे बड़ा कारण है। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के उपमंडल पालमपुर से संबंध रखने वाले भूृगर्भ विज्ञानी डा. सुनील धर इन दिनों हिमाचल व जम्मू-कश्मीर के ग्लेशियरों पर शोध कर रहे हैं। उनके शोध के प्रारंभिक परिणाम चौंकाने वाले हैं। शोध में यह बात सामने आई है कि हिमाचल के अधिकतर ग्लेशियर वर्ष दर वर्ष सिकुड़ते जा रहे हैं और इनसे पहाड़ों में झीलें बनने का अंदेशा है। डा. सुनील धर पीरपंगाल के अलावा लाहुल, लद्दाख व चंद्रभागा ग्लेशियर का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि ये सभी ग्लेशियर हर साल सिकुड़ रहे हैं। अनुपातिक तौर पर बात की जाए तो हर ग्लेशियर हर साल चार से पांच मीटर कम होता जा रहा है।

ग्लेशियरों से निकलने वाला पानी झीलों का रूप ले सकता है। हिमाचल के चंबा व जम्मू-कश्मीर को कवर करने वाले पीरपंगाल ग्लेशियर भी सिकुड़ रहा है। अगर ऐसा ही होता रहा कि कुछ सालों में इन ग्लेशियरों के साथ लगने क्षेत्रों में झीलें बन जाएंगी और ये न केवल हिमाचल बल्कि जम्मू-कश्मीर के लिए भी खतरा हो सकती हैं। चंद्रभागा ग्लेशियर का वैसे तो क्षेत्रफल 7500 किलोमीटर है, लेकिन पिछले कई सालों से यह कम होता जा रहा है।

पीरपंजाल से निकलने वाली रावी और चंद्रभागा नदियां जम्मू-कश्मीर ओर जाती हैं। बकौल धर, हिमाचल के निचले क्षेत्रों के ग्लेशियर तापमान में आए बदलाव के कारण सिकुड़ने लगे हैं। इसके विपरीत उच्च क्षेत्रों के ग्लेशियरों जैसे लद्दाख में कोई ज्यादा बदलाव नहीं दिखा है।

चंद्रमा पर शोध कर चुके हैं डा. सुनील

पालमपुर निवासी सुनील धर इससे पहले भी कई शोध कर चुके हैं। जब वह राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में प्राध्यापक थे तो चंद्रमा पर अध्ययन किया था। उन्होंने चंद्रमा की स्थिति और उसके दाग को लेकर दंतकथाओं पर अपने शोध के आधार पर तथ्य पेश कर विराम लगाया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button