दून मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर गौरव चोपड़ा एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के HOD जबरदस्ती नौकरी छोड़ने को मजबूर । प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में वैसे ही एनेस्थीसिया और पीडियाट्रिक्स जैसे महत्वपूर्ण विभाग में डॉक्टर्स की कमी है
डॉ नूतन सिंह भी परेशानी में । उनके अधिकारियों को अपने मातहतो की जेन्युइन समस्या से कोई सरोकार नहीं
वॉयस ऑफ़ नेशन दिल्ली/देहरादून: दून मेडिकल कॉलेज जैसे अहम कॉलेज में अब एनेस्थीसिया विभगा में एक डॉक्टर की कमी होने वाली है । जी हाँ डॉ गौरव चोपड़ा का कहना है की ऐसी स्तिथि उत्पन्न हो गई है कि उन्हें 3 महीने से ना तो तनखा मिली है और ना ही उनके स्थानातरण के विषय में निदेशक चिकित्सा शिक्षा की वस्तुस्तिथि रिपोर्ट देने के बाद भी कोई जवाब मंत्री और शासन की ओर से कई चक्कर काटने के बाद भी नहीं मिला है ।
डॉक्टर गौरव चोपड़ा की स्तिथि यह हो गई है जैसे घर से बहू विदा तो कर दी पर मायके में एंट्री नहीं मिल रही है ।
हुआ यू की डॉक्टर गौरव चोपड़ा का स्थानांतरण दून मेडिकल कॉलेज से श्रीनगर कर दिया गया और जो डॉक्टर श्रीनगर से रुद्रपुर स्थानातरित हुए वो माननीय उच्च न्यायालय से अपने स्थानातरण पर स्टे ले आए और वही जमे बैठे है और अब ऐसे में डॉ गौरव वहाँ कैसे जॉइन करे ? यह एक विकट समस्या उनके साथ हुई और वो इस संबंध में मंत्री धन सिंह के कई चक्कर काट आए और उन्हें क़ानूनी और वस्तुस्थिति से अवगत भी करवा दिया और मंत्री जी ने पत्रावली पर निदेशक डॉ आशुतोष सयाना से रिपोर्ट भी माँगी और डा आशुतोष सयाना ने वस्तुस्तिथि की रिपोर्ट भी दे दी उसके बावजूद मंत्री जी ने पत्रावली पर वार्ता लिख कर सचिव को भेज दी । माना यह जाता है की जो पत्रावली पर आदेश नहीं करने होते है तो उस पर वार्ता लिख कर डंप कर दिया जाता है ।

बरहाल डा गौरव चोपड़ा का जीवन और उनका शिक्षा कार्य अधर में लटक गया है और उनको इसके चलते कई निजी मेडिकल कॉलेज अपनी ओर और अच्छे और डबल वेतनमान पर आकर्षित कर रहे है जबकि डा गौरव अपने प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में ही सेवा करने जी इच्छा रखते थे ।
अब डॉ गौरव ने निर्णय लिया है कि वे सरकार और मंत्री जी की इस असंवदनशीलता के चलते नौकरी छोड़ने जा रहे है । अब आप लोग ही समझें कि यह है हाल उत्तराखंड के चिकित्सा शिक्षा विभाग का !

वही अपने माता पिता के ऑपरेशन के लिए जॉली ग्रांट में भर्ती होने के दौरान वृद्ध माता पिता के लिए कुछ दिन सेवा करने की गुहार लगा रही अकेली पुत्री डॉ नूतन का भी यही हाल है उनके 85 साल के वृद्ध माता पिता की गुहार भी मंत्री जी को नहीं सुनाई दी और जब मंत्री जी के कई चक्कर काटने पर जब मंत्री जी को नहीं सुनी तो उन्होंने यहाँ तक कहा कि वे अपनी 40 वर्षों की सेवा के बदले मात्र 6 महीने का एक्सटेंशन माँग माँग कर थक गई है पर कोई राहत नहीं मिली है इसलिए वो भी शीघ्र ही डा गौरव के पदचिह्नों पर चल सकती है और इन दोनों सहयोगी डॉक्टर्स के साथ हुए उत्पीड़न को देख कर अन्य डॉक्टर्स के कान भी अब खड़े हो गए है कि यदि उनको भविष्य में कभी ऐसी समस्या खड़ी हुई तो उनको कौन सहारा देगा ? ऐसा ना हो ही NMC के अगले निरीक्षण में टीम ही ना मिले और टीम नहीं मिली तो वर्ष की मान्यता नहीं मिल पाएगी ।

जी हाँ यह उत्तराखंड है यहाँ के मंत्री और शासन कान के कच्चे है और चापलूसों के कान भरने के कारण कम सुनने लगे है और जेनुइन समस्या तो बिल्कुल भी नहीं सुनने को तैयार है ना छात्रो के लिए चिंता है और पीजी के छात्रों को कौन पढ़ाएगा ना इसकी चिंता है ।
जय हो महात्मा गांधी देश की ।

मंत्री धन सिंह रावत से इस संबंध में उनका वक्तव्य लेने के लिए फ़ोन मिलाया तो उठाया नहीं और उनके PRO राकेश नेगी से बात हुई तो उन्होंने कहा बात करवा देंगे पर पिछली खबर छापे एक हफ़्ता हो गया फ़ोन नहीं आया । यदि एनेस्थीसिया डॉक्टर ना उपलब्ध होने पर किसी मरीज के ऑपरेशन में जान चली गई और या PICU /Nicu में छोटे बच्चो को समय पर इलाज ना मिला तो इसका ज़िम्मेवार कौन होगा यह आप पर ही छोड़ते है और छात्रों ने दोनों विषयों पर पढ़ाई ना होने का और कोर्स पूरा ना होने का आरोप लगाया तो वो भी किसकी ज़िम्मेदारी होगी यह भी आप पर छोड़ते है मंत्री जी
आशा है परसो जैसे आपने आधा घंटे में डा सयाना का स्थानांतरण वाला आदेश निरस्त किया जिसमें प्रोफेसर के प्रमोशन भी थे ठीक उसी प्रकार आप इन दोनों को भी न्याय प्रदान करेंगे । या जनता इस असंवेदनशीलता को क्या समझे ?और आने वाले चुनाव में इसका क्या संदेश जाएगा ?