देहरादून मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया और पीडियाट्रिक्स विभाग संकट में, डॉक्टरों ने मंत्री से की गुहार
देहरादून। प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत जहां देश-विदेश में दौरे कर मेडिकल कॉलेजों के लिए एमओयू साइन करने और अत्याधुनिक तकनीक लाने में व्यस्त हैं, वहीं राजधानी देहरादून के प्रमुख मेडिकल संस्थान—दून मेडिकल कॉलेज—के दो अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग एनेस्थीसिया और पीडियाट्रिक्स (शिशु रोग) गहरे संकट से जूझ रहे हैं।
मामला न केवल मानव संसाधन की कमी का है, बल्कि व्यक्तिगत मानवीय संवेदनाओं और चिकित्सा संस्थानों की कार्यक्षमता से भी जुड़ा हुआ है।
प्रथम प्रकरण – एनेस्थीसिया विभाग में विशेषज्ञ की कमी
जानकारी के अनुसार, दून मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग के एक वरिष्ठ और कुशल डॉक्टर का स्थानांतरण हाल ही में श्रीनगर दिया गया। यह स्थानांतरण कथित तौर पर एक करीबी ‘सिफारिश’ के आधार पर किया गया, जिसमें स्थान की वास्तविक स्थिति को दरकिनार कर निर्णय लिया गया।
जब संबंधित डॉक्टर ने श्रीनगर में पदभार ग्रहण करने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि वहां की सीट पहले से ही माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के तहत किसी अन्य डॉक्टर के अधीनस्थ आरक्षित है, जिसे हटाया नहीं जा सकता। डॉक्टर ने मंत्री जी से निवेदन किया कि उनका तबादला निरस्त किया जाए। निदेशालय ने भी अपनी रिपोर्ट मंत्री को सौंप दी है, जिसमें उक्त तथ्य स्पष्ट हैं।

दूसरा प्रकरण – पीडियाट्रिक्स विभाग की प्रोफेसर की मानवीय अपील
दूसरी ओर, दून मेडिकल कॉलेज की पीडियाट्रिक्स विभाग की एक सम्मानित प्रोफेसर, जिनके माता-पिता जॉलीग्रांट अस्पताल में गम्भीर अवस्था में भर्ती हैं, ने भी मानवीय आधार पर स्थानांतरण पर राहत की गुहार की है।
जनवरी माह में जब उनके माता-पिता स्वस्थ थे, तब उन्होंने स्वेच्छा से हल्द्वानी स्थानांतरण की इच्छा जताई थी, परंतु फरवरी में अचानक उनके माता-पिता की तबीयत बिगड़ने पर उन्होंने स्थानांतरण रोकने या छह माह का समय / अटैचमेंट देने का निवेदन किया। उन्होंने इस संबंध में मंत्री जी के दरवाजे से लेकर विधानसभा तक संपर्क साधा। परंतु अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया है।

क्या खोएगा दून मेडिकल कॉलेज?
दोनों डॉक्टर अपने-अपने क्षेत्र में न केवल विशेषज्ञ हैं, बल्कि ईमानदार, कर्मठ और व्यवहार कुशल भी माने जाते हैं। यदि उनका स्थानांतरण लागू हुआ तो दून मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया और पीडियाट्रिक्स विभागों में सेवाओं का गहरा अभाव उत्पन्न होगा, जिससे न केवल मरीजों बल्कि एमबीबीएस और पीजी छात्रों की शिक्षा भी प्रभावित होगी।
अब अपेक्षा मंत्री जी से
चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रदेश की रीढ़ है। यदि विभाग का मुखिया अपने अधीनस्थ डॉक्टरों की वाजिब और मानवीय समस्याओं की अनदेखी करेगा, तो इसका संदेश पूरे प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में निराशाजनक जाएगा।
अब जबकि चुनावी आचार संहिता समाप्त हो चुकी है, और दोनों डॉक्टरों ने मंत्री जी के जनता दरबार में अपनी समस्याएं दोबारा रख दी हैं, तो यह उचित समय है कि मंत्री जी संवेदनशीलता और नेतृत्व का परिचय देते हुए न्यायोचित निर्णय लें।
समाप्ति में – नेतृत्व की परीक्षा
प्रदेश भर के चिकित्सा छात्र, शिक्षक, एवं चिकित्सक वर्ग यह आशा कर रहे हैं कि मंत्री डॉ. धन सिंह रावत जल्द ही इस मुद्दे पर सकारात्मक निर्णय लेकर यह सिद्ध करेंगे कि वे न केवल टेक्नोलॉजी और समझौते लाने वाले मंत्री हैं, बल्कि अपने विभाग के कर्मचारियों के दुख-सुख में साथ खड़े रहने वाले एक संवेदनशील प्रशासक भी हैं।
उक्त खबर पर धन सिंह रावत से वॉयस ऑफ़ नेशन ने उनका वक्तव्य लेने हेतु आज प्रात उनके मोबाइल पर कॉल किया तो फ़ोन नहीं उठा । उनके पीआरओ राकेश नेगी से फ़ोन पर मंत्री जी बात करवाने हेतु कहा गया तो उन्होंने कहा कि वो दोपहर को या शाम को बात करवाएँगे ।