भ्रष्टाचार की चरम सीमा पर चिकित्सा शिक्षा विभाग उत्तराखंड । पढ़िए पंकज पांडे IAS का निलंबन किसने वापिस लिया और अब क्या कहा DOPT ने । बिल्ली के हाथ में दूध की रखवाली दी उत्तराखंड सरकार ने । मुख्य सचिव भी लाचार !
भ्रष्टाचार की चरम सीमा पर चिकित्सा शिक्षा विभाग उत्तराखंड । पढ़िए पंकज पांडे IAS का निलंबन किसने वापिस लिया और अब क्या कहा DOPT ने । बिल्ली के हाथ में दूध की रखवाली दी उत्तराखंड सरकार ने । मुख्य सचिव भी लाचार देहरादून : मुख्यमंत्री पुष्कर धामी रोज बयान देते है कि भ्रष्ट अफसर नपेंगे और उन पर कड़ी करवाही की जायेगी पर क्या वास्तव में इस कथन पर कारवाही हुई है ? यह एक सोचनीय विषय है जबकि ऊपर से चुनाव सर पर हो ।वैसे भी भाजपा के ऊपर इस बार जीरो टॉलरेंस ,देवस्थानम बोर्ड और भू कानून ,महिला संपति अधिकार जैसी कई ऐसी चुनौतिया हैं जिनसे पार पाना असंभव है पर हो सकता है की धामी की कुशल कार्यप्रणाली किसी हद तक भाजपा को किसी नए मोड़ पर ले जाए पर वह तभी संभव है जब जीरो टॉलरेंस अपना ताबड़तोड़ एक्शन दिखाए ।
उत्तराखंड का एन एच घोटाला हरीश रावत के कार्यकाल में जगत जाहिर है और तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने 2 IAS अफसर सस्पेंड करते हुए एक संदेश देने की कोशिश की थी पर ऐसा क्या हुआ कि तत्कालीन गवर्नर बेबी रानी मौर्य ने भ्रष्ट आई ए एस पर लगे इल्जाम वापिस ले लिए ( देखे DOPT ,GOI ) का आरटीआई में प्राप्त पत्र
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और अधिकारी पुनः मलाईदार पद पा गए और भ्रष्टाचार की चरम सीमा को लांघते हुए बिना निदेशक चिकित्सा शिक्षा की जांच आख्या प्राप्त किए उस संस्था को अनिवार्यता प्रमाण पत्र (एसेंशियलिटी सर्टिफिकेट ) जारी कर दिया जिसके बारे में 5 सदस्य समिति ,निदेशक चिकित्सा सिक्षा और स्वयं सचिव अमित सिंह नेगी ने यह लिखा हो की इस आवेदक संस्था के पास मानकों के अनुसार भूमि नही है
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मुख्य सचिव उत्तराखंड को भारत सरकार ने तत्काल इस प्रकरण और IAS पंकज पांडे के खिलाफ उचित निर्णय लेने के निर्देश दिए है पर मुख्य सचिव के कार्यालय में 2 बार आर टी आई लगाने पर जो जवाब प्राप्त हुआ वह मुख्यसविव के लाचार होने का सबूत बयान करता है
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जानकारों का कहना है की कॉरपोरेट गारंटी का सरकारी देनदारी में कोई प्रावधान नहीं है
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और जब पत्रावलिंका RTI के तहत अवलोकन किया गया तो पाया की न्याय विभाग ,वित्त विभाग ,प्रशासनिक विभाग द्वारा सिर्फ एक दूसरे विभाग को इस संबंध में पत्रावली संदर्भित की जाती रही पर किसी विभाग ने स्पष्ट रूप से इस कॉरपोरेट गारंटी स्वीकार करने को नही लिखा
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हालांकि सभी विभागों ने एक दूसरे पर फाइल घुमाते हुए स्पष्ट कही नही लिखा और यह भी लिख दिया की जगत नारायण सुभारती ट्रस्ट की देनदारी एमटीवी बुद्धि ट्रस्ट लेगी पर अक्ल पर पड़ी चमक वालो ने यह नहीं देखा की उसी नोट शीट में यह भी लिखा हैै कि इस ट्रस्ट का एम टी वी ट्रस्ट में विलय हो गया है और पुराने वाले चेहरे ही नई संस्था में भी है और दूसरा सवाल यह उठता है की शासन को रिपोर्ट देने वाले दोनो ही आई ए एस हैं दोनो में कौन झूठा है या कौन सही ? यह तो अब विजिलेंस विभाग ही बताएगा
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और अंत में सबने मिलकर बलि का बकरा विभागीय मंत्री को बनाते हुए हस्ताक्षर करवा लिए जबकि मंत्री महोदय ने कोई टिप्पणी या अनुमोदन शब्द नही लिखा । वही प्रधानमंत्री कार्यालय को उक्त समस्त तथ्यो पर प्राप्त शिकायत को राज्य सरकार को मार्क कर दिया और राज्य सरकार ने उक्त पर विजिलेंस को मैप कर दिया है उम्मीद की जा रही है जल्दी ही बड़े स्तर पर इस विषय पर बड़ी संस्थाएं छापामारी कर करवाही कर सकती हैं ।
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