उत्तराखण्ड पंचायत चुनाव 2025: निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा, कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन, और भाजपा के कई दिग्गज नेताओं के परिवारों को हार—इन सबके बीच क्या अगले विधानसभा चुनावों में एंटी‑इनकंबेंसी की स्थिति बन रही है या भाजपा नई कार्यकारिणी और मंत्री मंडल में बदलाव कर देगी कुछ नए संकेत ?
आपसी कलह से दिल्ली में चर्चाओ का बाज़ार गरमाया ।
वॉयस ऑफ़ नेशन (मनीष वर्मा) उत्तराखंड में हाल ही में सम्पन्न हुए पंचायती चुनाव 2025 के परिणाम स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि स्थानीय राजनीति में बड़ी हलचल मची हुई है। निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा, कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन, और भाजपा के कई दिग्गज नेताओं के परिवारों को हार—इन सबके बीच क्या अगले विधानसभा चुनावों में एंटी‑इनकंबेंसी की स्थिति बन रही है या नई भाजपा कार्यकारिणी और मंत्री मंडल में बदलाव कर भाजपा देगी कुछ संकेत ?
1. निर्दलीयों का दबदबा और कांग्रेस की वापसी
कुल 358 जिला पंचायत सदस्य सीटों में:
- निर्दलीय उम्मीदवार: 145
- भाजपा‑समर्थित उम्मीदवार: 121
- कांग्रेस‑समर्थित उम्मीदवार: 98
- इस परिणाम ने यह संकेत दिया कि जनता अब पारिवारिक राजनीतिक दलों से अधिक स्थानीय नेतृत्व और भरोसे को तरजीह दे रही है।
2. दिग्गजों के घरों में हार का अहसास
यह चुनाव भाजपा के लिए इसलिए भी संवेदनशील रहा क्योंकि कई वरिष्ठ नेताओं के संबंधियों की हार ने उन्हें झकझोर कर रख दिया:
- भाजपा विधायक महेश जीना (सॉल्ट) के पुत्र करण जीना चुनाव हार गए।
- नैनीताल विधायक सरिता आर्या के पुत्र रोहित आर्या को भी हार का सामना करना पड़ा।
- भिमताल विधायक राम सिंह कैड़ा की बहू को हार का सामना करना पड़ा।
- लैंसडौन विधायक दिलीप रावत की पत्नी नीतू रावत चुनाव हार गईं।
- राजेंद्र भंडारी (पूर्व मंत्री) की पत्नी राजनी भंडारी को भी हार का सामना करना पड़ा।
- साथ ही, नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया, चमोली भाजपा अध्यक्ष गजपाल भर्तवाल इत्यादि को भी हार झेलनी पड़ी।
- बीजेपी के पूर्व विधायक मालचंद की बेटी क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव भी हारी है.
इसी तरह से उत्तरकाशी जिले के पूर्व भाजपा जिला अध्यक्ष सत्येंद्र राणा खुद जिला पंचायत सीट हार गए हैं. - टिहरी जिले में बीजेपी की पूर्व ते भिलंगाना प्रमुख नीलम बिस्ट भी चला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गई है.
- टिहरी जिले से ही विधायक शक्ति लाल शाह के दामाद हरंद्र शाह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गए हैं.
- इस त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में इतना ही नहीं, चंपावत जिले से भी बीजेपी के पूर्व विधायक पूरन सिंह फ़र्त्याल की बेटी जिला पंचायत का चुनाव हारी है.
- चंपावत जिले से ही भाजपा के पूर्व प्रमुख लक्ष्मण सिंह स्वयं, बेटा भतीजा दो बहुएं अलग-अलग क्षेत्र से पंचायत चुनाव हारे हैं
- राजधानी देहरादून में जहाँ भाजपा RSS का मुख्य कार्यस्थल है वहाँ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सीट कांग्रेस का ले जाना बड़ी बात है ।
यह स्पष्ट संकेत है कि जनता ने वंशवादी उम्मीदवारों को नकारा — भाजपा के लिए यह बड़े नेताओं को चुनौती देने जैसा रहा।
3. हिंसा और तनाव की घटनाएँ
- नैनीताल ज़िला: फायरिंग, झड़प, अपहरण जैसी गंभीर घटनाओं के बाद माननीय उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा; District Panchayat अध्यक्ष के परिणाम को सील कर रोक दिया गया और 19 अगस्त को जारी किए गए परिणाम में दीपा धर्मवाल अध्यक्ष और कांग्रेस की देवकी बिष्ट को उपाध्यक्ष पद प्राप्त हुआ ।
- उधम सिंह नगर: रुद्रपुर में हाथ से 8 पिस्तौल बरामद; एक व्यक्ति ने चुनाव परिणाम के मानसिक दबाव में आत्महत्या कर ली।
- अन्य ज़िलों में चुनाव शांतिपूर्ण रहे।
4. क्या विधानसभा से पहले एंटी-इनकंबेंसी की आहट है?
यह चुनाव भाजपा के लिए संकेत हैं ?
- निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत,
- कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन,
- और भाजपा नेता संबंधियों की हार,
— यह सब मिलकर यह संकेत देते हैं कि जनता में स्थानीय, भरोसेमंद नेतृत्व की तलाश बढ़ी है, और स्थापित राजनीतिक परिवारों से असंतोष की भावना भी।
यह आने वाले विधानसभा चुनाव 2027 में भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी हो सकती है।
निष्कर्ष
उत्तराखण्ड की राजनीति अब पहले से कहीं जटिल हो गई है—निर्दलीयों की पनाह, कांग्रेस का फिर से दमखम, चुनावी हिंसा की घटनाएँ और भाजपा के बड़े नेताओं को घर से हारे प्रत्याशी —ये सब मिलकर विधानसभा चुनाव के लिए एंटी-इनकंबेंसी की संभावना को बढ़ा रहे हैं।
वहीं मंत्रिमंडल विस्तार ना होने से भी विधायक नाराज है और अधिकांश दिल्ली हाईकमान को अपनी व्यथा सुना आए है हालांकि कल मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडल के 5 खाली पड़े स्थानों को शीघ्र भरने के संकेत दिए है परंतु इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम हो सकते है ।
सकारात्मक तो यह की प्रदेश के विकास के लम्बित एवं महत्वपूर्ण निर्णय जल्दी होंगे और विकास को गति मिलेगी और नकारात्मक यह कि अब तक कई विधायक जिन्हें मंत्री बनाने का आश्वासन दिया गया था, उनके ना बनने पर ऊहापोह की स्तिथि उत्पन्न हो सकती है । वहीं आरएसएस अब भाजपा पर हावी होती रही है क्यूंकि आरएसएस पार्टी के वरिष्ठ,जमीन से जुड़े और संघर्षशील कार्यकर्ताओं को आगे लाना चाहती है वैसे भी “ पुरानों/नव आगंतुकों “ को किया वादा अब पूरा हो चुका है ।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय की 25 अक्तूबर 2024 की आधिकारिक सूची में निम्न भाजपा विधायक अभियोजन/कार्यवाही का सामना करते दिखते हैं:
राम सिंह कैढ़ा
मोहन सिंह बिष्ट
आदेश सिंह चौहान
3. CBI की विशेष जांच (Plantation/Horticulture Scam)
- उत्तराखंड के होर्टिकल्चर (कार्य) विभाग में कथित पौधरोपण/सहायता घोटाले की जांच को CBI सुपुर्द करने सम्बन्धित उच्च न्यायालय का आदेश पहले आ चुका था ।
- 1. Corbett Tiger Reserve (Pakhro Range) CBI जांच
- क्या मामला है?
कोर्बेट टाइगर रिज़र्व के पाखरो रेंज में अनधिकृत पेड़ कटाई और निर्माण से संबंधित मामला, जिसके संबंध में CBI जांच की गई है — इसे उच्च न्यायालय ने CBI को सौंपा था। - उनियाल का बयान (अगस्त 2024 में):
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ‘Central Empowered Committee’ (CEC) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में IFS अधिकारी को सीधा दोषी नहीं ठहराया गया है, और जितनी सहमति बनी थी उसमें उनका और मुख्यमंत्री का एकमत योगदान था। उन्होंने यह भी दावा किया कि CBI FIR में IFS अधिकारी का नाम नहीं था। - अगस्त 2024 का SC रुख:
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि उत्तराखंड सरकार “feudal era” की मानसिकता से चल रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री ने जांच लंबित रहते हुए अधिकारी की तैनाती पर विरोध के बावजूद अनुमति दी थी। अदालत ने कहा कि जब विभागीय कार्यवाही चल रही हो, तो जिम्मेदारी नहीं सौंपनी चाहिए।
2. 2016 स्टिंग वीडियो केस में CBI पूछताछ (नई जानकारी, मई 2025)
- CBI पूछताछ से मना (मई 2025):
2016 में सामने आए एक स्टिंग वीडियो मामले में CBI द्वारा दिल्ली में पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर, मंत्री सुबोध उनियाल ने अपनी मिनिस्ट्रीयल ज़िम्मेदारी का हवाला देते हुए उपस्थित होने से इनकार कर दिया। - CBI जांच उत्तराखंड के वन विभाग से जुड़ी पर्यावरणीय अनियमितताओं को लेकर है, जिसमें सुबोध उनियाल ने राजाजी टाइगर रिज़र्व डायरेक्टर की नियुक्ति के दौरान विभागीय प्रक्रियाओं पर विवादित निर्णय का बचाव किया था।
- क्या मामला है?
- आदेश सिंह चौहान (रणीपुर BJP MLA) — 2009 के “गलत तरीके से हिरासत/झूठे दहेज केस” प्रकरण में CBI विशेष अदालत ने 6 माह की सजा सुनाई (मई 2025); जमानत मिली। आरोपों में अवैध हिरासत, साजिश, जबरन वसूली आदि शामिल थे।
- महेश सिंह नेगी (द्वाराहाट; पूर्व BJP MLA) — 2020 में दुष्कर्म का आरोप; कोर्ट ने DNA टेस्ट के निर्देश दिए थे। बाद में जांच रिपोर्ट में क्लीन-चिट (दिसंबर 2021); 2025 में अलग कार्यवाही में अदालत से बरी होने की खबर भी आई। महेश नेगी की छवि अपनों ने ही ख़राब करने की कोशिश की गई ।
- दुराचार/हिंसक आचरण के मामले (भ्रष्टाचार नहीं)
- कुँवर प्रणव सिंह ‘चैम्पियन’ (खानपुर; 2019 में BJP MLA) — हथियार लहराते/अपशब्द वाले वीडियो के बाद पार्टी कार्रवाई/निलंबन; 2025 में (पूर्व MLA रहते) फायरिंग प्रकरण में गिरफ़्तारी उसके बाद जमानत जबकि कुंवर प्रणव पर और कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं मिला उनकी लड़ाई राजनीतिक एवं सिर्फ़ मूँछ के बाल की थी ।
- भ्रष्टाचार/वित्तीय अनियमितता” से जुड़े नाम (एजेंसियों की जांच) :-
- हरक सिंह रावत (पूर्व मंत्री/पूर्व BJP विधायक; बाद में कांग्रेस) — कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में अवैध निर्माण/टेंडर अनियमितताओं से जुड़े प्रकरण में CBI/ED की जांच/पूछताछ का उल्लेख; ED ने इसी केस में संपत्तियाँ अटैच कीं (मुख्य अभियुक्त वन अधिकारियों के खिलाफ PMLA चार्जशीट, नेताओं से पूछताछ)। रावत के खिलाफ इस मामले में चार्जशीट की पुष्टि । हरक सिंह ने प्रदेश अभियोजन विभाग पर बड़े आरोप लगाए और दबाव में काम करने का आरोप लगाया ।
- पूर्व मंत्री/विधायक हरक सिंह रावत के खिलाफ भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED द्वारा चार्जशीट दर्ज की गई। यह ED की Dehradun यूनिट द्वारा एक प्रमुख कदम है। तथा सन्निकार बोर्ड में भारी अनियमितताये CAG ऑडिट रिपोर्ट में महालेखाकार की वेबसाइट पर उपलब्ध है । अब हरक सिंह ने विभीषण का रूप धर कर भाजपा के लिए 30 करोड़ रुपए चंदा उगाहने का आरोप जड़ते हुए ख़ुद को भी उसमे शामिल कर लिया है और जनता यदि इन सब तथ्यों को झूठा भी मान ले या मात्र आरोप तक ही सीमित रहे पर यहाँ तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ख़ुद ही सार्वजनिक रूप से स्पष्ट कर दिया की 30 करौड़ नहीं थे 27 करोड़ रुपए थे यानी सरकार के पूर्व मुखिया आरोपों को ख़ुद ही सिद्ध कर दिया । हरक सिंह ने आज मीडिया में कहा की भाजपा नेता ही दुराचारी है और यहाँ तक की हरिद्वार भाजपा महिला मोर्चे की नेता पर भी अनर्गल आरोप लगाये तो जानता यह पूछती है की आपको पुचकार कर भाजपा रखती तो आप ये खुलासे ना करते ? हरक सिंह को आज विधायक 2 पेंशन ले रहे है याद आई जब ED बैठ गई ।
- जनता में चर्चा हो गई है कि 27 करोड़ रुपए ऐसे ही तो व्यापारियों ने दिए नहीं होंगे उसके बदले कई गुना प्रदेश कार्यों से वसूला भी होगा ।
- 1. हरिद्वार भूमि घोटाला (₹54 करोड़)
- जांच एजेंसी: राज्य सतर्कता विभाग, संभावित ED जांच
- मुख्य विवरण:
- घोटाले का खुलासा: एक अवैध भूमि खरीद की जांच में पता चला कि एक कचरे के स्थल के पास 2.307 हेक्टेयर भूमि को ₹14 करोड़ की लागत बताकर ₹54 करोड़ में हड़प लिया गया था।
- कार्रवाई: 12 वरिष्ठ अधिकारियों सहित Haridwar DM समेत IAS/PCS अधिकारियों की निलंबन/बर्खास्तगी। CM Pushkar Singh Dhami “zero tolerance against corruption” की नीति पर ज़ोर दे रहे हैं। वहीं कमिश्नर गढ़वाल के यहाँ लैंड फ्रॉड केसेस का जमावड़ा लगा है और कई मामले वर्षों से लंबित है और जनता का सही जांच ना होने के आरोप भी हैं ।
- 2. NH-74 भूमि अधिग्रहण घोटाला
- एजेंसियाँ: राज्य सरकार ने CBI से जांच मांगी; उच्च सतर्कता स्तर पर चर्चा
- मुख्य जानकारी:
- सन 2017 में NH-74 परियोजना के लिए भूमि के धांधलीपूर्ण अधिग्रहण (18 मामलों में 20 गुना अधिक मुआवजा) की रिपोर्ट और ₹240 करोड़ की कथित हेराफेरी सामने आई। कुछ अधिकारी सेटिंग से बच गए कुछ फँस गए ।
- Assembly Recruitment Scam (भर्ती में गड़बड़ी): नैनीताल HC ने विधानसभा भर्ती में अनियमितताओं की जांच का आदेश देते हुए, राज्य सरकार से जवाब मांगा।
- कांग्रेस में क्या कमी रही ?
- कांग्रेस के विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने कांग्रेस की सबसे ज़्यादा मिट्टी पलीद करवाई तभी 11 विधायक सरकार गिरा कर भाजपा में गए । हरीश रावत के सरकार मे जबरदस्त घोटाले हुए और जनता ने ठीकरा बहुगुणा और रावत पर फोड़ा और मोदी की लहर और एंटी इंकम्बेंसी में भाजपा ने परचम लहराया गया ।
- कांग्रेस में गुटबाज़ी,आंतरिक कलह,टिकट बिकवाली आदि ऐसा दंश रहा जिससे कई दिग्गज अपनी जनता में साख बचाने को भाजपा में शामिल हो गए हालांकि उन्हें वहाँ भी कोई सम्मान नहीं मिला पर फोटो खिंचाने का शौक सबका पूरा हुआ और नेताओं को गुलदस्ते ही देकर अपनी साख बचाए बैठे है और और चुनावो के आने का इंतेज़ार कर रहे है कि अगला राज किसका आयेगा अनुमान लगा रहे है ।
- एक काम धामी ने अच्छा किया की आरएसएस और पार्टी के कुछ जमीनी कार्यकर्ताओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया पर अब जब मंत्री मंडल का विस्तार होगा तो उनका क़द छोटा होना तय है क्यूंकि जिस जिस विभाग के राज्यमंत्री बने है वो अपने को उस विभाग का मंत्री ही समझ रहे है ।
- पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (कांग्रेस नेता):
- CBI ने उन्हें 2016 के स्टिंग ऑपरेशन मामले में आवाज़ की सैंपल देने के लिए नोटिस जारी किया, जिसे अस्पताल में ही सर्व किया गया।
- आज हरीश रावत भाजपा के राज को दलालों का राज बता रहे है पर उनसे पूछा जाए की उनकी सरकार क्यों गिरी ? क्या उनको देश दुनिया ने सरे आम टीवी पर हरक सिंह रावत को यह कहते नहीं सुना था कि तुम जितना चाहो लूट लेना मैं आँखें फेर लूंगा ! अपने समय के अनगिनत घोटाले भूल गए हरीश रावत ?
- उत्तराखंड की जनता की ये भूल है जो इस प्रदेश के निर्माण के विरोधी रहे उनको जनता ने मुख्यमन्त्री बनने दिया । हरीश रावत नारायण दत्त तिवारी की सरकार में भी सेंध लगाते रहे पर कामयाब नहीं हो पाए और अब कई बार रिटायर हो गया बोलते बोलते भी फिर राजनीतिक बयान दे देते है ।
- विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत पर कई गंभीर आरोप लगे ।हालांकि उनके दूसरे पुत्र सौरभ अपनी निर्विवाद छवि के चलते अपनी साख बचाने में कामयाब रहे हालाँकि की घोटाला सौरभ बहुगुणा के विभाग कौशल विकास विभाग में भी जबरदस्त हुआ यहाँ तक की जो जीवित नहीं थे उनको भी कौशल विकास से पैसा मिला और बात उत्तराखंड हाई कोर्ट में सीबीआई जांच की माँग को लम्बित है जिसमे सरकार को भी जवाब देना पड़ा है ।
- जनता के मन की बात :
- जनता के मन में है कि जो कांग्रेस छोड़ कर गए विधायक भाजपा सरकार में मंत्री बनाये गए वो वर्षों से कांग्रेस में रहे है इसलिए यह भाजपा का चेहरा ओढ़े कांग्रेस सरकार है क्यूंकि अधिकांश भाजपा कार्यकर्ता उन कांग्रेस से आए विधायकों के ख़िलाफ़ चुनाव में कार्य करते आए है और जिनके ख़िलाफ़ काम करते थे अब वो ही मंत्री बने बैठे है और उनको पूछते ही नहीं है ।
- यह एक फैक्टर भी भाजपा कार्यकर्ता को इफ़ेक्ट किया है । उदाहरण के तौर पर टिहरी के किशोर उपाध्याय जिनको अंतिम दिन कांग्रेस से आने पर भाजपा से टिकट दिया गया और मोदी लहर में विधायक बन गए तो भाजपा का वही कार्यकर्ता जो आजतक उनके विरोध में कार्य करता आया था अब सिर्फ 5 साल समाप्त होने का इंतज़ार कर रहा है । फरवरी 2027 से पूर्व उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव संपन्न होने है और 3 महीने आचार संहिता आदि के देखे तो दिसम्बर 2026 तक ही सरकार का महत्वपूर्ण कार्यकाल/2026 चुनावी वर्ष रहने वाला है इधर अब त्योहारों का सीजन शुरू हो गया है गणपति उत्सव ,पितृपक्ष, नवरात्रि और दशहरा दिवाली के बाद क्रिसमस और नया वर्ष आते देर नहीं लगने वाली है और इस बार तो राज्य स्थापना दिवस पर उत्तराखंड अपनी स्थापना का रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) भी मनाएगा जिसके लिए 13 जिलों में धूमधाम से मनाये जाने का करोड़ो रुपए का टेंडर सूचना विभाग ने करके निजी कंपनी को दे चुका है जिसकी प्रक्रिया 30 मई को पूर्ण हो गई है । इसके अलावा वर्ष 2026 के 52 शनिवार और 52 रविवार और 3 राष्ट्रीय अवकाश 15 अगस्त,26 जनवरी, 2 अक्टूबर के बाद 14 तिथि त्योहारों की निकाल दे तो 241 स्पष्ट दिन मिलेंगे पार्टियो को अपनी रणनीति और सरकार को अपने को परिपक्व साबित करने में ।
- इस बार का विधानसभा सत्र भी जबरदस्त रहा है क्यूंकि प्रश्नों का इतना अंबार लगा है कि अधिकारी परेशान थे और अपने ही मातहतो को जबरदस्त डाँट फटकार लगाते दिख रहे थे उसका कारण यह है की यहाँ सचिवालय में बाबू प्रथा का बोलबाला है पूरे उत्तराखंड में कहीं से भी किसी की भी ,कोई भी शिकायत,प्रार्थना,विकास का पत्र आए तो उसको ना तो मंत्री देखते है और ना IAS सिर्फ उनके बाबू देखते है और मार्क करके आगे भेज देते है जिससे ना मंत्री और ना आईएएस को समस्या का पता चल पाता है और ना ही उसका निदान हो पता है और पत्र भेजने वाला विधायक या कार्यकर्ता ठगा सा महसूस करता है । वहीं किसी भ्रष्टाचारी की शिकायत होती है तो ऊपर से वो बाबू ऐसा मार्क करते है कि रावण की शिकायत की जांच को रावण को ही सौंप दी जाती है । ऐसे सेंकड़ो मामले है ।
- प्रादेशिक दल,बसपा,सपा,वामपंथी का क्या रुख़ होगा उसका भी विश्लेषण हम बतायेंगे जल्द बतायेंगे ।
- चर्चा है कि बड़े बदलाव संभव है पर किस रूप में यह देखना होगा क्यूंकि प्रदेश अध्यक्ष गढ़वाल से निर्वाचित हो गए है और इस हफ़्ते में ही अपनी कार्यकारिणी घोषित करने वाले है उसमे सिर्फ़ देखना यह होगा कि वो अपने विवेक से अगले चुनाव को देखते हुए कार्यकारिणी घोषित करते है या पुराने बुझे हिए कारतूसों के चमचो को महत्व देते हैं । भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तो विधिवत सीट पर जम कर बैठ गए है तो बदलाव हुआ बड़ा बदलाव कुमाऊँ से होगा और वहाँ कौन आरएसएस का नजदीकी,वरिष्ठ और तजुर्बेकार है,यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब हाईकमान या मुख्यमंत्री ही दे सकते हैं ।
- वैसे यह मिथक और जनता में चर्चा भी है की जब जब प्रदेश में बड़ी आपदायें आई है, प्रदेश में बड़े बदलाव हुए है ।
- उत्तराखंड CAG की दो ऑडिट रिपोर्ट बहुत खतरनाक है क्यूंकि ऑडिट रिपोर्ट ऐसी महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसे सिर्फ संसद ही अस्वीकार कर सकती है और किसी को इस पर आपत्ति करने और बदलने या पुनः जाँच का अधिकार नहीं है और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार ही कैग (CAG) रिपोर्ट पर बदल गई थी ।
- देखिए कैसे प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग में बड़ा घोटाला हुआ कि CAG रिपोर्ट ने सरकार की पोल ही खोल दी 🙁यह घोटाला त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमन्त्री रहते हुआ )
- भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की विशेष ऑडिट रिपोर्ट का खुलासारास बिहारी बोस सुभार्ती विश्वविद्यालय, गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय (पूर्व में श्री देव सुमन सुभार्ती मेडिकल कॉलेज) और महायान थेरवाद वज्रयान ट्रस्ट (MTVT) से जुड़े चौंकाने वाले अनियमितताओं, वित्तीय कुप्रबंधन और दस्तावेज़ों की कथित जालसाजी का खुलासा हुआ है।घोटाले का पर्दाफाश: ऑडिट की मुख्य बातें
- आवश्यकता व संबद्धता में हेरफेर: CAG ने पाया कि मेडिकल कॉलेज ने आवश्यकतापत्र (Essentiality Certificate – 2014) और उसके बाद एनएमसी (2016–2020) की अनुमतियाँ बिना अनिवार्य प्रथम निरीक्षण के प्राप्त कर लीं। नियमों को दरकिनार कर वास्तविक सत्यापन की जगह केवल हलफनामों के आधार पर अनुमति ली गई।
- जाली और पूर्व दिनांकित दस्तावेज़: ज़मीन के स्वामित्व प्रमाणपत्र, भवन पूर्णता प्रमाणपत्र और संकाय नियुक्ति पत्र सहित कई दस्तावेज़ों को कथित रूप से फर्जी या पूर्व दिनांकित करके अधिकारियों को गुमराह किया गया।
- ग़ैर-क़ानूनी छात्र प्रवेश: गंभीर अनुपालन खामियों के बावजूद, ट्रस्ट ने हर वर्ष 150 MBBS छात्रों को दाख़िला दिया। इस तरह कुल 300 से अधिक छात्रों का अवैध दाख़िला हुआ, जिन्हें अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकारी कॉलेजों में शिफ्ट करना पड़ा।
- ₹133.33 करोड़ का बोझ: विस्थापित छात्रों को पढ़ाने का अतिरिक्त वित्तीय बोझ राज्य सरकार के खजाने पर पड़ा, लेकिन अब तक सुभार्ती ट्रस्ट से कोई वसूली नहीं की गई।
- भूमि व अधोसंरचना में गड़बड़ी: ट्रस्ट ने स्वामित्व वाली मेडिकल अधोसंरचना घोषित की, जबकि CAG ने पुष्टि की कि वह भूमि मात्र /संचालन पर सुभारती (एक तरह से किरायेदार)के पास थी,एमटीवीटी ट्रस्ट का स्वामित्व नहीं है ।
- संकाय व स्टाफ जालसाजी: NMC रिकॉर्ड पर दर्ज संकाय सदस्यों के नाम वेतन वितरण अभिलेखों से मेल नहीं खाते थे। कई डॉक्टरों के नाम दर्ज थे जिन्होंने कभी कॉलेज में काम ही नहीं किया।
- वित्तीय धन का दुरुपयोग: छात्रों से वसूली गई फीस को कथित रूप से ट्रस्ट की अन्य गतिविधियों में मोड़ दिया गया, जबकि इसका उपयोग अनिवार्य रूप से मेडिकल शिक्षा के लिए होना चाहिए था।
- सुप्रीम कोर्ट आदेश का उल्लंघन: सीलिंग आदेशों के बाद भी ट्रस्ट ने अलग-अलग नामों से संचालन जारी रखने की कोशिश की।
सुभार्ती ट्रस्ट और MTVT ट्रस्ट द्वारा जालसाजी
- सुभार्ती ट्रस्ट ने कथित रूप से झूठे हलफनामे और हेरफेर किए गए निरीक्षण रिपोर्ट NMC और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपे।
- महायान थेरवाद वज्रयान ट्रस्ट संपत्ति और अनुमति संबंधी कागज़ात में फ्रंट की तरह सामने आया और जाली अनुपालन दस्तावेज़ जमा कर प्रत्यक्ष जांच से बचने की कोशिश की।
जनाक्रोश और CBI–Enforcement Directorateजांच की मांग
CAG रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्र संगठनों और चिकित्सा संघों ने IPC और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार के लिए तत्काल CBI और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा आपराधिक जांच की मांग की है।

CAG UTTRAKHAND Report

- दूसरी कैग रिपोर्ट:
- CAMPA (Compensatory Afforestation Fund) में धन के दुरुपयोग की रिपोर्टCAG की रिपोर्ट ने कई प्रकार की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया है, जिनमें शामिल हैं:
- वन पुनर्वनीकरण हेतु निधियों का दूसरी जगह उपयोगCAMPA फंड से लगभग ₹13.86 करोड़ ऐसे खर्चों के लिए उपयोग किए गए जो पुनर्वनीकरण के उद्देश्य से संबंधित नहीं थे। इनमें शामिल हैं:
- iPhones, लैपटॉप, फ्रिज, कूलर जैसी वस्तुओं की खरीद
- भवनों का नवीनीकरण, कोर्ट खर्चे और कार्यालय सामग्री
- अधिक अवधि में पुनर्वनीकरण कैरी-आउट और लागत वृद्धिCAMPA के नियमों के अनुसार फंड मिलने के एक‑दो मौसम में वनीकरण होना चाहिए, लेकिन 37 मामलों में यह कार्य 8 साल बाद प्रारंभ किया गया, जिसके कारण ₹11.54 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आवश्यक हुआ।• ऑफिसियल प्रक्रियाएं और निरीक्षण की अनदेखी
- 1,204 हेक्टेयर भूमि ऐसे क्षेत्र में उपयोग में लाई गई जो पुनर्वनीकरण के लिए उपयुक्त नहीं थीं—जिससे प्राप्त ‘उपयुक्तता प्रमाणपत्र’ अनुपस्थित या गलत थे। संबंधित DFOs (Divisional Forest Officers) के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
- CAMPA CEO ने जुलाई 2020 से नवम्बर 2021 तक वन बल प्रमुख (Head of Forest Force) की मंजूरी के बिना फंड जारी किया—यह अनुमति नियमों के ऊपर था।
• पौधों की जीवित दर कम : पुनर्वनीकरण के तहत लगाए गए पौधों की जीवन दर केवल 33.5% रही, जबकि Forest Research Institute द्वारा निर्धारित न्यूनतम सीमा 60–65% है।
- राज्य वित्तीय प्रबंधन में लापरवाही
- 2005–06 से 2020–21 तक, उत्तराखंड सरकार ने ₹47,758.16 करोड़ व्यय किए लेकिन यह व्यय विधानसभा की मंजूरी के बिना किया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 204 और 205 का उल्लंघन है। इसको दुरुस्तीकरण किया जाना चाहिए था ।
- PWD (Public Works Department) की 75 योजनाओं पर ₹509.66 करोड़ का खर्च हुआ, जबकि उनमें से कई योजनाएँ पूरी नहीं हो पाईं।
- स्थानीय निकायों द्वारा ₹1,390 करोड़ के उपयोग प्रमाणपत्र (UCs) में से कई (321 UC) मार्च 2021 तक अग्रसारित नहीं किए गए —इससे धन के दुरुपयोग का खतरा है आदि आदि ।
- और सबसे बड़ा तो NIC जो राज्य सरकार की IT एजेंसी है और सारे कार्य NIC के द्वारा सम्पादित होते है उस से ट्रेजरी का काम हटा कर निजी एजेंसी को दिया जाना जिसमे अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान पर गंभीर आरोप लगे जिससे उत्तराखंड के सरकारी कर्मचारियों का व्यक्तिगत डेटा निजी हाथों में शेयर हो गया और IFMS सिस्टम में कई गड़बड़ी उजागर हुई जिनमें करोड़ों रुपए कई कर्मचारियों को दो-दो बार चले गए जिनकी आजतक वसूली नहीं हो पाई है
- पड़ताल जारी है । विस्तार से होगी चर्चा आप ………पढ़ते रहें खबर वॉयस ऑफ़ नेशन पर क्यूंकि ……हम है देश की आवाज