किसी वैक्सीन के प्रभावशाली होने का कैसे किया जाता है आकलन, पढ़ें

नई दिल्ली,VON NEWS: दुनिया में कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन एक अहम भूमिका निभाने वाली है। अब इन वैक्सीन के प्रभाव पर सभी की निगाहें हैं। भारत में 16 जनवरी से कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन का अभियान शुरू किया जा रहा है। भारत में दो वैक्सीन के साथ वैक्सीनेशन के अभियान की शुरुआत की जा रही है। इनमें कोविशील्ड और कोवैक्सीन हैं। कोविशील्ड, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन है, भारत में वैक्सीन का निर्माण पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पास है। वहीं, कोवैक्सीन  विकास भारतीय चिकित्सा परिषद (आइसीएमआर) और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने संयुक्त रूप से किया है।

हालांकि, बात यहां एफीकेसी रेट की है, जिसे प्रभावकारिता कहा जाता है। सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड की दो डोज दिए जाने एफीकेसी दर 62 फीसदी बताई गई है, जब्कि भारत बायोटेक की एफीकेसी रेट का डेटा जारी ना किए जाने को लेकर बवाल की स्थिति देश में है। वहीं, यहां यह समझना भी जरूरी है कि आखिर कैसे तय होती है प्रभावकारिता? इस रेट का क्या मतलब है? आइए जानते हैं…

आपको बता दें कि वैक्सीन डेवलपर मानते थे कि कोरोना वैक्सीन का एफीकेसी रेट 50 से 70 फीसद तक रहेगा, लेकिन Pfizer वैक्सीन और BioNTech ने अपनी वैक्सीन का एफीकेसी रेट 95 फीसद तक बताया है। जबकि रूस की Sputnik और अमेरिका की Moderna का एफीकेसी रेट 90 से 94.5 फीसद तक बताया गया। इससे डेवलपर हैरान है और खुश भी।

हालांकि, डेवलपर मानते हैं कि 90 फीसदी एफीकेसी रेट का ये मतलब नहीं है कि अगर 100 लोगों को वैक्सीन लगाई गई तो 90 फीसद लोगों पर असरदार होगी। आपको बता दें कि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 100 साल पहले वैज्ञानिकों ने वैक्सीन ट्रायल के नियम बनाए थे। इसके तहत, ट्रायल में कुछ वॉलंटियर्स को असल में वैक्सीन दी जाती है, जबकि कुछ को आर्टिफिशियल टीका लगा दिया जाता था। इसपर शोधकर्ता देखते थे कि किस ग्रूप के कितने लोग बीमार हुए।

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