बच्चों पर कार्टून सीरियल्स का दिख रहा बहुत प्रभाव, ये है वजह जानिए

नई दिल्ली,VON NEWS: अभी अभी क्रिसमस बीता है, उस अवसर पर एक मित्र से बात हो रही थी। उन्होंने बताया कि क्रिसमस के दो दिन पहले उनकी तीन साल की बिटिया ने उनसे पूछा कि व्हेयर इज माइ क्रिसमस ट्री ? उसके पहले भी वो अपनी बिटिया के बारे में बताते रहते थे और इस बात को लेकर चिंता प्रकट करते थे कि बच्चों पर कार्टून सीरियल्स का असर पड़ रहा है

क्रिसमस ट्री वाली बात बताते हुए उन्होंने कहा कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि बच्चे कहने लगें कि ‘टुडे इज संडे, लेट्स गो टूट चर्च’ ( आज रविवार है, चलो चर्च चलते हैं) । उनसे बातचीत होने के क्रम में ही एक और मित्र से हो रही बात भी दिमाग में कौंधी। उसने भी अपने दो साल के बेटे के उच्चारण के बारे में बताया था कि वो इन दिनों वो शूज को शियूज कहने लगा है। इन दोनों में एक बात समान थी कि दोनों के बच्चे यूट्यूब पर चलनेवाले सीरियल पेपा पिग देखते हैं और उसके दीवाने हैं।

लॉकडाउन के दौरान जब बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे तो ‘पेपा पिग’ और भी लोकप्रिय हो गया। यूट्यूब पर इसका अपना चैनल है जिसको लाखो बच्चे देखते हैं। पेपा पिग चार साल की है जिसका एक भाई है जॉर्ज और उसके परिवार में मम्मी पिग और डैडी पिग हैं। इस कार्टून कैरेक्टर के वीडियोज को ब्रिटेन की एक कंपनी बनाती है और उसको यूट्यूब पर नियमित रूप से अपलोड करती है।

ये बातें बेहद सामान्य बात लग सकती है। ‘पेपा पिग’ के वीडियोज के संदर्भ में ये तर्क भी दिया जा सकता है कि वो परिवार की संकल्पना को मजबूत करता है। ये बात भी सामने आती है कि ब्रिटेन में जब पारिवारिक मूल्यों का लगभग लोप हो गया था तो बच्चों को परिवार नाम की संस्था की महत्ता के बारे में बताने के लिए पेपा पिग का सहारा लिया गया है। वो वहां काफी लोकप्रिय हो रहा है लेकिन उन्होंने इन वीडियोज को अपने धर्म, अपनी संस्कृति के हिसाब से बनाया है। लेकिन जिस तरह की बातों का उल्लेख ऊपर किया गया है, उसके बाद इन वीडियोज के हमारे देश में प्रसारण के बारे में विचार किया जाना चाहिए।

भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य को अंग्रेजी में उपलब्ध सामग्री ने नेपथ्य में धकेल दिया। अब तकनीक के माध्यम से जिस तरह से भारतीय संस्कृति को दबाने का प्रयास किया जा रहा है उसका प्रतिकार जरूरी है। प्रतिकार का दूसरा एक तरीका ये हो सकता है कि बच्चों के लिए बेहतर वीडियोज बनाकर यूट्यूब से लेकर अन्य माध्यमों पर प्रसारित किए जाएं। इसको ठोस योजना बनाकर क्रियान्वयित किया जाए।।

भारतीय संस्कृति, परंपरा और भारतीयता को चित्रित करते वीडियोज को बेहद रोचक तरीके से पेश करना होगा ताकि बच्चों की उसमें रुचि पैदा हो सके। हमारे पौराणिक कथाओं में कई ऐसे चरित्र हैं जो बच्चों को भा सकते हैं। इसके लिए सांस्थानिक स्तर पर प्रयास करना होगा क्योंकि ‘पेपा पिग’ का जिस तरह का प्रोडक्शन है वो व्यक्तिगत प्रयास से बनाना और उसकी गुणवत्ता के स्तर तक पहुंचना बहुत आसान नहीं है।

इसके लिए बड़ी पूंजी की जरूरत है। व्यक्तिगत स्तर पर छिटपुट प्रयास हो भी रहे हैं लेकिन वो काफी नहीं हैं क्योंकि उनकी पहुंच बहुत ज्यादा हो नहीं पा रही है। हमारे देश को आजाद हुए सात दशक से अधिक बीत चुके हैं लेकिन हमने अबतक अपनी संस्कृति को केंद्र में रखकर ठोस काम नहीं किया।

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