जानें, कब-कब महामारी के संकट से उबरी दुनिया, वैक्सीन की खोज ने किया चमत्कार!
वाशिंगटन,VON NEWS: ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ यह कहावत दुनिया में फैली महामारियों और उसके वैक्सीन पर एकदम सटीक बैठती है। जब-जब दुनिया में किसी महामारी ने पैर पसारा है, तब-तब किसी वैक्सीन का आविष्कार हुआ है। महामारी और वैक्सीन का एक लंबा इतिहास है। कोरोना महामारी की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में हल्ला है। दुनिया के लिए खतरा बन चुके कोरोना वायरस से बचाव का अब सिर्फ वैक्सीन ही सहारा है। ऐसे में पूरी दुनिया की नजर कोरोना वैक्सीन पर टिकी है। ऐसे में यह जिज्ञासा पैदा होती है कि आखिर इस वैक्सीन का इतिहास क्या है। दुनिया ने पहली बार किस रोग के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया।
संक्रामक बीमारियों से रू-ब-रू हो चुकी है दुनिया
कोरोना के पूर्व दुनिया में प्लेग, चेचक, हैजा, टाइफाइड, टिटनेस, रेबीज, टीबी, पोलियो जैसी कई महामारियों से रू-ब-रू हो चुकी है। दुनिया कई दफा संक्रामक बीमारी के प्रकोप से जूझ चुकी है। इन संक्रामक बीमारी के चलते लाखों-करोड़ों लोगों की जानें जा चुकी है। सदियों से किए जा रहे अध्ययन और शोध बताते हैं कि इन महामारी से निजात दिलाने के लिए शोधकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों ने वैक्सीन की खोज की और संक्रामक बीमारियों से निजात दिलाया।
1- 1796 में दुनिया में आई पहली वैक्सीन
दुनिया में कई दशकों तक चेचक का प्रकोप जारी रहा था। इसकी वजह से कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। चेचक दुनिया की पहली बीमारी थी, जिसके टीके की खोज हुई। 1796 में अंग्रेज चिकित्सक एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया। इस आविष्कार से आज करोड़ों लोग चेचक जैसी घातक बीमारी से ठीक हो चुके हैं। चेचक का टीका दुनिया के लिए एक चमत्कार से कम नहीं था। अमेरिका में पहली बार वैक्सीन को लेकर कानून तैयार किया गया। अमेरिका में स्मॉलपॉक्स वैक्सीन सभी को देना अनिवार्य किया गया। 1898 में कानून को अपडेट भी किया गया था
2- 1885 में फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने किया कमाल
1885 में पूरी दुनिया रेबीज महामारी से जूझ रही थी। यह एक संक्रामक बीमारी है। रेबीज कुत्ते के काटने से होता है। ऐसे में प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने रेबीज के टीके का सफल परीक्षण किया। इस खोज ने चिकित्सा की दुनिया में एक क्रांति ला दी। मानवता को एक बड़े संकट से बचा लिया। उन्होंने डिप्थेरिया, टिटनेस, हैजा, प्लेग, टाइफाइड, टीबी समेत कई बीमारियों के लिए टीके विकसित किए।
1921 में टीबी की बैसिलस कैल्मेट-गुएरिन (BCG) वैक्सीन विकसित की गई। इसके बाद टीबी एक लाइलाज बीमारी नहीं रही। यह वैक्सीन शरीर के इम्यून सिस्टम या प्रतिरोधी क्षमता को एक खास संक्रमण से बचाव के लिए तैयार करता है। बीसीजी का टीका पश्चिम अफ्रीका के देश गिनी बिसाउ में नवजातों में मृत्यु दर को 38 फीसद तक कम करने में कामयाब रहा। क्षय रोग (TB) एक ऐसी बीमारी है जो मायकोबैक्टीरियम ट्युबर्कुलॉसिस नामक क्षय रोग के जीवाणु के कारण होती है।
- 1923 : डिप्थीरिया की बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन बनाई गई।
- 1926 : टिटनेस की बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन का आविष्कार हुआ।
- 1936 : मैक्स थैलर और उनके सहयोगी ने पहली बार यलो फीवर से बचने के टीके का ईजाद किया गया।
- 1944 : जापानी इनसेफेलाइटिक बुखार से कई लोगों की मौत के बाद वैक्सीन की खोज की गई।
- 1945 : पहली बार फ्लू वैक्सीन कैम्पेन शुरू किया गया।
- 1960 : अल्बर्ट सैबिन के पोलियोवायरस के टीके को अमेरिका में लाइसेंस मिला। इस वैक्सीन से टाइप-1 पोलियोवायरस से सुरक्षा मिली। बाद में पोलिया वायरस के टाइप-2 और टाइप-3 को भी लाइसेंस मिल गया। वर्ष 1963 के टीका में सभी तीन प्रकार शामिल थे।
- 1963 : खसरा के टीके को लाइसेंस प्राप्त हुआ। खसरे के टीके का सबसे पहले बंदरों और उसके बाद मनुष्यों में प्रयोग किया गया। जॉन एंडर्स और उनके सहकर्मियों ने अपने खसरे के टीके की घोषणा। अमेरिका में 1963 में खसरे की टीके को लाइसेंस मिला और अगले 12 वर्षों में देश में करीब 19 मिलियन खुराक दी गई। इसके बाद 1969 में रुबेला वायरस के टीके को भी मान्यता दे दी गई।