यौन उत्पीड़न मामलों में मनोवैज्ञानिक इलाज भी है बेहद ज़रूरी, जानें

नई दिल्ली,VON NEWS: महिलाएं ईश्वर की बनाई हुईं सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती हैं। वे न केवल सुंदर हैं, बल्कि दूसरों के प्रति सहृदय और फिक्रमंद भी होती हैं। दुर्भाग्य से, महिलाओं को समाज से वही सम्मान और प्यार नहीं मिलता, जो उन्होंने दूसरों में बांटा है।

मानव इस दुनिया की सबसे विकसित प्रजाति है और इसलिए उनसे समाज में आदर और सद्भाव से रहने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इस कसौटी पर भी हम खरे नहीं उतरते। आधुनिक युग की महिलाएं अपने लक्ष्य खुद तय करने और उन्हें पूरा करने में सक्षम और दृढ़ है़ं। फिर चाहे वह खगोल विज्ञान हो या वर्दी में देश की सीमाओं की रक्षा करना हो। आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां महिलाओं ने खुद को साबित न कर दिखाया हो। बावजूद इसके, महिला (लिंगभेद) होने के कारण वे हर समय सामाजिक रुढ़िवादी सोच और भेदभाव का रोज सामना करती हैं। छेड़छाड़, ईव टीजिंग, एसिड अटैक और यौन हिंसा की खबरें हर दिन अखबारों की सुर्खियां बनी रहती हैं।

अक्सर यह देखने में आया है कि ऐसे जघन्य अपराधों की शिकार पीड़िताओं की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल पर तो पूरा ध्यान दिया जाता है लेकिन, उनके मानसिक स्वास्थ्य को दरकिनार कर दिया जाता है। जबकि ऐसे सदमे से उबरने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाना भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। दुनिया के जाने-माने मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यौन उत्पीड़न और एसिड अटैक जैसे गंभीर हादसों से आहत ऐसे किसी भी महिला के मन-मस्तिष्क पर इस घटना का शारीरिक घावों से भी गहरा असर होता है जो शायद जीवन भर उन्हें इस सदमे से उबरने नहीं देता। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना एक बड़ी भूल है।

यौन हिंसा और महिलाओं पर उसका प्रभाव

महिलाओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में नरमदिल और कमजोर समझा जाता है, लेकिन इससे किसी को भी उन्हें शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से हावी होने का अधिकार नहीं मिल जाता है। एक समाज के रूप में हम इस सीमा रेखा को न लांघने की व्यवस्था बनाए रख पाने में लगातार विफल हो रहे हैं।

हाल ही में हुआ हाथरस मामला, फरीदाबाद और इसी तरह की अन्य घटनाओं में यौन उत्पीड़न के अपराध महिलाओं के विरुद्ध नहीं बल्कि पूरी मानवता के साथ किया गया है। अलग-अलग लोग महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या के अलग-अलग कारण गिनाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से पॉर्नोग्राफी के दुष्प्रभाव, पीड़िताओं का कपड़े पहनने का ढंग और इसी तरह की अन्य गतिविधियां शामिल हैं। हालांकि, सच्चाई यह है कि हमलावर कभी भी उम्र और कपड़े को ध्यान में रखकर अपने ‘शिकार’ का चुनाव नहीं करता। अगर ऐसा होता तो मासूम बच्चियों और बूढ़ी महिलाओं को ऐसे अपराधियों से कोई खतरा नहीं होता।

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