ग्रामीण पारंपरिक हथकरघा व्यवसाय लवी मेले से जीवित है!
शिमला,VON NEWS: घर-गांव तक बाजारीकरण होने और आधुनिक ऑनलाइन खरीददारी के बावजूद हिमाचल प्रदेश का अंतराष्ट्रीय लवी मेला ग्रामीण अंचलों में बसने वाले पारंपरिक हथकरघा व्यवसायियों के कारण जीवित है। उत्तर भारत का यह प्रमुख व्यापारिक मेला ग्रामीण दस्तकारों के रोजगार और आर्थिक मजबूती का केंद्र बना है।
अंतरर्राष्ट्रीय लवी मेला का योगदान हथकरघा व्यवसाय को जीवित रखने में बहुत महत्वपूर्ण है। लवी मेले के कारण ग्रामीण दस्तकारों की साल भर की रोजी चलती रही है। ग्रामीण दूर दराज क्षेत्र के बुनकरों का अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला आर्थिक और रोजगार का प्रमुख साधन बना हैं।
मेले के दौरान हस्तनिर्मित वस्त्रों, शॉल, पट्टू, पट्टी, टोपी, मफलर, खारचे आदि की मांग बढ़ जाती है। हर ग्रामीण दस्तकार की कोशिश रहती है कि 11 नवंबर से शुरू होने वाले अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में अधिक सामान एवं वस्त्र तैयार कर ले जाएं। ताकि वह मेले में अच्छा पैसा कमाया जा सके। ऐसे में ग्रामीण दस्तकारी को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला ग्रामीण परंपरागत उत्पादों के लिए ग्राहक उपलब्ध करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
20वीं शताब्दी के शुरूआती 50 वर्षों तक अफगानिस्तान, तिब्बत व लद्दाख के व्यापारी यहां पर व्यापार करने के लिए आते थे। अब देश के उत्तर भारत के मैदानी राज्यों के व्यापारी आते हैं। प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, उतरप्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर, मध्यप्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों से भी यहां व्यापारी आते हैं और मशीनों में निर्मित वस्तुओं को बेचते हैं।
इससे न कि केवल व्यापारियों को लाभ होता है, अपितु लोगों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएं उपलब्ध होने के साथ-साथ राज्य सरकार की आय में भी वृद्धि होती है। लवी मेले में सुन्नी-भज्जी, सिरमौर व अर्की आदि स्थानों से व्यापारी अपनी वस्तुओं को यहां लाकर बेचते हैं। वे अदरक और मिर्चे बेचने को इस मेले में लाते हैं तथा यहां से शालें एवं अन्य हस्त निर्मित वस्तुएं ले जाते हैं। रोहड़ू की ओर से व्यापारी चावल, भेड़े व बकरियां यहां बेचने लाते हैं तथा ये जिला कुल्लू के बाहरी सिराज के व्यापारियों के साथ ब्रौ में अथवा मेले में व्यापार करते हैं
यह मेला 11 नवंबर से 14 नवंबर तक मनाया जाता है। वर्तमान में इस मेले को राजस्व राज्य स्तरीय उत्सव का दर्जा प्राप्त है। कुछ वर्ष पहले तक यह मेला रामपुर बाजार के साथ-साथ लगता था। लेकिन मेले के आयोजन के लिए बाजार से आगे मेला मैदान बना दिया गया है। जहां विभिन्न विभागों की विकास सदस्यों के साथ मेले के लिए अलग-अलग बाजार बनाए जाते हैं, जिसका पुरातन स्वरूप भी देखा जा सकता है। किन्नौर से आने वाले व्यापारी पूरे लवी मेले के दौरान रामपुर में डेरा जमा लेते हैं। किन्नौरी सभ्यता की पट्टू-कोट की पटियां, बादाम, चिलगोजा, खुरमानियां, शिलाजीत और कई वस्तुएं किन्नौर के व्यापारी मेले के दौरान बेचते हैं। स्पीति, कुल्लू और शिमला के भीतरी भागों से व्यापारी अपना परंपरागत समान लेकर उत्साह से मेले में भाग लेते हैं।