अगले 2 माह में नियुक्त हो सकते है 5 नए राज्यपाल : सूत्र
नईदिल्ली /देहरादून : वॉयस ऑफ़ नेशन (मनीष वर्मा ) केंद्र की भाजपा सरकार की सिफारिश पर जल्दी ही महामहिम राष्ट्रपति
कुछ राज्यों में नए राज्यपाल नियुक्त कर सकते है
आपको बता दे की वर्तमान में 5 राज्यपाल ऐसे है जिनका 5 वर्षो का कार्यकाल पूर्ण हो चूका है व् पार्टी के वरिष्ठ नेता इन पदों पर नए वरिष्ठ जानो की नियुक्ति की मांग कर रहे है जिसे देखते हुए पार्टी आने वाले एक से दो माह के भीतर नए राज्यपाल नियुक्त कर सकती है वही बात करे वरिष्ठ नेताओ की तो इस पर लॉबिंग तेज हो चली है व् जगह- जगह से बायोडाटा एकत्र कर मंथन का दौर शुरू हो चला है
वर्तमान में लिस्ट देखे तो : –
भारत में राज्यपाल
“प्रत्येक राज्य का राज्यपाल देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है एवं यह राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से कार्य करता है। सामान्यतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परंतु वह इस अवधि से पूर्व भी राष्ट्रपति को इस्तीफा देकर सेवानिवृत्त हो सकता है। “
कानूनी जानकारों की मानें तो राज्यपाल को हटाना अब केंद्र सरकार के लिए आसान काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के…
सुप्रीम कोर्ट का 2010 का आदेश है, जो राज्यपाल की नियुक्ति और केंद्र सरकार के हस्तक्षेप को सीमित करता है। ऐसे में कानूनी जानकारों की मानें तो राज्यपाल को हटाना अब केंद्र सरकार के लिए आसान काम नहीं है।
ठोस वजह जरूरी
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक राष्ट्रपति जब तक चाहें राज्यपाल अपने पद पर बने रह सकते हैं, लेकिन कैबिनेट की सलाह से अगर राज्यपाल को हटाया भी जाता है तो उसके लिए ठोस वजह होनी जरूरी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एसआर सिंह यादव बताते हैं कि राज्यपाल का पद संवैधानिक है और उनकी नियुक्ति संवैधानिक नियुक्ति है। राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं और यही वजह है कि राज्यपाल अपना इस्तीफा भी राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। कैबिनेट की सलाह पर ही राज्यपाल का चयन होता है और फिर उनकी नियुक्ति होती है।
जहां तक उनको हटाने का सवाल है तो यह भी राष्ट्रपति ही कर सकते हैं। हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरएस सोढ़ी बताते हैं कि कैबिनेट की सलाह पर राष्ट्रपति राज्यपाल को हटा सकते हैं, लेकिन ठोस वजह होनी जरूरी है।
राज्यपाल को हटाने से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि राज्यपाल को अगर हटाया जाता है तो इसके लिए ठोस ग्राउंड होना चाहिए।
सरकार के सामने विकल्प
-सरकार राज्यपालों को विश्वास में लेकर उनसे इस्तीफा ले तो फिर कोई विवाद नहीं होगा
-अगर राज्यपाल इस्तीफा नहीं देते हैं तो फिर उन्हें दूसरे छोटे राज्यों में ट्रांसफर किया जा सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सरकार ऐसा कर सकती है
-इस्तीफा नहीं देने पर सरकार को वाजिब वजह बताकर हटाना आसान नहीं होगा
-इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता कि केंद्र सरकार का उन पर विश्वास खो चुका है।
-अगर इस मामले में किसी को शिकायत है और वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है और पहली नजर में वह दिखाता है कि उसका हटाया जाना मनमाना और पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो कोर्ट केंद्र सरकार से ऐसे मामले में जवाब देने के लिए कहेगी कि कोर्ट को बताया जाए कि किस आधार पर गवर्नर को हटाया गया।
-अगर केंद्र सरकार वजह नहीं बताती या फिर जो वजह बताई जाती है वह औचित्यपूर्ण नहीं हो और वह मानमाना पाया जाता तो कोर्ट ऐसे मामले में दखल दे सकती है। लेकिन कोर्ट सिर्फ इस आधार पर दखल नहीं देगी कि इस बारे में ऑपिनियन अलग-अलग है।
1977
जेपी सरकार ने सरकार आते ही कई कांग्रेसी गवर्नरों को हटा दिया था
1980
तमिलनाडु के तत्कालीन गवर्नर की बर्खास्तगी का मामला चर्चा में आया था। उस वक्त धारा 156-1 के तहत कहा गया था कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर राष्ट्रपति कभी गवर्नर को बर्खास्त कर सकते हें और इसके लिए कारण बताना जरूरी नहीं है
2004
यूपीए-1 ने सरकार में आते ही एनडीए सरकार में बने गवर्नर को अचानक अपने पद से हटने को कहा था।
नियम की बात करे तो राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है या वो समय से पहले भी अपना पद छोड़ सकते है पर आज की स्तिथि में कई राज्यपाल ऐसे है जिन्हे 5 वर्ष से भी अधिक का समय हो गया है इन राज्यपालों में उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ,झारखण्ड से द्रौपदी मुर्मू, कर्नाटक के वजूभाई वाला, तमिलनाडु के बनवारीलाल पुरोहित ,मणिपुर से नजमा हेपतुल्ला ,मेघालय से तथागत राय है जिन्हे 5 वर्ष से कई दिन ऊपर हो गए है व् कुछ ऐसे राजयपाल है जिन्होंने स्वयं बदलने की इच्छा जताई है तथा बीच में किसी किसी गवर्नर को दो राज्यों का प्रभार भी दिया गया जैसे मिजोरम का प्रभार जगदीश मुखी के पास दिया गया
अब इन सब कारणों के चलते चलते आने वाले 1 से 2 माह के भीतर ये बदलाव देखने को मिल सकते है
नए नियुक्त होने वाले राज्यपालों में