लॉकडाउन में बढ़ रहे डिप्रेशन के मामले, अल्मोड़ा में तीन दर्जन लोगों ने किया आत्महत्या का प्रयास
डॉक्टरों का कहना है कि आत्महत्या (suicide) का प्रयास करने वालों में महिला व पुरुष दोनों ही शामिल हैं. लोगों में बढ़ता अवसाद (depression) चिंता का विषय है. रिकार्ड के मुताबिक जिला अस्पताल में लाये गए 20 लोगों में 10 महिला और 10 पुरुषों ने सुसाइड का प्रयास किया जिनमें से चार पुरुषों और एक महिला का मौत हो गई.
अल्मोड़ा. लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान तेजी से आत्महत्या (suicide) करने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है. सिर्फ अल्मोड़ा जनपद में ही लॉकडाउन की अवधि में तीन दर्जन से अधिक लोगों ने सुसाइड का प्रयास (suicide attempt) किया जिनमें से 5 लोगों की मौत हो गई जबकि शेष लोगों को बचाने में डॉक्टरों को सफलता मिली. दरअसल वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (Pandemic coronavirus) के संक्रमण से बचाव के चलते देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया जिसके चलते काम-धंधे सब ठप हो गए लोगों के सामने रोजगार समेत कई संकट आ खड़े हुए हैं. ऐसे में लोगों में अवसाद (depression) की समस्या बहुत बढ़ती जा रही है.
जिला अस्पताल में लाए गए लोगों में से पांच की मौत
रिपोर्ट के मुताबिक अल्मोड़ा जनपद में पिछले दो माह में 20 लोगों ने सुसाइड का प्रयास किया जिन्हें जिला अस्पताल लाया गया जिसमें से पांच लोगों की जान चली गई अन्य लोगों को डाक्टरों ने बचा लिया है. इसके साथ ही एक दर्जन से अधिक डिप्रेशन के मरीज जिन्होंने आत्महत्या का प्रयास किया रानीखेत सहित जिले के अन्य अस्पतालों में लाये गए जिसके बाद चिंता बढ़ने लगी है. डॉक्टरों का कहना है कि आत्महत्या का प्रयास करने वालों में महिला व पुरुष दोनों ही शामिल हैं. लोगों में बढ़ता अवसाद चिंता का विषय है. रिकार्ड के मुताबिक जिला अस्पताल में लाये गए 20 लोगों में 10 महिला और 10 पुरुषों ने सुसाइड का प्रयास किया जिनमें से चार पुरुषों और एक महिला का मौत हो गई. आंकड़े को देखकर लगता है कि जितने तनाव में पुरुष हैं उतने ही तनाव में महिलायें भी है जो तेजी से डिप्रेशन की ओर बढ़ रही हैं.
असुरक्षा की भावना से बढ़ रहा डिप्रेशन
जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्साधिकारी डा. आरसी पंत का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान आत्महत्या के प्रयास के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जो भी मामले अस्पताल में आते हैं उन्हें बचाने का प्रयास डॉक्टरों द्वारा किया जाता है साथ ही उनकी काउंसलिंग भी करवाई जाती है. अप्रैल माह में लाये गए सभी केस में तो मरीजों को बचा लिया गया था लेकिन मई माह में 5 लोगों को बचाया नहीं जा सका. इसके दो कारण थे एक तो गांव से मुख्यालय लाने में काफी देर हो चुकी थी और दूसरा जहर अधिक मात्रा में लेने से इन लोगों की मौत हो गयी. मनोविज्ञान विभाग की पूर्व एचओडी डॉ. अनुराधा शुक्ला का कहना है कि आत्महत्या के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण भौतिक जीवन में असुरक्षा की भावना है. लोगों के सामने रोजी-रोजगार, जीवन यापन का प्रश्न खड़ा हो गया है ऐसे में लोग कमजोर पड़ जा रहे हैं.