लॉकडाउन और मजबूर की मदद : लेखक विनोद भगत

कहानी (लेखक – विनोद भगत)

लॉकडाउन और मजबूर की मदद

“सुनती हो, हम जा रहे हैं लॉकडाउन की वजह से जिन लोगों को राशन व खाना-पीना नहीं मिल पा रहा है, उन्हें बांटने के लिए।

कल भी गये थे। आज अखबार और टीवी चैनलों ने भी दिखाया है हमें। आखिर देश के लिए हमारे कुछ कर्तव्य हैं जिन्हें पूरा करना हमारा फर्ज है। ”

पत्नी यह सुनकर आयी और गर्व से अपने पति को देखने लगी।
पत्नी बोली, जी हमें गर्व है आप पर आपकी देशभक्ति पर।”
गगन प्रसाद जी के चेहरे पर चमक थी। मुंह पर मास्क लगाये गगन प्रसाद घर से बाहर निकलने लगे। तभी पत्नी बोली, एक आप हैं जो दूसरों के लिये सेवा कर रहे हैं। और एक आपका भाई मगनप्रसाद है। जो दूसरों को तो क्या अपने बच्चों तक को नहीं खिला पा रहा। हमसे बंटवारे के बाद तो उसकी हालत और खराब हो गई है। देखते हैं कैसे इस लॉकडाउन में अपना और अपने बच्चों का पेट पालता है।”

गगनप्रसाद जी यह बात सुनकर पत्नी को उलाहना देने के अंदाज में बोले, छोड़ो तुम भी किसका नाम ले रही हो। परोपकार के लिए जा रहा हूँ। हमें तो लोगों की मदद से सरोकार है। मगनप्रसाद खुद भुगतेगा।”

पति-पत्नी की यह बातें उनका सात वर्षीय पुत्र छगन सुन रहा था। छगन ने बड़े मासूमियत से पूछ लिया, मम्मी पापा एक बात बताना?

दोनों पति-पत्नी छगन के प्रश्न पर प्यार से बोले, पूछो बेटा, क्या बात है?”

” पापा, नाम कमाने के लिए दूसरों की मदद करनी पड़ती है। अगर आप चाचा की मदद करेंगे तो आपका नाम अखबारों में नहीं आयेगा? मम्मी, सोनू भैय्या और रिंकी दीदी कल चाचीजी से कह रहे थे कि हमारे पापा का काम नहीं चल रहा मम्मी हम कहाँ से खायेंगे?

गगनप्रसाद जी ने छगन को कहा “बेटा, बेकार की बातों पर ध्यान मत दिया करो। शाम को तुम्हारे लिए क्या लाना है बता दो।”

छगन चुप रहा केवल अजीब नजरों से मम्मी पापा की ओर अपने सवाल के अनुत्तरित जबाव से असंतुष्ट दिखाई दिया।

गगनप्रसाद जी घर से बाहर निकल गये। मजबूरों और परेशान लोगों की मदद करने। पत्नी एकटक अपने देवर मगनप्रसाद के घर की ओर देखने लगी। ऐसा लग रहा था कि उसके मन में विचारों का झंझावात चलने लगा।
पत्नी की नजरों ने एक नजारा देखा गगनप्रसाद अपने भाई मगनप्रसाद के दरवाजे पर पहुंच गये थे और जोर से उसे खटखटा रहे थे।

अक्सर गगनप्रसाद को ऐसा करते देख वह बिफर उठती थी पर आज उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। वह प्यार से बेटे छगन को देखते हुए उसके सर पर हाथ फिरा रही थी।

( श्री विनोद भगत राष्ट्रीय कहानीकार व लेखक है )

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