VON NEWS: कोरोना के कारण सब कुछ बंद है ऐसे में अदालती कामकाज भी 21 दिन के लिए लगभग बंद है। सिर्फ अत्यंत जरूरी मामलों की सुनवाई की जा रही है। देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं। कोरोना के कारण ठप हुए कामकाज से न सिर्फ अदालतों में मुकदमों का ढेर बढ़ जाएगा बल्कि न्याय मिलने में लगने वाला समय भी बढ़ जाएगा। यानी न्याय में देरी और बढ़ेगी।
कोरोना के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए प्रधानमंत्री ने 25 मार्च से 21 दिन का देशव्यापी संपूर्ण बंद घोषित किया है। हालांकि इस घोषणा से पहले ही सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों व जिला अदालतों में ऐतिहाती कदम उठाते हुए कामकाज सीमित कर दिया था और सभी मामलों की नियमित सुनवाई के बजाए अदालतों ने स्वयं को जरूरी मुकदमों की सुनवाई तक सीमित कर लिया था। इस बीच मुकदमों का निपटारा और सुनवाई तो सीमित हो गई थी लेकिन मुकदमों के दाखिल होने पर कोई रोक नहीं थी ऐसे में नये मुकदमें दाखिल होने की दर पूर्ववत रही और निस्तारण की दर थम गई। जिसका सीधा नतीजा अदालत में लंबित मुकदमों की संख्या बढऩा और मुकदमों का ढेर और बड़ा होते जाना है।
भारत सरकार के 2018 -2019 के आर्थिक सर्वेक्षण में लंबित मुकदमों का ढेर खत्म करने के लिए विस्तृत अध्ययन और आंकड़े प्रस्तुत किये गये थे जिसके मुताबिक अदालतों में लगे मुकदमों के ढेर को खत्म करने के लिए ढांचागत संसाधन के साथ
न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की जरूरत बताई गई थी। देश भर की अदालतों में आज की तारीख में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं। जिला अदालत का एक जज औसतन एक साल में 746 मुकदमें निपटाता है। अगर कुछ पीछे जाकर आंकड़ो पर निगाह डालें तो मुकदमों के ढेर और उसे निपटाने की गणित समझ आयेगी।
आंकड़े बताते हैं कि एक जज ने वर्ष भर में औसतन 746 मुकदमें निपटाए। मुकदमें निपटाने की ये दर 89 फीसद थी और इस दर को सौ फीसद करने के लिए 2279 जजों की और आवश्यकता थी। यानी अगर
अधीनस्थ अदालतों में जजों के सभी पद भर दिये जाएं तो मुकदमों की निस्तारण की सौ फीसद दर प्राप्त की जा सकती है। लेकिन बाकी लंबित 3.04 करोड़ मुकदमें अगले पांच साल मे निपटाने के लिए जिला अदालतों में 8152 और जजों की जरूरत है।
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