आजकल बच्चे हैं खुश पापा मम्मी दे रहे उनको वक्त

देहरादून,VON NEWS: कोराना भी क्या बीमारी है, जिसने हर किसी को घर में कैद कर दिया। आजकल के कामकाजी दौर में जो पापा-मम्मी सुबह ही घर से काम पर निकल जाते थे और शाम को थके-हारे लौटकर बच्चों को वक्त नहीं दे पाते थे, आजकल उनके पास अपनों के लिए वक्त ही वक्त है। बच्चे तो खुश हैं कि पापा-मम्मी उनके साथ बैठकर समय बिता रहे हैं। जिनके घर के आंगन बड़े हैं, वहां बच्चे पापा के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं। जिनके आंगन में जगह नहीं, वे अपने पापा या मम्मी के साथ कैरम-लूडो खेलकर आनंद ले रहे हैं। लड़ाई-झगड़ा और रूठना-मनाना भी खूब हो रहा है। बच्चे भी हैरानी में हैं कि जो मम्मी-पापा वक्त ही नहीं देते थे और जरा सी बात पर झिड़की दे देते थे। अब वो पूरा दिन उनके साथ बिता रहे हैं। वजह चाहे जो भी रही हो, मम्मी-पापा को बच्चों का अहसास तो हुआ है।

कैसे भी घर आ जा बेटा

शहर में अकेले रह रहे बुजुर्ग आजकल खासे परेशान हैं। उन्हें अपनी नहीं, बल्कि विदेश में बसे अपने बच्चों की चिंता सता रही है। कई बुजुर्गे को ये तो नहीं मालूम कि कोरोना क्या है, उन्हें तो सुनते-सुनाते बस इतना ही पता लगा कि कोई छुआ-छूत की बीमारी है, जिसमें विदेश में सैकड़ों लोगों की जान चली गई। इसलिए बच्चों को पूरे दिन किसी न किसी जरिये संपर्क कर वापस बुला रहे हैं। जिनका बच्चों संग संपर्क नहीं हो पा रहा, उनकी चिंता वाजिब भी है। पड़ोसी से पूछ रहे कि अब क्या हालात हैं, टेलीविजन पर केवल न्यूज चैनल लगा रखा है ताकि उस देश की कुछ खबर तो मिल जाए, जहां उनके बच्चे फंसे हैं। लेकिन, जिनके बच्चे वक्त रहते घर पहुंच गए, परेशान तो वे भी हैं। सरकार की ओर से विदेश से लौटे लोगों को क्वारंटाइन रहने के लिए जो कहा गया है।

आजकल बच्चे हैं खुश, पापा मम्मी दे रहे उनको वक्त, पढ़िएवरना बच्चे कहां मानते हैं

वो तो संक्रमण का खतरा है भाई साहब, वरना बच्चे कहां मानने वाले। बात छुट्टियों की हो तो उनका कोई सानी नहीं। बच्चों के लिए तो सब छुट्टियां एक जैसी हैं। कोरोना तो उनके लिए बस एक बहाना है। स्कूल में ताला है तो बच्चों की मौज ही मौज। उनको कहां घर पर रुकना है, उन्हें तो दोस्तों-यारों से मिलना है, ग्राउंड में ही क्रिकेट खेलना है और बाहर साइकिलिंग करनी है, लेकिन क्या करें। छुट्टियां तो मिलीं, लेकिन बाहर जाकर मौज-मस्ती नहीं कर सकते। मम्मी-पापा ने इसलिए जैसे-तैसे घर में कैद कर रखा है। मम्मी-पापा का सोचना भी गलत कहां है। वो तो अपने जिगर के टुकड़ों की परवाह ही कर रहे हैं। संक्रमण का खौफ तो ऐसा है कि बच्चों को पड़ोसी के बच्चे से भी मिलने नहीं दिया जा रहा है। किसी जनाब ने आखिर सही ही कहा है ‘जब अपनी चिंता करोगे तभी अपनों की चिंता कर पाओगे।’

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