चौंकाने वाली फांसी,फंदे पर लटकने के 2 घंटे बाद भी जिंदा था ‘रंगा’…

VON NEWS:   गीता चोपड़ा  दुष्कर्म और हत्याकांड में 2 दोषियों रंगा और बिल्ला को तिहाड़ जेल में 31 जनवरी, 1982 को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। जेल अधिकारियों के साथ वहां मौजूद जल्लाद ने भी यह मान लिया था कि रंगा-बिल्ला दोनों ही मर चुके हैं। इसके बाद सभी लोग वहां से चले गए। फांसी देने के बाद प्रक्रिया के तहत जब 2 घंटे बाद चिकित्सक फांसी घर में पोस्टमार्टम से पहले शव की जांच करने के लिए गए तो वहां पर चौंकाने वाला नजारा दिखा। चिकित्सक ने बिल्ला की नाड़ी जांची तो वह मर चुका था, लेकिन जब रंगा की नाड़ी देखी तो वह चल रही थी और वह जिंदा था। वह भी फांसा लगने के 2 घंटे बाद तक, इसके बाद रंगा के फंदे को नीचे से फिर खींचा गया, जिससे उसकी जान गई।

फांसी के बाद जिंदा मिलने पर मचा हड़कंप…

जैसे ही फांसी घर में रंगा के जिंदा मिलने की बात फैली तो जेल कर्मचारियों, जल्लाद और अधिकारियों के बीच हड़कंप मच गया। इसके बाद जल्लाद ने उसे पुनः फांसी पर लटकाया और उसकी मौत हुई। यही वजह है कि फांसी देने से पहले दोषियों के वजन के बराबर की डमी बनाकर उसका ट्रायल किया जाता है, वह भी कई बार।

‘Black Warrant’ से सामने आया रंगा-बिल्ला की फांसी से जुड़ा अहम तथ्य

दिल्ली की तिहाड़ जेल में वर्षों कार्यरत रहे सुनील गुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘Black Warrant’ ने रंगा-बिल्ला की फांसी से जुड़े इस मामले का जिक्र किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि तिहाड़ में रंगा और बिल्ला को 1982 में फांसी सुबह फांसी दी गई थी। जल्लाद समेत आला अधिकारियों-कर्मचारियों ने यह मान लिया था कि रंगा-बिल्ला दोनों की जान फांसी लगने से जा चुकी है। सुनील गुप्ता की मानें तो रंगा-बिल्ला को फंदे पर लटकाने के दो घंटे बाद जब डॉक्टर फांसी घर में जांचने के पहुंचे तो रंगा की नाड़ी (पल्स) चल रही थी। इसके बाद में रंगा के फंदे को नीचे से खींचा गया और उसकी मौत हुई। वहीं, बिल्ला की मौत फांसी से हो चुकी थी।

यह भी जानें

  • वर्ष, 1978 में रंगा और बिल्ला को गीता चोपड़ा (भाई) और संजय चोपड़ा (भाई) के अपहरण के साथ
  • सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी।
  • दोनों खूंखार अपराधियों को 1982 में फांसी दी गई थी।
  • 31 जनवरी, 1982 को दोनों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी।
  • देश में मचे हंगामे के बाद कुल 8 महीने तक यह मामला कोर्ट में चला।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 7, अप्रैल, 1979 को दोनों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद कानूनी विकल्पों के खत्म होने के बाद दोनों को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई।

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