पाकिस्तान नहीं चाहता सार्क बने सक्रिय मंच:
VON NEWS: ऐसा क्या हुआ कि इमरान खान सार्क शासन प्रमुखों से संवाद के समय उपस्थित नहीं हुए? बदले में उन्होंने जूनियर मंत्री जफर मिर्जा को पीएम मोदी से संवाद के लिए स्क्रीन के सामने बैठा दिया। पाकिस्तान के स्वास्थ्य राज्य मंत्री जफर मिर्जा ने बजाय पूरी वस्तुस्थिति को समझे, कश्मीर की तथाकथित नाकेबंदी का सवाल उठा दिया। जफर मिर्जा ने कहा, ‘आप अपने हिस्से वाले कश्मीर में नाकेबंदी हटाएं ताकि वहां लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मदद पहुंचाई जा सके।’
वायरस को रोकने के उपाय कैसे हों? : पाकिस्तान के स्वास्थ्य राज्य मंत्री जफर मिर्जा ने जो कहा, वह साफ-साफ शैतानी भरा बयान था। ऐसे वक्तव्यों से एक अच्छे खासे प्रयासों पर पानी फिरता है। पाकिस्तान और भारत के बीच 3,323 किलोमीटर की बॉर्डर लाइन है। वायरस को रोकने के उपाय इस बॉर्डर लाइन पर कैसे हों? बात उस पर होनी चाहिए थी।
पाकिस्तान इस समय आठ सदस्यीय दक्षेस देशों का अध्यक्ष है। उसकी जिम्मेदारी बड़ी थी। कोरोना से बचाव के वास्ते बने कोष में पाकिस्तान के सहयोग से बात समझ में आ जाएगी कि वह इसके प्रति कितना गंभीर है। चार साल से दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन यानी दक्षेस एक प्रकार से आइसीयू में था। उसमें जीवन रक्षक इंजेक्शन लगाने का ख्याल अचानक से कैसे आया, यह भीदिलचस्प है
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सार्क जैसे च में प्राण फूंकना एक अच्छी पहल : देश के कुछ राज्यों को छोड़ दें, तो किसी न किसी रूमंप में बाहरी देशों से हमारी सीमाएं मिलती हैं। चीन, पाकिस्तान, भूटान, म्यांमार, अफगानिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को छूने वाली सीमाएं जंगल, पहाड़, नदी, मरूस्थल, तराई जैसी दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों से बावस्ता हैं। उससे थोड़ा भिन्न समुद्री मार्ग है, जो पाकिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्यांमार, बांग्लादेश और थाईलैंड की सीमाओं को छूती हैं।
पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर बाकी पांच मुल्कों से भारत ने समुद्री सीमा समझौता कर रखा है। यह सब देखते हुए ही भारत ने इस समस्या से निपटने के लिए नेतृत्व करने की चेष्टा की है। सार्क जैसे मंच में प्राण फूंकना एक अच्छी पहल है, बशर्ते पाकिस्तान की नीयत इस मंच को आगे बढ़ाने की हो। सार्क 2016 के बाद से पाकिस्तान की अध्यक्षता में अटका पड़ा है। न तो दक्षेस की शिखर बैठक होती है, ना इस्लामाबाद के ‘कब्जे’ से दक्षेस मुक्त होता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी दक्षेस के 35 साल हो गए।
नवाज शरीफ ने साबित कर दिया था कि… : वर्ष 2004 भी इस्लामाबाद सार्क समिट के लिए यादगार था, जब एचआइवी एड्स के विरुद्ध अभियान छेड़ने का अहद किया गया। उस समय दक्षेस की अध्यक्षता पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर जफरुल्ला खान जमाली कर रहे थे।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता मीर जफरुल्ला खान जमाली बलूच थे और कश्मीर नीति पर उस तरह आक्रामक नहीं थे, जिस तरह की शातिराना चाल नवाज शरीफ ने चली थी, और जिससे सार्क का का असर कम हुआ। नवाज शरीफ ने साबित कर दिया था कि कूटनीति में शालीनता दिखाने, मां के चरण छूने, पारिवारिक दोस्ती को बढ़ाने, शॉल, पगड़ी जैसे सम्मानजनक तोहफे मायने नहीं रखते। कुर्सी बचाए रखने के वास्ते सेना, अतिवादियों से समझौता कर पड़ोसी से मक्कारी की जा सकती है। ऐसे नेता से दक्षेस का भला नहीं हुआ।
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