बेटियों को मिला सहारा तो दिखा दिया दम,
पानीपत VON NEWS: मजदूर की बेटी “पट्टीकल्याणा” गांव की कोमल पांचाल और पायल की स्वर्णिम आभा आज खेलों के फलक पर चमक रही है। अब ग्रामीण उनके नाम से माता-पिता को जानते हैं। हालांकि यहां तक का सफर इनके लिए चुनौती भरा रहा है। मगर दाद देनी होगी इनकी माताओं को, जिन्होंने आर्थिक तंगहाली व लोगों के तानों को दरकिनार कर बेटियों में खेल का जज्बा ङ्क्षजदा रखा। हौसले से भरीं दोनों बेटियों ने कुश्ती में पदकों की झड़ी लगाकर संदेश भी दिया कि इरादे फौलादी हों तो बाधाएं टिक नहीं पाती हैं। दोनों ही पहलवान गांव के बाबा ज्ञानीराम अखाड़े में कोच कृष्ण कुमार के पास अभ्यास करती हैं। शिवाजी स्टेडियम में चल रही दो दिवसीय जिला स्तरीय कुमार व केसरी कुश्ती दंगल में अंडर-17 के 43 किलोग्राम में कोमल ने स्वर्ण और 37 किलोग्राम में पायल ने रजत पदक जीता।
मां के साथ से बनी “विश्व चैंपियन“, तंज कसने वाले बजाते हैं ताली
कोमल बताती हैं कि कुश्ती भी महंगा खेल हो गया है। पिता सतीश पांचाल मजदूरी करते हैं। परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता है। अखाड़े में जाती थी तो लोग मजाक उड़ाते थे। मां कुसुम ने उसे विश्वास दिलाया कि कड़ा अभ्यास कर सफलता मिलेगी। हार मिलने पर भी मां ने जज्बे से खेलने के लिए प्रेरित किया। कोच कृष्ण व विनोद कुमार ने तकनीक में सुधार किया और खामियों को दूर किया। एशियन व विश्व चैंपियन बनीं। अब तंज कसने वाले लोग ताली बजाते हैं। इससे अच्छा लगता है। एक कंपनी की स्पांसरशिप से उसकी खुराक की भरपाई होती है।
कमजोर शरीर पर लोग हंसते थे, मां की वजह से बनीं पहलवान
“उत्तर प्रदेश“ के प्रयागराज के सैदपुर गांव की पायल ने बताया कि पिता जंगबहादुर मजदूरी करते हैं। वह तीन बहनों में छोटी है। डेढ़ साल पहले पड़ोस की कोमल को अखाड़े जाते देखा। मां अनिता से पहलवानी की इच्छा जताई। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। खुराक के लिए रुपये नहीं थे। मां उसे अखाड़े लाती और ले जाती। लोग कमजोर शरीर पर हंसते थे। मां ने खेलने पर ध्यान देने की सलाह दी। डाइट के नाम पर पीने को एक गिलास दूध मिलता है। मेहनत की और राज्यस्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। अब लक्ष्य नेशनल में स्वर्ण पदक जीतना है
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