कई लोगों की सोच पर करारा ‘थप्पड़’ है तापसी और पावेल की फिल्म

मुंबई,VON NEWS:  अच्छा “सिनेमा” क्या होता है अच्छा सिनेमा वो होता है जो कहीं ना कहीं दर्शकों के दिलों दिमाग पर असर डालता है। प्रोजेक्ट के दौड़ में मशगूल बॉलीवुड में सिनेमा की कमी सभी देख रहे हैं मगर गाहे-बगाहे कुछ ऐसी फिल्में आ जाती है इसे देखकर आप कह उठते हैं वाह क्या सिनेमा है।

अनुभव सिन्हा अपने कायाकल्प के बाद जिस तरह का  “सिनेमा बना रहे हैं वह वाकई तारीफे काबिल है! उनकी फिल्म ‘थप्पड़’ का शुमार अच्छे सिनेमा में जरूर होगा। मात्र एक विचार है शादीशुदा जिंदगी में कोई पति अपनी पत्नी को किसी भी कारण से किसी भी परिस्थिति में ‘थप्पड़’ मारने का हक नहीं रखता।

अमूमन भारतीय समाज में पति अगर अपनी पत्नी को मार दे तो ना सिर्फ उसके सास-ससुर बल्कि लड़की के मां-बाप भी यह कहते नजर आते हैं कि पति पत्नी में थोड़ा बहुत लड़ाई झगड़ा तो चलता रहता है। और ‘थप्पड़’ यह कहती है कि कभी भी थप्पड़ मारना सही नहीं है, इसका अधिकार पति को नहीं है। थप्पड़ मारना न सिर्फ नैतिक रूप से गलत है बल्कि कानून भी गलत है।–

इस विचार को निर्देशक अनुभव सिन्हा” और उनकी सह लेखिका मृण्मई लागू ने बहुत ही खूबसूरती के साथ न सिर्फ कहानी में गढ़ा, बल्कि पटकथा और संवादों के माध्यम से दर्शकों को यह समझाने का सफलतम प्रयास किया कि आखिर गलत कहां है।
फिल्म देखने के बाद सारे मर्दों को इस बात का एहसास होगा, साथ ही शर्मिंदगी भी… जाने अनजाने कैसे सदियों पुराना पुरुष जो हमारे भीतर बसा हुआ है गलतियां करता है और उन गलतियों का एहसास तक हम लोग नहीं कर पाते।यह भी पढ़े

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