पैन, आधार, वोटर कार्ड जैसे 15 काग़ज़ भी इस महिला को भारत का नागरिक नहीं बना पाए

VON NEWS : असम की एक “महिला”   ने अपनी और अपने पति की नागरिकता साबित करने लिए 15 तरह के दस्तावेज़ पेश किए, लेकिन फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में वो हार गईं. इस फ़ैसले को उन्होंने गुवाहाटी हाइकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां भी हार गईं. जाबेदा बेगम को ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया था. जाबेदा गुवाहाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर बक्सा जिले में रहती हैं.

क्या है मामला?

गोयाबारी गांव की रहने वाली जाबेदा को ट्रिब्यूनल ने 2019 में विदेशी घोषित कर दिया था. हाईकोर्ट ने अपने पिछले आदेशों में से एक का हवाला देते हुए, उनके द्वारा जमा किए गए तमाम कागजात को नागरिकता”  का सबूत मानने से इनकार कर दिया. इनमें भूमि राजस्व रसीद, बैंक दस्तावेज और पैन कार्ड भी शामिल हैं.

जाबेदा बेगम ने ट्रिब्यूनल के सामने अपने पिता जाबेद अली के साल 1966, 1970, 1971 की मतदाता सूचियों सहित 15 दस्तावेज जमा किए थे. लेकिन ट्रिब्यूनल का कहना है कि वो अपने पिता के साथ उसके लिंक के संतोषजनक सबूत पेश नहीं कर पाईं. जन्म प्रमाण पत्र की जगह उसने अपने गांव के प्रधान से एक प्रमाण पत्र बनवाया, लेकिन इसे न तो ट्रिब्यूनल ने माना, न ही कोर्ट ने. गांव के प्रधान गोलक कालिता ने भी ट्रिब्यूनल के सामने जाकर गवाही दी थी.

कैसे साबित होती है असम में नागरिकता” ?

असम में भारतीय नागरिकता के लिए ये साबित करना ज़रूरी है कि शख्स के पूर्वज 1971 से पहले से असम में रह रहे थे. NRC माने नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस में दर्ज होने के लिए असम में कागज़ात के दो सेट जमा करने पड़ते हैं- List A और List B.

List A में वो काग़ज़ आते हैं, जिसमें नागरिक को ये साबित करना होता है कि उसके माता-पिता असम में 1971 से पहले तक भी रहे हैं. 1951 में NRC के काग़ज़ दिखाए जा सकते हैं. 1971 से पहले की वोटर लिस्ट में नाम भी दिखा सकते हैं.

List B में वो लोग आते हैं, जो 1971 के बाद असम में पैदा हुए. इसमें पैन कार्ड, बर्थ सर्टिफ़िकेट वगैरह लगाए जा सकते हैं.

जाबेदा बेग़म के वकील अहमद अली ने मीडिया को बताया कि जाबेदा की तरफ़ से लगभग सारे काग़ज़ कोर्ट में पेश किए गए. लेकिन कोर्ट अंत तक इस बात पर राज़ी नहीं हुआ कि जाबेदा के माता-पिता असम में 1971 से पहले भी यहीं थे.

 अब आगे क्या होगा ?

जानकार बता रहे हैं कि जाबेदा बेग़म अब हाईकोर्ट में ‘रिव्यू पिटीशन’ फ़ाइल कर सकती हैं. या फिर जाबेदा सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट में जाबेदा ये सवाल उठा सकती हैं कि उनके ग्राम प्रधान का सर्टिफ़िकेट क्यों नहीं माना गया? जबकि ग्राम प्रधान ने ख़ुद इस बात की गवाही दी थी कि जाबेदा उनके ही गांव की रहने वाली हैं और इनके माता पिता इसी गांव के हैं.

Evidence Act के Section 50 के तहत जाबेदा के भाई का बयान भी काफ़ी था, ये साबित करने के लिए कि जाबेदा उनकी बहन हैं. जाबेदा का भाई अगर NRC में नागरिक माना गया है, तो जाबेदा इस हिसाब से अपने-आप नागरिक साबित होती हैं. जाबेदा ये भी सुप्रीम कोर्ट में कह सकती हैं

 क्या कहा जज ने

इस केस में जाबेदा ने कहा था कि वो मृत जाबेद अली और जहूरा ख़ातून की बेटी हैं. जाबेदा ऐसा कोई भी पेपर अदालत के सामने पेश नहीं कर सकीं, जिससे ये साबित हो कि जाबेदा इन दोनों की ही बेटी हैं. ग्राम प्रधान का सर्टिफ़िकेट किसी को नागरिक बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है. इस तरह का सर्टिफ़िकेट तब काम आ सकता है, जब कोई शादीशुदा महिला ये साबित करना चाहे कि शादी के बाद वो अपने माता-पिता के गांव वापस आ गई थी.’

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